जामिया वीसी विवाद: प्रो. इकबाल हुसैन ने अपनी नियुक्ति रद्द करने के आदेश को अदालत में चुनौती दी

जामिया वीसी विवाद: प्रो. इकबाल हुसैन ने अपनी नियुक्ति रद्द करने के आदेश को अदालत में चुनौती दी

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  • Publish Date - May 26, 2024 / 08:27 PM IST,
    Updated On - May 26, 2024 / 08:27 PM IST

नयी दिल्ली, 26 मई (भाषा) प्रोफेसर इकबाल हुसैन ने जामिया मिलिया इस्लामिया के कार्यवाहक कुलपति के तौर पर अपनी नियुक्ति को निरस्त किये जाने के दिल्ली उच्च न्यायालय की एकल पीठ के फैसले के खिलाफ खंडपीठ का दरवाजा खटखटाया है।

हुसैन की अपील न्यायमूर्ति रेखा पल्ली और न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी की खंडपीठ के समक्ष सोमवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।

उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने हुसैन को प्रति कुलपति बनाये जाने तथा बाद में विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति के तौर पर नियुक्ति को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि नियुक्तियां संबंधित कानून के अनुरूप नहीं की गई थीं।

एकल पीठ ने हालांकि, यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि विश्वविद्यालय की शैक्षणिक और प्रशासनिक मशीनरी को नुकसान या पूरी तरह से ठप्प होने से बचाने के लिए कार्यवाहक कुलपति के पद पर एक सप्ताह के भीतर नई नियुक्ति की जाए।

इस बीच अदालत ने जामिया विश्वविद्यालय के ‘विजिटर’ (राष्ट्रपति) को एक नियमित कुलपति की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करने का आदेश जारी करने को भी कहा था।

अदालत ने मोहम्मद शामी अहमद अंसारी और अन्य की याचिकाओं की सुनवाई करते हुए कहा था, ‘‘चूंकि प्रतिवादी संख्या-दो को कानून के दायरे में नियुक्त नहीं किया गया है, इसलिए कुलपति कार्यालय में उनके कार्यवाहक कुलपति के रूप में बने रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।’’

तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर नजमा अख्तर ने 14 सितंबर, 2023 को हुसैन को जामिया मिलिया इस्लामिया का प्रति कुलपति नियुक्त किया था। इसके बाद, 12 नवंबर, 2023 को अख्तर की सेवानिवृत्ति पर हुसैन के कार्यवाहक कुलपति का कार्यभार संभालने के बारे में रजिस्ट्रार के कार्यालय द्वारा एक और अधिसूचना जारी की गई।

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि ये नियुक्तियां जामिया मिलिया इस्लामिया अधिनियम के प्रावधानों और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नियमों का उल्लंघन थीं।

यह मानते हुए कि प्रति कुलपति के रूप में प्रारंभिक नियुक्ति क़ानून के विपरीत थी, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि कार्यवाहक कुलपति के रूप में हुसैन की बाद की नियुक्ति भी कानूनी रूप से वैध नहीं थी।

भाषा सुरेश नरेश

नरेश