नवरात्रि का तीसरा दिन : मां चंद्र घंटा की होगी आराधना, रोगों से मिलेगी मुक्ति

नवरात्रि का तीसरा दिन : मां चंद्र घंटा की होगी आराधना, रोगों से मिलेगी मुक्ति

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  • Publish Date - September 23, 2017 / 04:55 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:48 PM IST

 

आज नावरात्रि के तीसरे दिन मां के चंद्रघंटा अवतार की पूजा की जाती है। इस अवतार में मां के माथे पर घुंट के आकार का अर्धचंद्र होने के कारण उन्हे चंद्रघंटा कहा जाता है। मां से पायें रोगों से मुक्ति, मां चन्द्रघण्टा का मुखमण्डल शांत, सात्विक, सौम्य किंतु सूर्य के समान तेज वाला है। दिव्य रुपधारी माता चंद्रघंटा की दस भुजाएं हैं। मां के इन दस हाथों में ढाल, तलवार, खड्ग, त्रिशूल, धनुष, चक्र, पाश, गदा और बाणों से भरा तरकश होता है। मां सिंह पर सवार होकर युद्ध व दुष्टों का नाश करने के लिए तत्पर रहती हैं, इनके घंटे की ध्वनि सदैव भक्तों की प्रेत-बाधा आदि से रक्षा करती है तथा उस स्थान से भूत, प्रेत एवं अन्य प्रकार की सभी बाधाएं दूर हो जाती है। मां चंद्रघंटा की पूजा से सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है। चंद्रघंटा को स्वर की देवी भी कहा जाता है, मां के हाथों में शंख है, जिसकी ध्वनि मात्र समस्त रोगों को हरने की शक्ति रखती है। आज शनिवार को त्वचारोग से संबंधित कष्ट की निवृत्ति के लिए मां चंद्रघंटा की पूजा करें साथ ही तिल, तेल तथा उदड़ का दान करना चाहिए।

 

स्वर्ण के समान उज्जवल वर्ण वाली मां चंद्रघंटा की पूजा का यह मंत्र है:-

पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

प्रसादं तनुते मह्यां चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥

 

पूजन करने की विधि:-

 

सर्वप्रथम देवी की फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु से स्नान करायें, मां चंद्रघंटा देवी का पूजन हल्दी से करें। पीले पुष्प चढ़ाएं। घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें। देवी को प्रसाद अर्पित करें। प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें। अंत में क्षमा प्रार्थना करें। ‘ऊं ऐं’ का मानसिक जाप करें। श्री दुर्गा सप्तशती का एक से तीन तक अध्याय पढ़ें। देवीजी को खीर का भोग लगाएं।

माता की पूजा छात्रों, संगीतकारों और साहित्यकारों के लिए विशेष लाभकारी होती है इन मंत्र का जाप करें:- 

 

मंत्र –

सरस्वती महाभागे विद्ये कमललोचने। विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोस्तु ते।। 

ऊं ह्रीं क्लीं वाग्वादिनी देवी सरस्वती मम् जिह्वाग्रे वासं कुरु-कुरु स्वाहा। 

 

रहस्यं श्रुणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।

श्री चन्द्रघन्टास्य कवचं सर्वसिध्दिदायकम्॥