अभिमान हमें है खुद पर
कि हम ‘हिन्दी’ हैं
देश हमारा हिन्दी है
वेश हमारा हिन्दी है
हम हिन्दी खाते-पीते हैं
हिन्दी में ही जीते-मरते हैं
रोटी थाली में हिन्दी की
घूंट नीर के हिन्दी हैं
हंसी-ठिठोली हिन्दी की
करुणा, क्रंदन हिन्दी है
वेग पवन का हिन्दी है
तो बहती जलधारा हिन्दी है
मिलना-जुलना हिन्दी है
और बिछड़े तो दुख हिन्दी है
हिन्दी ही आवेग हमारा
और ठहरे तो हिन्दी है
रस्ता, मंजिल, पग-पग हिन्दी
जीवन सफर भी हिन्दी है
उठकर गिरना गिरके संभलना
हर सीख बड़ों की हिन्दी है
भाषा तो कई एक मगर
खून में बसती हिन्दी है……..