सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के तहत अवसाद की जांच से 482 अरब रुपये तक की बचत हो सकती है : अध्ययन
सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के तहत अवसाद की जांच से 482 अरब रुपये तक की बचत हो सकती है : अध्ययन
नयी दिल्ली, नौ दिसंबर (भाषा) भारत की प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में अवसाद के लिए सार्वभौमिक जांच को शामिल करने से 291 अरब से 482 अरब रुपये तक की बचत होने की उम्मीद है। ‘द लैंसेट रीजनल हेल्थ साउथईस्ट एशिया’ में प्रकाशित एक अध्ययन में यह अनुमान जताया गया है।
चंडीगढ़ स्थित स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (पीजीआईएमईआर) और बेंगलुरु स्थित राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान (निमहांस) के अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि यह बचत देश के सकल घरेलू उत्पाद के 0.19 प्रतिशत से 0.32 प्रतिशत के बराबर है।
अध्ययन में पाया गया कि 20 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों की जांच करना 30 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की तुलना में सस्ता होगा।
अनुसंधानकर्ताओं ने यह भी कहा कि यदि उपचार प्राप्त करने वाले कम से कम 60 प्रतिशत मरीज सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के माध्यम से उपचार प्राप्त करें तो सही समय पर जांच करने से धन की बचत हो सकती है।
वर्तमान कवायदों में निदान आकस्मिक होता है जैसे कि अन्य कारणों से किए गए परीक्षणों के माध्यम से, और मानसिक विकार के लक्षण वाले रोगियों के इलाज के दौरान इसका पता चलता है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मार्च 2025 के एक बयान के अनुसार, सिजोफ्रेनिया और ऑटिज्म सहित मानसिक विकार की 22 प्रक्रियाओं से संबंधित ‘कैशलेस’ स्वास्थ्य सेवाएं आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री-जन आरोग्य योजना (एबी पीएम-जेएवाई) के तहत पात्र लोगों के लिए उपलब्ध हैं।
अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि अध्ययन में पाया गया कि प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में अवसाद के लिए सार्वभौमिक जांच को शामिल करने से पर्याप्त ‘‘सार्वजनिक स्वास्थ्य और आर्थिक लाभ’’ हासिल किया जा सकता है।
भाषा शफीक नेत्रपाल
नेत्रपाल

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