पर्सनल लॉ और राष्ट्रीय कानून के बीच टकराव के मद्देनजर जरूरी है विधायी स्पष्टता : उच्च न्यायालय

पर्सनल लॉ और राष्ट्रीय कानून के बीच टकराव के मद्देनजर जरूरी है विधायी स्पष्टता : उच्च न्यायालय

पर्सनल लॉ और राष्ट्रीय कानून के बीच टकराव के मद्देनजर जरूरी है विधायी स्पष्टता : उच्च न्यायालय
Modified Date: September 26, 2025 / 08:07 pm IST
Published Date: September 26, 2025 8:07 pm IST

नयी दिल्ली, 26 सितंबर (भाषा) क्या अब समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की ओर बढ़ने का समय नहीं आ गया है, जिसमें ऐसा एकल ढांचा सुनिश्चित किया जाए, जहां व्यक्तिगत (पर्सनल लॉ) या प्रथागत कानून (कस्टमरी लॉ) राष्ट्रीय कानून पर हावी न हो? दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह सवाल उठाते हुए कहा कि इस टकराव के मद्देनजर विधायी स्पष्टता जरूरी है।

उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी बलात्कार और अपहरण के आरोप में गिरफ्तार एक व्यक्ति को जमानत देते समय की गई, क्योंकि उसने एक लड़की से विवाह किया था, जो कथित तौर पर नाबालिग थी।

लड़की ने अपनी उम्र 20 वर्ष बताई, जबकि अभियोजन पक्ष ने कहा कि उसकी उम्र 15 से 16 वर्ष के बीच है।

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उच्च न्यायालय ने कहा कि “बार-बार होने वाला टकराव” स्पष्ट है, अर्थात इस्लामी कानून के तहत, यौवन प्राप्त करने वाली नाबालिग लड़की कानूनी रूप से विवाह कर सकती है, लेकिन भारतीय आपराधिक कानून के तहत ऐसा विवाह पति को भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत अपराधी बनाता है।

न्यायमूर्ति अरुण मोंगा ने 23 सितंबर के एक आदेश में कहा, “इससे एक गंभीर दुविधा पैदा होती है: क्या समाज को लंबे समय से चले आ रहे व्यक्तिगत कानूनों का पालन करने के लिए अपराधी बना दिया जाए? क्या अब यह समय नहीं आ गया है कि हम समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की ओर बढ़ें, ताकि ऐसा एकल ढांचा सुनिश्चित हो सके, जिसमें व्यक्तिगत या प्रथागत कानून राष्ट्रीय कानून से ऊपर न हो?”

उच्च न्यायालय ने कहा कि विधायिका को यह निर्णय लेना होगा कि क्या पूरे समुदाय को अपराधी घोषित करना जारी रखा जाए या कानूनी निश्चितता के माध्यम से शांति और सद्भाव को बढ़ावा दिया जाए।

अक्टूबर 2024 में गिरफ्तार किये गये 24 वर्षीय व्यक्ति और उसकी पत्नी ने अदालत से जमानत की गुहार लगाई और कहा कि वह विचाराधीन कैदी के रूप में 11 महीने से अधिक समय से जेल में बंद है।

बताया जाता है कि सौतेले पिता द्वारा यौन उत्पीड़न किये जाने के बाद लड़की 14 साल की उम्र में मां बन गई थी। बाद में उसने बच्चे को जन्म दिया और बच्चे को गोद दे दिया गया।

उसे तब राहत और सम्मान मिला, जब आरोपी व्यक्ति ने जून 2024 में इस्लामी कानून के तहत उससे शादी कर ली और दंपति को एक और बच्चा हुआ।

लड़की के सौतेले पिता, जो न्यायिक हिरासत में है और बलात्कार के मामले में मुकदमे का सामना कर रहा है, ने पति के खिलाफ अपहरण और दुष्कर्म का मामला दर्ज करवाया।

लड़की के पति को जमानत देते हुए, अदालत ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत, यौवन – जिसे 15 वर्ष माना जाता है, जब तक कि अन्यथा साबित न हो – लड़कियों के लिए विवाह योग्य आयु है।

भाषा प्रशांत दिलीप

दिलीप


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