न्यायालय ने अरावली पहाड़ियों की केंद्र की परिभाषा स्वीकार की, नए खनन पट्टे देने पर रोक लगाई

न्यायालय ने अरावली पहाड़ियों की केंद्र की परिभाषा स्वीकार की, नए खनन पट्टे देने पर रोक लगाई

न्यायालय ने अरावली पहाड़ियों की केंद्र की परिभाषा स्वीकार की, नए खनन पट्टे देने पर रोक लगाई
Modified Date: November 21, 2025 / 08:05 pm IST
Published Date: November 21, 2025 8:05 pm IST

नयी दिल्ली, 21 नवंबर (भाषा) दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत प्रणालियों की सुरक्षा के उद्देश्य से दिए गए फैसले में उच्चतम न्यायालय ने अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं की एक समान परिभाषा को स्वीकार कर लिया है तथा विशेषज्ञों की रिपोर्ट आने तक दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में फैले इसके क्षेत्रों में नए खनन पट्टे देने पर रोक लगा दी है।

प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई ने बृहस्पतिवार को अपने अंतिम फैसले में अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं की सुरक्षा के लिए अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं की परिभाषा पर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया।

इसके अनुसार, ‘‘अरावली पहाड़ी’’ को अरावली जिलों में किसी भी भू-आकृति के रूप में परिभाषित किया जाएगा, जिसकी ऊंचाई स्थानीय निचले बिंदु से 100 मीटर या उससे अधिक होगी और ‘‘अरावली पर्वतमाला’’ एक-दूसरे से 500 मीटर के भीतर दो या अधिक ऐसी पहाड़ियों का संग्रह होगा।

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समिति ने अरावली पहाड़ियों को परिभाषित करते हुए कहा, ‘‘अरावली जिलों में स्थित कोई भी भू-आकृति, जिसकी स्थानीय निम्न बिंदु से ऊंचाई 100 मीटर या उससे अधिक हो, अरावली पहाड़ियों के रूप में कही जाएगी… ऐसी सबसे निचली समोच्च रेखा से घिरे क्षेत्र के भीतर स्थित संपूर्ण भू-आकृति, चाहे वास्तविक हो या अनुमानत: रूप से विस्तारित, पहाड़ी के साथ, इसके सहायक ढलान और संबद्ध भू-आकृतियों के साथ, चाहे उनका ढाल कुछ भी हो, अरावली पहाड़ियों का हिस्सा मानी जाएगी।’’

इसने अरावली पर्वतमाला को भी परिभाषित किया और कहा, ‘‘दो या अधिक अरावली पहाड़ियां… जो एक-दूसरे से 500 मीटर की दूरी पर स्थित हों, और यह दूरी दोनों ओर की सबसे निचली समोच्च रेखा की बाहरी सीमा से मापी जाए, तो उन्हें मिलाकर अरावली श्रेणी माना जाएगा।’’

पीठ में न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया भी शामिल थे।

न्यायालय ने टीएन गोदावर्मन थिरुमुलपद मामले में लंबे समय से चल रहे पर्यावरण मुकदमे से उत्पन्न स्वत: संज्ञान मामले में 29 पृष्ठों का फैसला सुनाया।

निर्णय लिखने वाले प्रधान न्यायाधीश गवई ने कहा, ‘‘हम समिति की रिपोर्ट में उल्लिखित अपवादों के साथ प्रमुख/अक्षत क्षेत्रों में खनन पर प्रतिबंध लगाने के संबंध में सिफारिशों को स्वीकार करते हैं।’’

पीठ ने दीर्घकालिक खनन के लिए सिफारिशें तथा अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं में अवैध खनन को रोकने के लिए उठाए जाने वाले कदमों से संबंधित सिफारिशों को भी स्वीकार कर लिया।

इसने प्राधिकारियों को अरावली परिदृश्य के भीतर खनन के लिए अनुमत क्षेत्रों और पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील, संरक्षण-महत्वपूर्ण और पुनरुद्धार प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान करने का भी निर्देश दिया, जहां खनन पर सख्ती से प्रतिबंध लगाया जाएगा या केवल असाधारण और वैज्ञानिक रूप से उचित परिस्थितियों में ही अनुमति दी जाएगी।

पीठ ने कहा, ‘‘हम निर्देश देते हैं कि जब तक पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा आईसीएफआरई (भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद) के माध्यम से सतत खनन के लिए प्रबंधन योजना (एमपीएसएम) को अंतिम रूप नहीं दे दिया जाता, तब तक कोई भी नया खनन पट्टा प्रदान नहीं किया जाना चाहिए।’’

इसने कहा, ‘‘इस बीच, पहले से चल रही खदानों में खनन गतिविधियां समिति द्वारा की गई सिफारिशों के सख्त अनुपालन में जारी रहेंगी।’’

शीर्ष अदालत ने 12 नवंबर को अरावली पहाड़ियों और पर्वतमाला को परिभाषित करने के मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

भाषा

नेत्रपाल पवनेश

पवनेश


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