नयी दिल्ली, 17 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि किसी संपत्ति को बेचने का समझौता मालिकाना हक का हस्तांतरण नहीं करता है। न्यायालय ने यह व्यवस्था दी कि मृतक की सभी संपत्तियां पैतृक संपत्ति का हिस्सा हैं और इन्हें मुस्लिम कानून के अनुसार वितरित किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने अपने फैसले में एक निचली अदालत के निर्णय के अंग्रेजी अनुवाद की खराब गुणवत्ता पर भी नाखुशी जताई और इस बात पर जोर दिया कि अपीलीय कार्यवाही में निष्पक्ष निर्णय सुनिश्चित करने के लिए अनुवाद में मूल पाठ के अर्थ और भावना को पूरी ईमानदारी से शामिल किया जाना चाहिए।
यह फैसला मुंबई उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ जोहरबी नामक एक महिला की एक अपील पर आया।
यह मामला चांद खान द्वारा छोड़ी गई संपत्तियों को लेकर पारिवारिक विवाद से उत्पन्न हुआ था, जिनकी मृत्यु हो गई और उनकी संतान नहीं है।
खान की पत्नी जोहरबी ने संपत्ति के तीन-चौथाई हिस्से पर दावा करते हुए दलील दी कि यह मुस्लिम कानून के तहत ‘मतरूक’ संपत्ति है।
चांद खान के भाई इमाम खान ने इस दावे का विरोध करते हुए दलील दी कि संपत्तियां चांद खान के जीवनकाल में ही बिक्री समझौतों के माध्यम से तीसरे पक्ष को हस्तांतरित कर दी गई थीं।
पीठ ने कहा, ‘‘बिक्री समझौता किसी विशेष संपत्ति को खरीदने के लिए सहमत होने वाले पक्ष को न तो कोई अधिकार प्रदान करता है और न ही उसमें कोई हित निहित करता है। यह कानून में एक सर्वमान्य स्थिति है।’’
इसने माना कि चूंकि बिक्री विलेख चांद खान की मृत्यु के बाद ही निष्पादित किए गए थे, इसलिए संपत्ति उनके निधन के समय भी उनके पास ही रही और इसलिए इसे ‘मतरूक’ संपत्ति माना जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति करोल ने अपने फैसले में लिखा, ‘‘बेची जाने वाली संपत्ति, उस समय भी चांद खान की संपत्ति थी और इसलिए लागू कानून के अनुसार संपत्ति बंटवारे के अधीन होगी।’’
परिभाषाओं का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा कि ‘मतरूक’ शब्द अरबी भाषा से लिया गया है और इसका अर्थ है ‘‘मृत व्यक्ति द्वारा छोड़ी गई संपत्ति’’ और यह मुस्लिम उत्तराधिकार कानून के अनुसार हस्तांतरण के अधीन है।
पीठ ने कहा कि मुस्लिम कानून के तहत, यदि मृतक की कोई संतान नहीं है, तो पत्नी एक-चौथाई हिस्से की हकदार है, अन्यथा आठवें हिस्से की।
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शफीक सुरेश
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