केवल जानकारी छिपाने का मतलब यह नहीं है कि नियोक्ता मनमाने ढंग से कर्मचारी को बर्खास्त कर सकता है: न्यायालय

केवल जानकारी छिपाने का मतलब यह नहीं है कि नियोक्ता मनमाने ढंग से कर्मचारी को बर्खास्त कर सकता है: न्यायालय

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  • Publish Date - May 3, 2022 / 05:57 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:57 PM IST

नयी दिल्ली, तीन मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि किसी मामले में कोई सूचना छिपाना या झूठी जानकारी देने का मतलब यह नहीं है कि नियोक्ता मनमाने ढंग से कर्मचारी को सेवा से बर्खास्त/समाप्त कर सकता है।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि एक उम्मीदवार जो चयन प्रक्रिया में भाग लेना चाहता है, उसे सेवा में शामिल होने से पहले और बाद में सत्यापन/प्रमाणीकरण प्रपत्र में हमेशा अपने चरित्र और महत्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुत करना आवश्यक है।

पीठ ने कहा, ‘‘किसी मामले में केवल जानकारी को छिपाने या झूठी जानकारी देने का मतलब यह नहीं है कि नियोक्ता मनमाने ढंग से कर्मचारी को सेवा से बर्खास्त/समाप्त कर सकता है।’’

शीर्ष अदालत पवन कुमार द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) में कांस्टेबल के पद के लिए चुना गया था।

जब वह प्रशिक्षण ले रहे थे, तो उन्हें इस आधार पर एक आदेश द्वारा हटा दिया गया था कि उन्होंने यह खुलासा नहीं किया कि उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जिस व्यक्ति ने जानकारी को छिपाया है या गलत घोषणा की है, उसे नियुक्ति या सेवा में बनाये रखने की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है, लेकिन कम से कम उसके साथ मनमाने ढंग से व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता द्वारा भरे गए सत्यापन फॉर्म के समय, उसके खिलाफ पहले से ही आपराधिक मामला दर्ज किया गया था, शिकायतकर्ता ने अपना हलफनामा दायर किया था कि जिस शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी वह गलतफहमी के कारण थी।

पीठ ने कहा, ‘‘हमारे विचार में 24 अप्रैल 2015 को सक्षम प्राधिकारी द्वारा पारित सेवा से हटाने का आदेश उपयुक्त नहीं है और इसके बाद दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा पारित निर्णय सही नहीं है और यह रद्द करने योग्य है।’’

भाषा

देवेंद्र उमा

उमा