16 हजार से अधिक लोग पिछले तीन साल से बच्चा गोद लेने का इंतजार कर रहे : आधिकारिक आंकड़े |

16 हजार से अधिक लोग पिछले तीन साल से बच्चा गोद लेने का इंतजार कर रहे : आधिकारिक आंकड़े

16 हजार से अधिक लोग पिछले तीन साल से बच्चा गोद लेने का इंतजार कर रहे : आधिकारिक आंकड़े

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:30 PM IST, Published Date : July 3, 2022/4:54 pm IST

(उज्मी अतहर)

नयी दिल्ली, तीन जुलाई (भाषा) भारत में 16,000 से ज्यादा लोग बच्चा गोद लेने के लिए तीन साल से अधिक समय से इंतजार कर रहे हैं। अधिकारियों ने इसके लिए उन बच्चों की कम उपलब्धता को जिम्मेदार ठहराया है, जिन्हें कानूनी रूप से आसानी से गोद लिया जा सकता है।

‘पीटीआई-भाषा’ द्वारा सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत दायर किए गए एक आवेदन के जवाब में केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (सीएआरए) के अधिकारियों ने जो आंकड़े साझा किए, उनके मुताबिक देशभर में ऐसे 28,501 संभावित माता-पिता हैं, जिनकी गृह अध्ययन रिपोर्ट को मंजूरी दे दी गई है और वे बच्चे को गोद लेने की कतार में हैं।

आंकड़ों के अनुसार, इनमें से 16,155 संभावित माता-पिता की गृह अध्ययन रिपोर्ट तीन साल पहले स्वीकृत की जा चुकी है और वे अब तक बच्चे को गोद लेने का इंतजार कर रहे हैं।

आंकड़ों पर गौर करें तो 28 जून तक भारत में 3,596 बच्चे कानूनी रूप से गोद लेने के लिए उपलब्ध थे, जिनमें विशेष जरूरतों वाले 1,380 बच्चे भी शामिल हैं।

इस संबंध में एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “गोद लेने की औसत प्रतीक्षा अवधि दो से ढाई वर्ष है और फिर ऐसे बच्चों की संख्या बेहद कम है, जो कानूनी रूप से आसानी से गोद लेने के लिए उपलब्ध हैं। इससे भावी माता-पिता के लिए गोद लेने की खातिर बच्चों को ढूंढ़ना और मुश्किल हो जाता है।”

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, विशेष दत्तक ग्रहण एजेंसियों में 2,971 बच्चे रहते हैं, जो ‘गोद लेने योग्य नहीं’ की श्रेणी में आते हैं, जबकि विशेष दत्तक-ग्रहण केंद्रों में लगभग 7,000 बच्चे मौजूद हैं।

वहीं, एक अन्य अधिकारी ने समझाया कि ‘‘गोद लेने योग्य नहीं’’ श्रेणी में वे बच्चे आते हैं, जिनके जैविक अभिभावकों ने उन्हें गोद देने की स्वीकृति नहीं दी है। उन्होंने बताया कि ऐसे बच्चों को बाल आश्रय गृहों में इसलिए रखा जाता है, क्योंकि उनके माता-पिता उनकी परवरिश का खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं।

अधिकारी के अनुसार, अगर बच्चे की उम्र पांच साल से अधिक है तो गोद देने से पहले उसकी मंजूरी लेना भी जरूरी है।

संसद के पिछले सत्र में एक संसदीय समिति ने भारत में गोद देने की प्रक्रिया को सरल बनाने और इसे नियंत्रित करने वाले विभिन्न नियामकों पर दोबारा गौर फरमाने का सुझाव दिया था।

यही नहीं, केंद्र सरकार ने पिछले साल किशोर न्याय अधिनियम में संशोधन किया था, जिसके तहत देश में गोद लेने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए जिलाधिकारियों को अधिक शक्तियां और जिम्मेदारियां दी गई थीं। पहले, गोद देने की प्रक्रिया अदालतों के दायरे में आती थी।

हालांकि, बाल अधिकार विशेषज्ञों का मानना ​​है कि केवल प्रक्रिया को सरल बनाने की नहीं, बल्कि इससे भी कहीं अधिक किए जाने की जरूरत है।

‘हक : सेंटर फॉर चाइल्ड राइट्स’ के सह-निदेशक कुमार शैलभ का कहना है कि गोद लेने की प्रक्रिया बेहद जटिल है और किशोर न्याय अधिनियम में संशोधन से पहले अदालतों में काफी लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था।

शैलभ के अनुसार, “पर अब जिलाधिकारी इस प्रक्रिया को देखेंगे, लेकिन जिला प्रशासन के पास करने के लिए और भी बहुत से काम हैं। ऐसे में गोद लेने के लिए आवश्यक जांच और प्रक्रिया बेहद सतही हो गई है। इसके अलावा, क्या जिला प्रशासन के पास यह पता लगाने की पर्याप्त क्षमता और संसाधन हैं कि बच्चे को वैध कारणों से गोद लिया जा रहा है, क्योंकि गोद लेने के नाम पर तस्करी के मामले सामने आए हैं। लिहाजा संशोधन के बाद समस्या एक नया स्वरूप और आकार लेने जा रही है।”

गैर-सरकारी संगठन ‘सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च’ की कार्यकारी निदेशक अखिला शिवदास का कहना है कि मुद्दा सिर्फ गोद लेने की प्रक्रिया को सरल बनाना भर नहीं है, बल्कि यह भी है कि सरकारें कैसे इस कार्यक्रम को क्रियान्वित करती हैं।

शिवदास के मुताबिक, “इस मुद्दे पर जनता को जागरूक करने से लेकर बच्चे को भावी माता-पिता को सौंपने तक की जिम्मेदारी संभालने वाले पदाधिकारियों और कर्मचारियों को अपने काम को सार्वजनिक सेवा के रूप में देखना चाहिए। अगर वे इस दिशा में समुदायों एवं नागरिकों की भागीदारी बढ़ाएंगे तो प्रशासनिक नियमों के बोझ तले कम दबा हुआ और कम हतोत्साहित महसूस करेंगे।”

भारत में बच्चे को गोद लेने के लिए संभावित माता-पिता को सीएआरए की वेबसाइट पर प्रासंगिक दस्तावेजों के साथ गोद लेने से संबंधित अपना आवेदन अपलोड करना होता है, जिसके बाद एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा गृह अध्ययन किया जाता है।

गृह अध्ययन को मंजूरी मिलने के बाद विशेष दत्तक ग्रहण एजेंसियों द्वारा गोद लेने के लिए कानूनी रूप से उपलब्ध बच्चों का प्रोफाइल संभावित माता-पिता के साथ साझा किया जाता है। संभावित माता-पिता मनचाहे बच्चे का चयन करते हैं, जिसके बाद जिलाधिकारी पूरी प्रक्रिया को देखते हैं।

भाषा पारुल नेत्रपाल

नेत्रपाल

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)