केंद्र और एमसीडी को ‘शेख अली की गुमटी’ के पास से अतिक्रमण हटाने का न्यायालय का निर्देश

केंद्र और एमसीडी को 'शेख अली की गुमटी' के पास से अतिक्रमण हटाने का न्यायालय का निर्देश

केंद्र और एमसीडी को ‘शेख अली की गुमटी’ के पास से अतिक्रमण हटाने का न्यायालय का निर्देश
Modified Date: April 8, 2025 / 08:36 pm IST
Published Date: April 8, 2025 8:36 pm IST

नयी दिल्ली, आठ अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र और दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को लोधी युग के स्मारक ‘शेख अली की गुमटी’ के आसपास से सभी अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने एमसीडी को स्मारक परिसर के अंदर स्थित अपने इंजीनियरिंग विभाग के कार्यालय को दो सप्ताह के भीतर खाली करके भूमि एवं विकास कार्यालय (एलएंडडीओ) को सौंपने का भी निर्देश दिया।

शीर्ष अदालत ने संबंधित पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) और डीसीपी (यातायात) को आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्र की दैनिक निगरानी करने को कहा।

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न्यायालय ने पाया कि डिफेंस कॉलोनी रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) को स्मारक पर अनधिकृत कब्जे के लिए 40 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया गया था, लेकिन इसने राशि जमा नहीं की है। शीर्ष अदालत ने भुगतान के लिए आरडब्ल्यूए को 14 मई तक का समय दिया।

सर्वोच्च न्यायालय ने 25 मार्च को आरडब्ल्यूए को छह दशक से अधिक समय से अनधिकृत कब्जे के लिए मुआवजा देने का निर्देश दिया था।

पीठ ने दिल्ली के पुरातत्व विभाग को स्मारक के जीर्णोद्धार के लिए एक समिति गठित करने का आदेश दिया था, साथ ही स्थल का कब्जा ‘शांतिपूर्ण’ तरीके से भूमि एवं विकास कार्यालय को सौंपने का निर्देश दिया था।

इसके बाद शीर्ष अदालत ने स्वप्ना लिडल द्वारा दायर एक रिपोर्ट का अवलोकन किया। लिडल ‘भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक विरासत न्यास’ के दिल्ली चैप्टर की पूर्व संयोजक हैं।

न्यायालय ने लिडल को इमारत का सर्वेक्षण और निरीक्षण करने तथा स्मारक को हुए नुकसान एवं इसके जीर्णोद्धार की सीमा का पता लगाने के लिए नियुक्त किया था।

पीठ ने नवंबर 2024 में डिफेंस कॉलोनी में स्मारक की सुरक्षा करने में विफल रहने के लिए एएसआई की खिंचाई की थी। सीबीआई ने संकेत दिया कि एक आरडब्ल्यूए 15वीं सदी की इस संरचना को अपने कार्यालय के रूप में इस्तेमाल कर रहा था।

वर्ष 1960 के दशक से इस ढांचे पर आरडब्ल्यूए के कब्जे के बावजूद एएसआई की निष्क्रियता से नाराज होकर पीठ ने कहा, ‘‘आप (एएसआई) किस तरह के अधिकारी हैं? आपका अधिदेश क्या है? आप प्राचीन संरचनाओं की सुरक्षा के अपने अधिदेश से पीछे हट गए हैं। हम आपकी निष्क्रियता से परेशान हैं।’’

इसने कब्जे को उचित ठहराने के लिए आरडब्ल्यूए की इस दलील को लेकर खिंचाई की कि असामाजिक तत्व इसे नुकसान पहुंचा सकते थे।

न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने आरडब्ल्यूए के आचरण और उसके औचित्य पर अपनी नाराजगी व्यक्त की।

शीर्ष अदालत डिफेंस कॉलोनी निवासी राजीव सूरी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम 1958 के तहत संरचना को संरक्षित स्मारक घोषित करने के लिए अदालत से निर्देश देने की मांग की गई थी।

उन्होंने 2019 के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी, जिसने इस तरह का निर्देश पारित करने से इनकार कर दिया था।

शीर्ष अदालत ने इस साल की शुरुआत में सीबीआई से उन परिस्थितियों की जांच करने को कहा था, जिसके तहत आरडब्ल्यूए ने इस परिसर को अपने कार्यालय के रूप में कब्जा लिया। न्यायालय ने इस बारे में एक रिपोर्ट भी पेश करने को कहा था।

जांच एजेंसी ने पीठ को सूचित किया कि आरडब्ल्यूए द्वारा संरचना में कई बदलाव किए गए थे, जिसमें ‘फॉल्स सीलिंग’ भी शामिल है।

शीर्ष अदालत को यह भी बताया गया कि 2004 में, एएसआई ने मकबरे को संरक्षित स्मारक घोषित करने की प्रक्रिया शुरू की, लेकिन आरडब्ल्यूए की आपत्ति के बाद इसे टाल दिया।

न्यायालय को यह भी बताया गया कि 2008 में केंद्र ने इसे संरक्षित संरचना घोषित करने की योजना त्याग दी।

सूरी की याचिका में कई ऐतिहासिक अभिलेखों का हवाला दिया गया है और कहा गया है कि इस संरचना का उल्लेख ब्रिटिश काल के पुरातत्वविद् मौलवी जफर हसन द्वारा 1920 में किए गए दिल्ली के स्मारकों के सर्वेक्षण में मिलता है।

भाषा सुरेश पवनेश

पवनेश


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