न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार को नए कानून में अपवाद मानने के खिलाफ याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा

न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार को नए कानून में अपवाद मानने के खिलाफ याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा

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  • Publish Date - May 17, 2024 / 08:12 PM IST,
    Updated On - May 17, 2024 / 08:12 PM IST

नयी दिल्ली, 17 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने नए आपराधिक कानून के तहत वैवाहिक बलात्कार को अपवाद माने जाने को चुनौती देने वाली एक याचिका पर शुक्रवार को केंद्र को नोटिस जारी किया।

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने ‘ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमन एसोसिएशन’ (एआईडीडब्ल्यूए) की याचिका पर नोटिस जारी किया और कहा कि इसे वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने की मांग करने वाली अन्य याचिकाओं के साथ जुलाई में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा।

पीठ ने कहा, ‘यह एक संवैधानिक मुद्दा है। नए कानून के बाद भी यह ज्वलंत रहेगा।’

शीर्ष अदालत ने 16 जनवरी, 2023 को भारतीय दंड संहिता के उस प्रावधान के खिलाफ कुछ याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था, जो पत्नी के वयस्क होने पर जबरन यौन संबंध के लिए अभियोजन से पति को सुरक्षा प्रदान करता है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में दिए गए अपवाद के तहत, यदि पत्नी नाबालिग नहीं है तो पति द्वारा उसके साथ संभोग या यौन क्रिया किया जाना बलात्कार नहीं माना जाएगा।

यहां तक ​​कि नए कानून- भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत, धारा 63 (बलात्कार) के अपवाद-2 में स्पष्ट किया गया है कि यदि पत्नी की उम्र 18 साल से कम नहीं है तो पति द्वारा उसके साथ संभोग या यौन क्रिया किया जाना बलात्कार नहीं है।

बीएनएस के तहत अपवाद के अलावा, एआईडीडब्ल्यूए ने बीएनएस की धारा 67 की संवैधानिकता को भी उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है, जो अलग हो चुकीं पत्नियों से बलात्कार करने वाले विवाहित पुरुषों के लिए दो से सात साल तक की कैद का प्रावधान करती है।

वकील रुचिरा गोयल के माध्यम से दायर याचिका में इस आधार पर प्रावधान पर आपत्ति जताई गई कि संबंधित सजा बलात्कार के मामलों में लागू अनिवार्य न्यूनतम 10 साल की सजा से कम है।

भाषा नेत्रपाल रंजन

रंजन