समय पर पहचान, चिकित्सीय प्रबंधन ने ब्लैक फंगस के मामलों में उत्तरजीविता बढ़ाई : अध्ययन |

समय पर पहचान, चिकित्सीय प्रबंधन ने ब्लैक फंगस के मामलों में उत्तरजीविता बढ़ाई : अध्ययन

समय पर पहचान, चिकित्सीय प्रबंधन ने ब्लैक फंगस के मामलों में उत्तरजीविता बढ़ाई : अध्ययन

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:37 PM IST, Published Date : September 16, 2021/8:13 pm IST

नयी दिल्ली, 16 सितंबर (भाषा) कोविड से संबंधित म्यूकोरमाइकोसिस (ब्लैक फंगस) बीमारी को लेकर उत्तर भारत के पांच राज्यों के 11 अस्पतालों में मरीजों पर किए गए एक अध्ययन में सामने आया कि समय पर रोग की पहचान, ऑपरेशन और चिकित्सीय प्रबंधन ने रोगियों की उत्तरजीविता को बढ़ा दिया है। एक प्रमुख स्वास्थ्य देखभाल समूह ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।

समूह की तरफ से बताया गया कि यह अध्ययन मैक्स हेल्थकेयर समूह की इकाइयों में इस साल मार्च-जुलाई से कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर के दौरान कोविड से जुड़े म्यूकोरमाइकोसिस (सीएएम) के मामलों के नैदानिक ​​प्रोफाइल पर आधारित था।

कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान कई भारतीय राज्यों में सीएएम महामारी के जैसी ही बीमारी के तौर पर उभरा था।

म्यूकोरमाइकोसिस या ब्लैक फंगस उन लोगों में अधिक आम है जिनकी प्रतिरक्षा कोविड, मधुमेह, गुर्दे की बीमारी, यकृत या हृदय संबंधी विकारों, उम्र से संबंधित समस्याओं, या रुमेटीइड गठिया जैसे रोगों की दवा लेने के कारण कम हो गई है।

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्षों से यह सामने आया, “शुरुआत में ही शल्य चिकित्सा और चिकित्सा प्रबंधन के साथ-साथ समय पर निदान ने रोगियों के लिए एक अन्यथा घातक बीमारी की स्थिति में जीवित रहने की बेहतर संभावना पेश की है।”

मैक्स हेल्थकेयर समूह ने एक बयान में कहा कि अध्ययन वर्तमान में मेड्रिक्सिव में अपलोड किया गया है और विशेषज्ञों द्वारा अभी तक इसकी समीक्षा नहीं की गई है। इसमें कहा गया कि मधुमेह और स्टेरॉयड का उपयोग स्पष्ट जोखिम वाले कारक के रूप में उभरा है लेकिन अध्ययन ने सुझाव दिया कि सीएएम के लिए अन्य कारणों का पता लगाने की आवश्यकता है, जिसमें सार्स सीओवी-2 द्वारा निभाई गई प्रत्यक्ष भूमिका भी शामिल है।

समूह ने दावा किया कि भारत में हालांकि हमेशा दुनिया में म्यूकोरमाइकोसिस की सबसे अधिक संख्या दर्ज की गई है, लेकिन महामारी की दूसरी लहर के दौरान जिस तरह से यह उभरी उस तरह से चिकित्सकों ने कभी इसकी रिपोर्ट नहीं की थी। चिकित्सकों ने कहा कि आम तौर पर ब्लैक फंगस के नाम से प्रचलित म्यूकोरमाइकोसिस दरअसल म्यूकोरमाइसेट्स नाम की फफूंदी के समूह से होती है और पर्याप्त तरीके से उपचार नहीं होने पर इसका संक्रमण जानलेवा हो सकता है।

स्वास्थ्य देखभाल समूह ने दावा किया कि दिसंबर 2019 से अप्रैल 2021 तक प्रकाशित साहित्य के आधार पर सीएएम के वैश्विक मामलों में से करीब 71 प्रतिशत भारत में होते हैं।

बयान में कहा गया, “19 मई, 2021 तक भारत में लगभग 5,500 लोग सीएएम से ग्रस्त थे, जिनमें से 126 लोगों की जान इस बीमारी से गई।”

मैक्स हेल्थकेयर के समूह चिकित्सा निदेशक, डॉ. संदीप बुद्धिराजा ने कहा, “कोविड-19 के मध्यम और गंभीर मामलों में, प्रतिरक्षा प्रणाली गंभीर रूप से प्रभावित होती है, जिससे एंजियो-इनवेसिव कोविड-19 से जुड़े म्यूकोरमाइकोसिस (सीएएम) का एक गंभीर रूप हो जाता है, जिसमें यदि कोई रोगी अनुपचारित हो जाता है या लंबे समय तक अनुपचारित रहता है तो मृत्यु दर 80 प्रतिशत तक हो सकती है और उपचार के बाद भी मृत्यु दर 40-50 प्रतिशत हो सकती है।”

उन्होंने कहा, “सार्स सीओवी-2 वायरस के डेल्टा स्वरूप और लंबे समय तक आईसीयू में रहना म्यूकोरमाइकोसिस के उच्च मामलों की एक और वजह हो सकती है। अस्पतालों में ऑक्सीजन की भारी कमी के मद्देनजर औद्योगिक ऑक्सीजन के उपयोग ने भी मामलों को बढ़ाने में योगदान दिया हो सकता है।”

भाषा

प्रशांत पवनेश

पवनेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)