नयी दिल्ली, 24 जनवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि विधि प्रशिक्षुओं को यह बताने और समझाने की जरूरत है कि वे खुद को अदालतों में वकील के रूप में पेश नहीं करें और इस तरह के ‘‘कृत्यों’’ के लिए उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं की जानी चाहिए।
उच्च न्यायालय ने कहा कि पर्याप्त और उचित तरीके से चेतावनी देने से ऐसी घटनाओं में काफी कमी आएगी।
न्यायमूर्ति अनीश दयाल ने कहा कि विधि प्रशिक्षु एक छात्र है जो अदालत की कार्यवाही और प्रक्रियाओं को समझने की प्रक्रिया में है और इसलिए ‘‘संस्था का कर्तव्य है कि वह उनकी शिक्षा और प्रशिक्षण को सुविधाजनक बनाने के लिए पर्याप्त कदम उठाए न कि उन्हें इन अनजाने कृत्यों के लिए दंडित करे’’।
उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी विधि प्रशिक्षु के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को खारिज करते हुए की। द्वितीय वर्ष का छात्र कथित तौर पर पिछले साल यहां एक निचली अदालत के समक्ष छद्म वकील के रूप में पेश हुआ था।
उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता विधि प्रशिक्षु ने एक हलफनामा भी दायर किया है जिसमें कहा गया है कि वह जानता है कि वह एक नामांकित अधिवक्ता नहीं है और यह वचन देता है कि वह अदालत के समक्ष किसी भी कार्यवाही में तब तक पेश नहीं होगा या खुद को वकील के रूप में पेश नहीं करेगा जब तक कि वह एक वकील के रूप में विधिवत नामांकित नहीं हो जाता।
अदालत ने कहा कि इस प्राथमिकी में कार्यवाही जारी रखने के लिए कोई उद्देश्य पूरा नहीं हुआ है। इसलिए द्वारका पुलिस थाने में दर्ज की गई प्राथमिकी को न्याय के सिरों को सुरक्षित करने के लिए रद्द किया जाता है।
भाषा सुरभि माधव
माधव
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
सिक्किम में सुबह 11 बजे तक 21.2 प्रतिशत से अधिक…
44 mins ago