दीमापुर, 13 नवंबर (भाषा) नगालैंड के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) रूपिन शर्मा ने बृहस्पतिवार को पूर्वोत्तर में मादक पदार्थों की तस्करी को ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल’ व ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा’ करार दिया और क्षेत्र की कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच एकीकृत व प्रौद्योगिकी-संचालित प्रतिक्रिया का आग्रह किया।
शर्मा ने सिक्किम और पश्चिम बंगाल सहित पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए मादक पदार्थ निरोधक कार्यबल (एएनटीएफ) के दो दिवसीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में मुख्य भाषण देते हुए कहा कि स्वर्णिम त्रिभुज (गोल्डन ट्रायंगल) से निकटता और म्यांमा के साथ लगी सीमा के कारण पूर्वोत्तर भारत मादक पदार्थों के खिलाफ लड़ाई का ‘केंद्र’ बन गया है।
इस सम्मेलन का आयोजन स्वापक नियंत्रण ब्यूरो (एनसीबी) और नगालैंड पुलिस ने चुमौकेदिमा में संयुक्त रूप से किया था।
शर्मा ने चेतावनी देते हुए कहा, “भारत-म्यांमा सीमा ज्यादातर जगह बिना बाड़ के है और यहां मुक्त आवागमन होता है, जो तस्करों को जातीय रिश्तेदारों के साथ घुलने-मिलने और बेरोकटोक सीमा पार करने की अनुमति देता है। मादक पदार्थों की तस्करी अब केवल कानून-व्यवस्था का मुद्दा नहीं रह गया बल्कि यह आंतरिक सुरक्षा और हमारे युवाओं के भविष्य के लिए सीधा खतरा बन गया है।”
उन्होंने बताया कि अनुमान के अनुसार, अकेले नगालैंड में मादक पदार्थों का सेवन करने वाले लगभग 1.2 लाख लोग हैं, जिनमें स्थानीय रूप से ‘शानफ्लावर’ के नाम से जानी जाने वाली हेरोइन का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।
अधिकारी ने बताया, “अगर उनमें से आधे लोग भी रोजाना आधा ग्राम हेरोइन का सेवन करते हैं, तो अकेले नगालैंड में प्रति वर्ष 10,000 किलोग्राम से ज्यादा और पूरे पूर्वोत्तर में लगभग एक लाख किलोग्राम हेरोइन पहुंचती है ।”
पुलिस महानिदेशक ने इस बात पर जोर दिया कि इस क्षेत्र में मादक पदार्थों का व्यापार संगठित अपराध, उग्रवाद व आतंकवाद को बढ़ावा देता है।
उन्होंने यह भी बताया कि कई उग्रवादी कैडर व्यक्तिगत रूप से तस्करी में शामिल हैं।
अधिकारी ने जोर देकर कहा, “मादक पदार्थों के तस्करों का खात्मा राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के समान है।”
भाषा जितेंद्र मनीषा
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