सायरो मालाबार चर्च ने छत्तीसगढ़ के गांवों में पादरियों पर प्रतिबंध कायम रखने के फैसले पर चिंता जताई

सायरो मालाबार चर्च ने छत्तीसगढ़ के गांवों में पादरियों पर प्रतिबंध कायम रखने के फैसले पर चिंता जताई

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  • Publish Date - November 3, 2025 / 06:34 PM IST,
    Updated On - November 3, 2025 / 06:34 PM IST

कोच्चि, तीन नवंबर (भाषा) केरल स्थित सायरो मालाबार गिरजाघर ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के हाल के फैसले पर गहरी चिंता व्यक्त की है जिसमें कुछ गांवों में पादरियों और धर्मांतरित ईसाइयों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाले साइनबोर्ड लगाए जाने सही ठहराया है।

फेसबुक पर एक पोस्ट में प्रभावशाली कैथोलिक गिरजाघर ने इस घटनाक्रम को “विभाजन के बाद से देश में देखी गई सबसे विभाजनकारी सीमा” बताया तथा आरोप लगाया कि यह धर्मनिरपेक्ष भारत में “धार्मिक भेदभाव” के एक नए रूप को दर्शाता है।

पोस्ट में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ के कुछ गांवों में पादरियों और धर्मांतरित ईसाइयों पर प्रतिबंध लगाने वाले बोर्ड लगाकर, “संस्थागत सांप्रदायिकता की एक नयी रथयात्रा शुरू कर दी गई है।”

इसमें आग्रह किया गया कि उच्च न्यायालय के फैसले को “उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जानी चाहिए”। इसमें ऐसे “हिंदुत्व आक्रमण” के खिलाफ यह स्पष्ट करते हुए प्रतिरोध का आह्वान किया कि भारत को धर्मनिरपेक्ष बनाए रखने के लिए संघर्ष “केवल भारतीय संविधान के साथ गठबंधन में ही किया जाना चाहिए, जो नागरिकों के अधिकारों का महान चार्टर है”।

पोस्ट में हालांकि “धार्मिक अतिवाद” के अन्य रूपों के साथ जुड़कर इस मुद्दे का मुकाबला करने के प्रति आगाह किया गया है, तथा इसके बजाय धर्मनिरपेक्षता और समानता की रक्षा के लिए संविधान-आधारित दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया गया है।

यह बयान छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय द्वारा आठ गांवों में पादरियों और “धर्मांतरित ईसाइयों” के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाले होर्डिंग्स को हटाने के अनुरोध वाली दो याचिकाओं के निस्तारण के कुछ दिनों बाद आया है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि ये होर्डिंग्स संबंधित ग्राम सभाओं द्वारा “प्रलोभन या धोखाधड़ी के माध्यम से” कथित जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए एहतियाती उपाय के रूप में लगाए गए हैं।

अदालत ने फैसला सुनाया कि इस तरह के होर्डिंग्स लगाना “असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता”।

भाषा प्रशांत माधव

माधव