समलैंगिक विवाह: उच्च न्यायालय ने केंद्र के हलफनामे में आपत्तिजनक शब्दों पर नाखुशी जताई

समलैंगिक विवाह: उच्च न्यायालय ने केंद्र के हलफनामे में आपत्तिजनक शब्दों पर नाखुशी जताई

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  • Publish Date - May 17, 2022 / 06:42 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:02 PM IST

नयी दिल्ली, 17 मई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने ‘एलजीबीटीक्यू’ जोड़ियों की एक याचिका का विरोध करते हुए केंद्र द्वारा दाखिल किये गये हलफनामे पर मंगलवार को नाखुशी जताई क्योंकि इसमें कुछ आपत्तिजनक शब्द हैं।

एलजीबीटीक्यू जोड़ियों ने विभिन्न कानूनों के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए याचिकाओं के एक समूह की सुनवाई का सीधा प्रसारण करने का अनुरोध किया है।

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि केंद्र सरकार ने हलफनामे में अत्यधिक आपत्तिजनक और अपमानजनक टिप्पणियां की हैं। इस पर, उच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसा हलफनामा मंत्रालय से नहीं आना चाहिए था और वकील को इसे पढ़े बगैर दाखिल नहीं करना चाहिए था।

अदालत को यह सूचित किया गया कि हालांकि सरकार का हलफनामा दाखिल हो गया है, लेकिन यह रिकार्ड में नहीं है।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील से कहा, ‘‘क्या आपने हलफनामा पढ़ा है? हम आपको इसे रिकार्ड में नहीं रखने और इस पर पुनर्विचार करने की सलाह देते हैं। इसे रिकार्ड में नहीं रखें। यह सही नहीं है। आपका हलफनामा मंत्रालय से नहीं आना चाहिए था और आपको इसे पढ़े बगैर दाखिल नहीं करना चाहिए था। ऐसा नहीं होना चाहिए था।’’

पीठ ने कहा, ‘‘वकील होने के नाते इसे पढ़ना आपकी जिम्मेदारी है और यदि कुछ आपत्तिजनक हो तो उसे बताएं। आपको उसके मुताबिक अपने मुवक्किल को सलाह देना चाहिए। इस पर बिना सोचे समझे कुछ ना करें। ’’

इस पर केंद्र के वकील ने कहा, ‘‘मैं जिम्मेदारी लेता हूं’’ और वह जवाब की पड़ताल करेंगे तथा एक बेहतर हलफनामा दाखिल करेंगे।

अदालत ने कहा कि वकील का जवाब सुनवाई की अगली तारीख 24 अगस्त से पहले रिकार्ड में रखी जाए।

सुनवाई की शुरूआत में, अर्जी दायर करने वालों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने दलील दी कि केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा है कि सीधा प्रसारण करने की मांग करना दुर्भावनापूर्ण है और सहानुभूति पाने के लिए इसका अनुरोध किया गया। उन्होंने कहा कि इस तरह का बयान एक जिम्मेदार सरकार से आना यह प्रदर्शित करता है कि वे समलैंगिक जोड़ियों के अधिकारों को महत्व नहीं दे रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं सचमुच में परेशान हूं कि भारत सरकार ने सहानूभूति और मतिभ्रम जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है। ’’

कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुई मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि केंद्र के वकील को अपनी दलील की शुरूआत एक माफी के साथ करनी चाहिए।

अदालत कई समलैंगिक जोड़ियों की याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई कर रही है। उन्होंने विशेष विवाह अधिनियम, हिंदू विवाह अधिनियम और विदेशी विवाह अधिनियम के तहत अपने विवाहों की मान्यता घोषित करने का अनुरोध किया है।

इस मुद्दे पर कुल आठ याचिकाएं अदालत में दायर की गई हैं।

भाषा

सुभाष उमा

उमा