ओडिशा: ‘महिसासुरमर्दिनी’ की मूर्ति की खोज, इतिहासकारों की सर्वेक्षण रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग

ओडिशा: ‘महिसासुरमर्दिनी’ की मूर्ति की खोज, इतिहासकारों की सर्वेक्षण रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग

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  • Publish Date - April 22, 2022 / 01:15 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:50 PM IST

भुवनेश्वर, 22 अप्रैल (भाषा) एएसआई टीम द्वारा यहां एक आंशिक रूप से दबे हुए मंदिर के ‘गर्भगृह’ को साफ करते हुए ‘महिसासुरमर्दिनी’ की एक मूर्ति की खोज के एक दिन बाद इतिहासकारों ने छिपी हुई कलाकृतियों की बेहतर समझ के लिए क्षेत्र की पिछले साल की रडार सर्वेक्षण रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का आह्वान किया है। मूर्ति को 1400 साल पुरानी माना जा रहा है।

एएसआई के अधीक्षण पुरातत्वविद् (भुवनेश्वर सर्कल) अरुण मलिक ने कहा कि मूर्ति के अलावा, श्री लिंगराज मंदिर के पास स्थल से कई अन्य शिलालेख और मूर्तियां मिली हैं। एएसआई ने कहा है कि यह मूर्ति 1400 साल पुरानी या 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व की है।

फरवरी में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण टीम द्वारा भुवनेश्वर के ओल्ड टाउन क्षेत्र में एक अन्य प्राचीन मंदिर के खंडहरों का पता लगाने के दौरान भगवान विष्णु की एक मूर्ति मिलने के बाद राज्य की राजधानी में यह दूसरी ऐसी खोज है। ओल्ड टाउन क्षेत्र में भबानी शंकर मंदिर और सुका साड़ी मंदिर के बीच खुदाई का कार्य किया जा रहा है।

शहर में चल रही सौंदर्यीकरण परियोजना को लेकर राज्य सरकार के साथ टकराव में रहने वाले इतिहासकार अनिल धीर ने कहा कि पिछले साल आईआईटी-गांधीनगर द्वारा आयोजित पूरे क्षेत्र की जमीनी पैठ रडार सर्वेक्षण रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।

उन्होंने यह भी दावा किया कि इलाके में इस तरह के और भी कई दबे हुए ढांचे हैं।

विरासत खोजकर्ता और विशेषज्ञ दीपक नायक ने कहा कि एएसआई को ‘महिषासुरमर्दिनी’ की मूर्ति को 1,400 साल पुरानी घोषित नहीं करना चाहिए क्योंकि इसके केवल ऊपरी हिस्से की खुदाई की गई है।

उन्होंने कहा, ‘‘किसी भी ‘महिषासुरमर्दिनी’ की मूर्ति के काल की पहचान उस राक्षस की प्रतिमा के आधार पर की जा सकती है जिसका देवी द्वारा वध किया जा रहा है … ऊपरी भाग के आधार पर काल निर्धारित करना गलत है, पूरी तरह से खुदाई के बाद ही वास्तविक काल का पता लगाया जा सकता है।’’

भाषा नरेश नरेश गोला

गोला