नयी दिल्ली, 26 अप्रैल (भाषा) विभिन्न पर्यावरण संगठनों ने शुक्रवार को दावा किया कि केंद्र के ‘ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम’ से वनों की कटाई को बढ़ावा मिलेगा और वनों में रहने वाले समुदायों के अधिकारों का हनन होगा। इन संगठनों ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से सभी संबंधित अधिसूचनाएं और आदेश वापस लेने का अनुरोध किया।
‘ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम’ को पिछले साल अक्टूबर में अधिसूचित किया गया था। यह एक अभिनव बाजार-आधारित व्यवस्था है, जिसे व्यक्तियों, समुदायों, निजी क्षेत्र के उद्योगों और कंपनियों जैसे विभिन्न हितधारकों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में स्वैच्छिक पर्यावरणीय कार्यों को प्रोत्साहित करने के लिए तैयार किया गया है।
वृक्षारोपण के संबंध में 22 फरवरी को अधिसूचित‘ग्रीन क्रेडिट’ नियमों में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति या निजी संस्था अब खुले जंगल और झाड़ियों वाली भूमि, बंजर भूमि और जलग्रहण क्षेत्रों में वृक्षारोपण कर सकती है और ‘ग्रीन क्रेडिट’ अर्जित कर सकती है।
लेट इंडिया ब्रीथ, फ्राइडेज फॉर फ्यूचर, सेंटर फॉर फाइनेंशियल अकाउंटेबिलिटी, हिमधारा कलेक्टिव, फ्रेंड्स ऑफ लद्दाख और नर्मदा बचाओ आंदोलन समेत सौ से अधिक पर्यावरण संगठनों ने कहा कि ‘ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम’ के लिए अपनाए गए ‘‘अस्थिर’’ दृष्टिकोण और इन प्राकृतिक भूमि के संरक्षण, बहाली और प्रबंधन के लिए ‘‘बाजार शक्तियों पर निर्भरता’’ के बारे में गंभीर चिंताएं रही हैं।
पर्यावरण संगठनों द्वारा लिखे गये पत्र में कहा गया है, ‘‘हम पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से ग्रीन क्रेडिट नियम, 2023 और फरवरी 2024 में अधिसूचित सभी अधिसूचनाओं/आदेशों को तुरंत वापस लेने का आग्रह करते हैं।’’
पर्यावरण संगठनों ने दावा किया कि ऐसे समय में जब पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए कानूनी ढांचे को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, ‘ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम’ (जीसीपी) से केवल प्राकृतिक संसाधनों का दोहन होगा।
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देवेंद्र माधव
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