उमर ने सुरक्षा संबंधी निर्णयों से अलग रखने के लिये केंद्रशासित प्रदेश मॉडल को जिम्मेदार बताया

उमर ने सुरक्षा संबंधी निर्णयों से अलग रखने के लिये केंद्रशासित प्रदेश मॉडल को जिम्मेदार बताया

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  • Publish Date - December 6, 2025 / 06:44 PM IST,
    Updated On - December 6, 2025 / 06:44 PM IST

नयी दिल्ली, पांच दिसंबर (भाषा) जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने शनिवार को अपने कार्यकाल के पहले वर्ष को बड़े आतंकवादी हमलों के कारण ‘कठिन’ साल बताया। उन्होंने साथ ही सुरक्षा संबंधी निर्णय लेने की प्रक्रिया से अलग रखे जाने के लिये केंद्र शासित प्रदेश मॉडल को जिम्मेदार ठहराया।

उमर अब्दुल्ला ने यहां आयोजित ‘हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट’ में घरेलू आतंकवाद की ‘वापसी’ की धारणा को खारिज कर दिया और दलील दी कि यह वास्तव में कभी खत्म नहीं हुआ था।

उन्होंने चेतावनी दी कि जो लोग 2019 में हुए संवैधानिक परिवर्तनों को आतंक के लिए एक ‘चमत्कारी इलाज’ मानते थे, वे ही बैसरन (पहलगाम) में (22 अप्रैल) हुए हमले और दिल्ली में (10 नवंबर) को हुए विस्फोट जैसी घटनाओं से हतप्रभ थे।

अब्दुल्ला ने कहा,‘‘आप वापसी शब्द का इस्तेमाल क्यों कर रहे हैं? यह कब खत्म हुआ था? यह तो पहले से ही था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जम्मू-कश्मीर और शेष भारत के बीच संवैधानिक संबंधों में आपने जो परिवर्तन किए हैं, उनसे चमत्कारिक रूप से आतंकवाद का अंत नहीं होने वाला है।’’

मुख्यमंत्री ने कहा कि वह ‘‘वास्तव में हतप्रभ’’ हैं कि जम्मू-कश्मीर के बाहर के लोगों को यह समझने में इतना समय लग गया कि शायद हालात उतने अच्छे नहीं हैं, जितना देश के बाकी हिस्सों को बताया गया था।

उन्होंने उम्मीद व्यक्त की कि बैसरन और दिल्ली में जो कुछ हुआ, वह एक पर्याप्त चेतावनी है, ‘‘ताकि हमें उस चीज़ की गंभीरता का एहसास हो जाए जिससे हम निपट रहे हैं।’’

अब्दुल्ला ने तीव्र प्रतिक्रिया की आशंका को लेकर चेतावनी देते हुए कहा कि हाल की आतंकवादी घटनाओं ने देश को प्रभावी रूप से ‘‘सीमा तय करने के लिए प्रेरित किया है और इसकी वजह से घोषणा की गई भविष्य में इस तरह के किसी भी हमले को ‘‘युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा’’।

मुख्यमंत्री ने सुझाव दिया कि इस तीव्र तनाव की स्थिति के कारण यह सुनिश्चित करना और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया है कि ऐसे हमले फिर न हों। उन्होंने कहा कि दिल्ली विस्फोट में स्पष्ट रूप से देश के ही लोगों का हाथ होना एकमात्र राहत की बात थी, क्योंकि इसने सरकार को ‘आंतरिक सुरक्षा पर मोदी सिद्धांत’ को तत्काल लागू करने से रोक दिया, एक ऐसी प्रतिक्रिया, जो किसी ‘बाहरी हाथ’ के अभाव के कारण टल गई।

मुख्यमंत्री ने मुख्यमंत्री ने यह सुझाव भी दिया कि कोई भी सरकारें ‘साइलो’ (पृथकता) में संचालित नहीं कर सकता, जहाँ एक निर्वाचित सरकार सुरक्षा-संबंधी किसी भी निर्णय से पूरी तरह से अलग हो।

अब्दुल्ला ने आश्चर्य व्यक्त किया कि यदि निर्वाचित प्रतिनिधि ‘‘सुरक्षा को प्रभावित करने वाले निर्णयों में कोई भूमिका नहीं निभाते हैं’’ तो वे सूचना के उचित प्रवाह की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। उन्होंने अपने वर्तमान कार्यकाल की तुलना पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल से की।

अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘मैं बिना किसी डर के आपको बता सकता हूं कि केंद्र शासित प्रदेश मॉडल काम नहीं करता है।’’

मुख्यमंत्री ने केंद्र शासित प्रदेश मॉडल के तहत अपने ‘सीमित’ अधिकार का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्हें जम्मू-कश्मीर में महत्वपूर्ण सुरक्षा बैठकों से दूर रखा गया है, जहां वह शासन कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने अखबार में दिल्ली विस्फोट के बारे में पढ़ा। मुझे नहीं पता था कि हमला किसने किया… (या) जांच कैसे चल रही है।’’

अब्दुल्ला ने स्थिति की तुलना मुख्यमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल से की, जब पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) उन्हें घटनाक्रम के बारे में तुरंत सूचित करते थे।

अब्दुल्ला ने एक चौंकाने वाला, अनौपचारिक किस्सा भी सुनाया, जो केवल ‘‘सड़कों पर बातचीत’’ के दौरान सुनी गई थी, कि कैसे दिल्ली की साजिश का पर्दाफाश हुआ, क्योंकि एक नाराज लड़की ने अपने पूर्व प्रेमी के बारे में पुलिस से शिकायत की, जिसने पुलिस को एक ऐसे नेटवर्क तक पहुँचाया, जो साजिश में शामिल एक डॉक्टर का पता लगाने पर समाप्त हुआ।

अब्दुल्ला ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि बैसरन हमले के बाद हिंसा के खिलाफ जनता का एकजुट रुख जम्मू-कश्मीर के बाहर के लोगों के भेदभावपूर्ण व्यवहार के कारण कमजोर हो रहा है। उन्होंने कुछ राज्य सरकारों के आदेशों का हवाला दिया, जिसमें ‘‘सभी विदेशी नागरिकों और कश्मीरी मुसलमानों को अपने निकटतम पुलिस स्टेशन में पंजीकरण कराने’’ के लिए कहा गया है।

मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘आप प्रभावी रूप से कह रहे हैं कि कश्मीरी मुसलमान और विदेशी आपके लिए एक समान हैं।’’ उन्होंने चेतावनी दी कि इस ‘अलगाव’ के कारण युवाओं को देश भर में बेहतर शैक्षिक और आर्थिक अवसरों की तलाश में जम्मू-कश्मीर छोड़ने के लिए ‘समझाना बहुत मुश्किल’ हो जाता है, क्योंकि वे पाते हैं कि उन्हें ‘अविश्वसनीय’ माना जा रहा है।

अब्दुल्ला ने कहा कि यदि कोई पूछे कि क्या सभी कश्मीरी हिंसा का समर्थन कर रहे हैं, तो इसका उत्तर ‘नहीं’ है, क्योंकि वे पहलगाम में जो हुआ उससे उतने ही परेशान हैं, जितने कि दिल्ली में हुई घटना से।

मुख्यमंत्री ने कहा,‘‘क्या वे इस भावना को और अधिक खुले तौर पर व्यक्त करते हैं? शायद नहीं। लेकिन इसका अभिप्राय यह नहीं है कि यह हमें परेशान नहीं करता। इसका मतलब यह नहीं है कि हम इसे घृणित नहीं मानते। हम इसे अब भी मानते हैं। इसके साथ ही, हम तब भी उतने ही चिंतित होते हैं, जब पूरे समुदाय को एक ही रंग में रंगने की कोशिश की जाती है।’’

उन्होंने दोहराया कि सभी कश्मीरी मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं और सभी कश्मीरी मुसलमान आतंकवाद का समर्थन नहीं करते।

अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘वास्तव में, ऐसा करने वालों की संख्या बहुत कम है। इनमें से ज़्यादातर लोग वे हैं, जिन्हें आपने बैसरन में हुए हमले के बाद सड़कों पर देखा। ये वे लोग हैं, जो देश के विभिन्न हिस्सों में महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में पढ़ते हैं। ये वे लोग हैं, जो अलग-अलग इलाकों में ईमानदारी से रोजी-रोटी कमाने की कोशिश कर रहे हैं।’’

भाषा धीरज माधव दिलीप

दिलीप