न्यायालय ने चीनी मिल की कंपनी पर लगाये गए 18 करोड़ रुपये का पर्यावरण जुर्माना रद्द किया
न्यायालय ने चीनी मिल की कंपनी पर लगाये गए 18 करोड़ रुपये का पर्यावरण जुर्माना रद्द किया
नयी दिल्ली, एक सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में एक चीनी मिल द्वारा पर्यावरण मानदंडों का कथित उल्लंघन करने को लेकर उससे संबद्ध कंपनी पर 18 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाने संबंधी राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के आदेश को सोमवार को निरस्त कर दिया और कहा कि ‘‘न्याय करने की कोशिश में, एनजीटी ने ठीक उल्टा किया।’’
न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने मेसर्स त्रिवेणी इंजीनियरिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड की अपील को स्वीकार कर लिया तथा अधिकरण के 15 फरवरी 2022 और 16 सितंबर 2022 के दो आदेशों को खारिज कर दिया।
पीठ ने कहा कि हरित अधिकरण ने वैधानिक प्रक्रिया और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए फैसले दिये।
चौंसठ पृष्ठों का फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति भुइयां ने अधिकरण के आदेशों की आलोचना करते हुए कहा, ‘‘आमतौर पर, ऐसे मामले में जहां नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन होता है, पक्षों को उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद दोबारा निर्णय लेने के लिए अदालतों/अधिकरणों में भेज दिया जाता है। लेकिन इस मामले में, जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 की धारा 21 और 22 के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन न करने के कारण पूरी प्रक्रिया ही दूषित हो गई है।’’
अधिकरण द्वारा अपनाई गई प्रक्रियाओं में त्रुटियां रेखांकित करते हुए, पीठ के फैसले में कहा गया कि पक्षों को वापस हरित अधिकरण के पास भेजने से ‘‘कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा।’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘जैसा कि हमने पाया है, यह एक उत्कृष्ट मामला है जहां न्याय करने की कोशिश में, एनजीटी ने ठीक उल्टा किया।’’
हालांकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) निरीक्षण कर सकता है और कथित उल्लंघनों पर सुधारात्मक उपाय कर सकता है।
यह मामला अधिकरण के समक्ष चंद्रशेखर नामक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका से उत्पन्न हुआ था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि त्रिवेणी इंजीनियरिंग की खतौली स्थित चीनी इकाई स्थानीय नालों में अशोधित अपशिष्ट डाल रही है, जिससे 1.5 किलोमीटर के दायरे में 50 मीटर की गहराई तक भूजल संदूषित हो रहा है।
भाषा सुभाष अविनाश
अविनाश

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