‘इन देशों में वोटिंग के लिए सख्त नियम’..! मतदान नहीं करने पर जाना पड़ सकता है जेल, आखिर भारत में ऐसा क्यों नहीं? जानें वजह..

Fine For Not Voting : मिस्र एक ऐसा देश है, जहां मतदान को अनिवार्य तो कर दिया गया है लेकिन इस नियम को सख्ती के साथ लागू नहीं किया जाता।

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  • Publish Date - May 22, 2024 / 05:26 PM IST,
    Updated On - May 22, 2024 / 05:26 PM IST

Fine For Not Voting : नई दिल्ली। देश में इस समय लोकतंत्र का महापर्व चल रहा है। लोग अपने मताधिकार का उपयोग कर अपने क्षेत्र के सांसद का चयन कर रहे है। तो वहीं इस वोटिंग के दौरान कई लोग वोट डालने तक नहीं जा रहे हैं। इस बीच, बॉलीवुड एक्टर परेश रावल का एक बयान सामने आया है। दरअसल, परेश रावल ने वोट नहीं देने वालों के लिए टैक्स बढ़ाने जैसी सजा की बात कही है। वर्तमान में भारत में वोटिंग को लेकर जो नियम हैं, उनके अनुसार ऐसा संभव नहीं है। लेकिन कई ऐसे देश हैं जहां वोट नहीं देने पर मोटा जुर्माना भरना पड़ता है। अर्जेंटीना में तो जुर्माना नहीं देने पर दोषी व्यक्ति के लिए एक साल तक सरकारी कामकाज पर रोक लगा दी जाती है और ऑस्ट्रेलिया में तो जेल की हवा तक खानी पड़ सकती है। अमेरिका की इंटेलिजेंस एजेंसी है, CIA. पूरा नाम है सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी।

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अगर वोट नहीं दिया तो जुर्माना

Fine For Not Voting : CIA की वेबसाइट पर एक सेक्शन है ‘द वर्ल्ड फैक्टबुक’। इस सेक्शन में दुनियाभर के देशों के बारे में जानकारी दी जाती है। इसी वेबसाइट के हवाले से अमेरिका की मीडिया संस्थान PBS ने 2014 में एक रिपोर्ट छापी। इस रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में ऐसे 22 देश हैं, जहां मतदान करना अनिवार्य है। ये देश हैं- अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, बोलिविया, ब्राजील, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, कोस्टा रिका, डोमिनिकन गणराज्य, इक्वाडोर, मिस्र(Egypt), यूनान(Greece), होंडुरास, लेबनान, लक्समबर्ग, मेक्सिको, नाउरू, पनामा, परागुआ, पेरू, सिंगापुर, थाइलैंड और उरुग्वे। इनमें से अधिकतर देशों में वोटिंग नहीं करने पर सजा के तौर पर जुर्माना देना पड़ता है।

इनमें मिस्र एक ऐसा देश है, जहां मतदान को अनिवार्य तो कर दिया गया है लेकिन इस नियम को सख्ती के साथ लागू नहीं किया जाता। वहीं, होंडुरास और मेक्सिको में इस नियम का प्रावधान तो है, लेकिन संविधान में इसके लिए किसी सजा के बारे में नहीं बताया गया है। दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी-पूर्वी हिस्से में स्थित देश उरुग्वे में भी जुर्माने का प्रावधान है। और अगर व्यक्ति लोक सेवक या स्नातक पेशेवर है तो जुर्माना दोगुना हो जाता है। जुर्माना नहीं भरने पर व्यक्ति को सरकारी कामों (चाहे व्यक्तिगत हित में या कानूनी प्रतिनिधि के रूप में कोई काम हो) मसलन, फीस या वेतन लेने, विश्वविद्यालयों में परीक्षाओं के लिए रजिस्ट्रेशन करने, पंजीकृत संपत्ति खरीदने या किसी अन्य देश की यात्रा के लिए टिकट खरीदने से रोक दिया जाता है। अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जाता रहा है कि वोटिंग को अनिवार्य करने से इन देशों में वोटिंग परसेंटेज बढ़ा भी है।

आखिर भारत में वोटिंग अनिवार्य क्यों नहीं है?

द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2019 में बिहार के महाराजगंज से भाजपा सांसद जनार्दन सिग्रीवाल ने एक बिल पेश किया था। इस बिल का नाम दिया गया था, अनिवार्य मतदान विधेयक 2019। इस बिल पर तीन साल तक लंबी बहस चली। इस बिल में चुनाव आयोग द्वारा मतदान न करने वालों की एक सूची बनाने और मतदान न करने वालों पर 500 रुपये का जुर्माना लगाने जैसे सुझाव दिए गए थे। अगस्त 2022 में केंद्रीय कानून राज्य मंत्री एसपी सिंह बघेल ने इस बिल पर हस्तक्षेप किया।

लोकसभा में जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि ये बिल प्रैक्टिकल नहीं है। ये सिर्फ अव्‍यावहारिक ही नहीं है बल्कि इससे कई और समस्याएं भी पैदा होंगी। उन्होंने कहा था, “किसी दिहाड़ी मजदूर से मतदान न करने पर 500 रुपये का जुर्माना मांगना भयानक होगा। वैसे ही मतदान न करने वालों की एक प्रामाणिक सूची होना भी भयानक होगा। अगर किसी व्यक्ति ने किसी नेता को वोट देने का वादा किया हो और उस नेता के पास बाहुबल हो, ऐसे में उस नेता को एक लिस्ट मिल जाएगी। उनके लिए ये लिस्ट सुविधाजनक हो सकती है।” मंत्री ने आगे कहा कि कई देशों ने इन्हीं कारणों से अनिवार्य मतदान के फैसले को बदला है। उन्होंने कहा था, “अनिवार्य मतदान एक तरह से लोकतांत्रिक मानदंडों के खिलाफ है। लोकतंत्र लोगों के लिए, लोगों द्वारा और लोगों की सरकार है। आप लोगों को मतदान न करने के लिए दंडित नहीं कर सकते।”

 

एसपी सिंह बघेल ने कहा था कि भारत ने पहले ही एक व्यावहारिक तरीका अपनाया है, जिसके द्वारा लोगों को मतदान के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। इसके बाद जनार्दन सिग्रीवाल ने इस बिल को वापस ले लिया था। इस कारण से ये मामला थोड़ा पेचीदा है। एक तरफ इस लोकसभा चुनाव में मतदान कम हुआ है तो ये सोचने वाली बात है की आखिर इसे कैसे बढ़ाया जाए? अगर इस पर कोई कानून बनता है तो कई तबके के लोगो को इससे जागरूक करने की बजाये उन्हें उल्टा और परेशान ही किया जाएगा।

 

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