महज 4500 रुपये क्षतिपूर्ति के खिलाफ मुकदमा लड़ने पर डाक विभाग को लताड़ |

महज 4500 रुपये क्षतिपूर्ति के खिलाफ मुकदमा लड़ने पर डाक विभाग को लताड़

महज 4500 रुपये क्षतिपूर्ति के खिलाफ मुकदमा लड़ने पर डाक विभाग को लताड़

:   Modified Date:  December 2, 2022 / 08:48 PM IST, Published Date : December 2, 2022/8:48 pm IST

प्रयागराज, दो दिसंबर (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आवेदकों को 4500-4500 रुपये की क्षतिपूर्ति के भुगतान के मुरादाबाद की स्थायी लोक अदालत के आदेश के खिलाफ सात साल तक मुकदमा लड़ने के लिए डाक विभाग को फटकार लगाई है।

इन आवेदकों ने डाक विभाग के स्पीड पोस्ट से अपने पासपोर्ट और डिमांड ड्राफ्ट भेजे थे जो रास्ते में कहीं गुम हो गए थे।

डाक विभाग के वरिष्ठ अधीक्षक और तीन अन्य लोगों की रिट याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति विवेक चौधरी ने कहा, “याचिकाकर्ताओं ने प्रत्येक प्रतिवादी के पक्ष में दी गई 4500 रुपये की क्षतिपूर्ति के खिलाफ इस अदालत का रुख किया। यह याचिका 2015 से लंबित है और इस क्षतिपूर्व के खिलाफ एक सरकारी विभाग द्वारा सात साल तक मुकदमा लड़ा गया। यह न्यायपालिका के साथ एक क्रूर मजाक लगता है।”

अदालत ने कहा, “डाक विभाग ने क्षतिपूर्ति के मुकाबले इस मुकदमेबाजी में निश्चित रूप से कहीं अधिक पैसा खर्च किया है। सबसे बड़ी बात कि प्रतिवादी यह मुकदमा तक नहीं लड़ रहे हैं।”

याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि भारतीय डाक कार्यालय अधिनियम 1898 की धारा छह के मुताबिक, सामान के खो जाने, गलत जगह डिलीवरी, विलंब या किसी डाक का नुकसान होने पर डाक विभाग की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती।

उन्होंने दलील दी कि स्थायी लोक अदालत, डाक विभाग को मिली प्रतिरक्षा के इस प्रावधान के तहत आवेदन पर विचार नहीं कर सकती।

इस पर उच्च न्यायालय ने कहा, “स्थायी लोक अदालत को इस तरह के मामलों पर निर्णय करने के लिए वह सभी अधिकार मिले हैं जो दीवानी अदालतों के पास हैं। इसलिए इस दलील में कोई दम नहीं है कि स्थायी लोक अदालत डाक विभाग के खिलाफ मामलों पर निर्णय नहीं कर सकती।”

उच्च न्यायालय ने बुधवार को दिए अपने निर्णय में कहा, “उच्चतम न्यायालय ने कई बार चेतावनी दी है कि अनावश्यक मुकदमों से अदालतों का काफी समय बर्बाद होता है। इस याचिका में कोई दम नहीं है, इसलिए खारिज किया जाता है।”

भाषा राजेंद्र राजकुमार

राजकुमार

 

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