अनुच्छेद 21 के विकास और महत्व पर प्रकाश डालेगी ‘लिबर्टी ऑफ्टर फ्रीडम’

अनुच्छेद 21 के विकास और महत्व पर प्रकाश डालेगी ‘लिबर्टी ऑफ्टर फ्रीडम’

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  • Publish Date - January 25, 2022 / 08:32 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:54 PM IST

नयी दिल्ली, 25 जनवरी (भाषा) भारत बुधवार को अपना 73वां गणतंत्र दिवस मना रहा है और ऐसे में एक नई पुस्तक में संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित सबसे महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार – की उत्पत्ति और विकास का एक व्यापक और आकर्षक विवरण प्रदान किया गया है।

उच्चतम न्यायालय में वकालत करने वाले वकील रोहन जे अल्वा की किताब ‘लिबर्टी ऑफ्टर फ्रीडम : ए हिस्ट्री ऑफ आर्टिकल 21, ड्यू प्रोसेस एंड कान्स्टिट्यूशन ऑफ इंडिया’ में यह भी पता चलता है कि कैसे अनुच्छेद 21 का विकास भारत गणराज्य के व्यापक इतिहास को दर्शाता है।

अल्वा का कहना है कि जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है जो प्रत्येक भारतीय के जीवन को प्रभावित करता है, और इसकी बढ़ती अहमियत इस तथ्य से प्रदर्शित होती है कि हाल के वर्षों में यह निजता के अधिकार की मान्यता और समलैंगिकता को अपराध से मुक्त करने के संदर्भ में हमारी दैनिक बातचीत का हिस्सा बन गया है।

उन्होंने कहा, “इसके महत्व को देखते हुए, मुझे विश्वास है कि यह बताया जाना चाहिए कि यह अधिकार कैसे बना और इसे आकार देने वाले महिलाओं और पुरुषों की कहानी को भी सामने लाया जाना चाहिए।”

लेखक के अनुसार, “आज अधिकारों के संदर्भ में हम जो कुछ मूल्यवान और प्रिय पाते हैं, वह अनुच्छेद 21 के कारण है और अतीत से जकड़े नहीं रहने का ही परिणाम है।’ उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 21 अब व्यक्तियों के लिए समाज में समानता वाले सदस्य बनने और उन्हें अपने व्यक्तिगत मूल्य को पूरा करने में सक्षम बनाने का प्रमुख आधार बन गया है।

अल्वा 10 फरवरी को हॉर्पर कॉलिंस द्वारा प्रकाशित की जाने वाली अपनी किताब में लिखते हैं, “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार एक रहस्यमय अधिकार नहीं है: यह राजनीतिक प्रतियोगिता, वैचारिक विवाद और सबसे ऊपर भारत के अधिकारों के एक मजबूत ढांचे को महसूस करने के लिए संघर्ष का जगह हौ। यह पुस्तक उस इतिहास को प्रस्तुत करती है।”

भारत में अधिकारों के प्रगतिशील विकास पर अनुच्छेद 21 का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है। जब भारत ने 26 जनवरी, 1950 को संविधान को अंगीकार किया, तो जीवन और स्वतंत्रता दोनों को खतरे में माना जाता था क्योंकि संविधान सभा ने उन्हें उचित प्रक्रियागत संरक्षण नहीं देने का फैसला किया था।

“लिबर्टी ऑफ्टर फ्रीडम” इस सर्वोपरि मौलिक अधिकार की बौद्धिक शुरुआत की पड़ताल करती है ताकि संविधान के निर्माण के समय उठे विवादों को विश्लेषित और उजागर किया जा सके।

भाषा

प्रशांत अनूप

अनूप