जेएनयू में कमजोर हो रहा वामपंथ, स्वतंत्र रूप से चुनाव जीतने के लिए संघर्ष कर रहे संगठन: कुलपति

जेएनयू में कमजोर हो रहा वामपंथ, स्वतंत्र रूप से चुनाव जीतने के लिए संघर्ष कर रहे संगठन: कुलपति

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  • Publish Date - April 20, 2024 / 08:01 PM IST,
    Updated On - April 20, 2024 / 08:01 PM IST

(फोटो के साथ)

नयी दिल्ली, 20 अप्रैल (भाषा) जेएनयू की कुलपति शांतिश्री डी. पंडित ने कहा है कि प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक संगठनों की मौजूदगी के कारण विश्वविद्यालय में वामपंथ कमजोर पड़ा है और स्वतंत्र रूप से चुनाव जीतने में संघर्ष के चलते दूसरों से हाथ मिलाने को विवश हो गया है।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की पूर्व छात्रा पंडित ने कहा कि वह किसी राजनीतिक दल से संबंध न रखने वाले छात्रों के “तटस्थ” निकाय ‘फ्री थिंकर्स ग्रुप’ के तहत वामपंथ से मुकाबला करती थीं।

पंडित ने संसद मार्ग स्थित ‘पीटीआई-भाषा’ के मुख्यालय में संपादकों को दिए साक्षात्कार में कहा कि हाल ही में हुए जेएनयू छात्र संघ चुनाव में लगभग 1,500 वोट नोटा (उपरोक्त में से कोई नहीं) के पक्ष में पड़ा, जो दर्शाता है कि छात्रों को न तो वामपंथ में रुचि है और न ही दक्षिणपंथ में।

अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एमफिल और फिर पीएचडी करने वालीं पंडित ने कहा कि समय के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी), कांग्रेस समर्थित नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के छात्र संघ ने विश्वविद्यालय में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, जहां कभी पूरी तरह से वाम संगठनों का एकछत्र वर्चस्व हुआ करता था।

मार्च में ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एआईएसए), डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन (डीएसएफ), स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) और ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईएसएफ) के संयुक्त मोर्चा ने इतिहास में पहली बार बीएपीएसए के साथ संयुक्त रूप से जेएनयू छात्रसंघ (जेएनयूएसयू) चुनाव लड़कर जीत हासिल की थी और निकटतम प्रतिद्वंद्वी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को हराया था।

वाम संगठनों ने मिलकर चुनाव लड़ा था और एबीवीपी को जीत हासिल करने से रोकने के लिए उन्हें अंतिम समय में महासचिव पद के लिए बिरसा आंबेडकर फुले स्टुडेंट्स एसोसिएशन (बीएपीएसए) की उम्मीदवार का समर्थन करना पड़ा था।

पंडित ने कहा, “विश्वविद्यालय में वामपंथ कमजोर हो रहा है। पहले एसएफआई, एआईएसएफ स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ते थे। चुनाव जीतने के लिए उन्हें किसी गठबंधन की जरूरत नहीं पड़ती थी। वे किसी भी समूह को हरा सकते थे। मैं उस समय एक स्वतंत्र विचारक थी। हमारे विश्वविद्यालय में एबीवीपी और एनएसयूआई दोनों नहीं थे। अब राजद के छात्र संगठन समेत विभिन्न संगठनों के होने से वामपंथियों को जीत के लिए 10-12 समूहों के साथ की जरूरत है।”

उन्होंने कहा,‘‘जेएनयूएसयू चुनाव में महासचिव पद के लिए उम्मीदवार वामपंथी नहीं थीं। वह बीएपीएसए से थीं। वामपंथियों ने एबीवीपी को जीत से रोकने के लिए उनका समर्थन किया था। वह उनकी बात नहीं सुनती हैं, उनका कहना है कि उन्होंने अपने हित के लिए मेरा समर्थन किया। यह इससे पता चलता है कि विश्वविद्यालय में वामपंथ कमजोर हो रहा है।’’

भाषा

जोहेब धीरज

धीरज