नयी दिल्ली, पांच दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्र से उस याचिका पर विचार करने को कहा जिसमें सभी राज्यों में मृत शरीर के अंगों के प्रतिरोपण से संबंधित नियमों में एकरूपता की मांग की गई है।
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिंह की पीठ को अंग प्रतिरोपण से संबंधित नियमों में एकरूपता की कमी के बारे में अवगत कराया गया।
पीठ ‘गिफ्ट ऑफ लाइफ एडवेंचर फाउंडेशन’ नाम के एक संगठन द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
याचिका में कहा गया कि मृत शरीर के अंगों के प्रतिरोपण के मामले में किसी राज्य में अंग प्राप्तकर्ता के रूप में पंजीकृत होने के लिए मूल-निवास प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने का नियम ‘मनमाना’ है।
इसमें कहा गया कि नियमों में एकरूपता की कमी के कारण कुछ राज्यों ने शर्तें लगाई हैं जैसे कि व्यक्ति को किसी मृत शरीर के अंगों के प्रतिरोपण का पात्र बनने के लिए 10 से 15 वर्ष की अवधि का मूल-निवास प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होगा।
पीठ ने जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, लेकिन यह केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से समान नियमों की कमी के मुद्दे पर एक प्रतिनिधित्व के रूप में याचिका पर विचार करने के लिए कहने पर सहमत हुई।
याचिका में मानव अंगों और ऊतकों के प्रतिरोपण अधिनियम, 1994 के तहत नियमों में एकरूपता लाने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के वास्ते राज्यों को निर्देश देने का आग्रह किया गया था।
शीर्ष अदालत ने याचिका का निस्तारण करते हुए कहा, ‘हम आपकी याचिका को खारिज नहीं कर रहे हैं…याचिकाकर्ता की शिकायत यह है कि राज्यों द्वारा अंग प्रतिरोपण के पंजीकरण के लिए मूल-निवास प्रमाणपत्र प्राप्त करने की आवश्यकता को लागू किया गया है। इस मामले की केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जांच की जाएगी। कार्रवाई के उचित कारण पर शीघ्रता से नीतिगत निर्णय लिया जाएगा।”
भाषा नेत्रपाल माधव
माधव
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
दुर्लभ बीमारी से पीड़ित बच्चे के पिता ने मदद के…
2 hours agoशादी में मटन कम देने पर गुस्साए बराती, कैटरर के…
2 hours agoभारत चाहता है कि सीडीआरआई से अधिक से अधिक देश,…
2 hours ago