एम्स-ऋषिकेश में निगरानी में श्रमिक, सुरक्षा ऑडिट, मरम्मत के बाद शुरू होगा सुरंग का काम

एम्स-ऋषिकेश में निगरानी में श्रमिक, सुरक्षा ऑडिट, मरम्मत के बाद शुरू होगा सुरंग का काम

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  • Publish Date - November 29, 2023 / 09:56 PM IST,
    Updated On - November 29, 2023 / 09:56 PM IST

(तस्वीरों के साथ)

(आलोक सिंह)

उत्तरकाशी, 29 नवंबर (भाषा) उत्तराखंड में उत्तरकाशी जिले की सिलक्यारा सुरंग से बचाये गये सभी 41 श्रमिकों को बुधवार को हवाई मार्ग से ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ले जाया गया जहां उनकी स्वास्थ्य जांच की गई। इन श्रमिकों में से कई ने बताया कि वे हमेशा एक-दूसरे के साथ खड़े रहे और उन्होंने कभी भी उम्मीद नहीं छोड़ी।

सड़क मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सिलक्यारा सुरंग केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी 900 किलोमीटर लंबी एवं सभी मौसम में इस्तेमाल में सक्षम ‘चार धाम यात्रा रोड’ का हिस्सा है। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में 4.5 किलोमीटर लंबी सिलक्यारा सुरंग परियोजना का जरूरी सुरक्षा ऑडिट और टूटे ढांचे की मरम्मत के बाद फिर से शुरू होगी।

केंद्र और राज्य सरकार की विभिन्न एजेंसियों द्वारा लगातार युद्धस्तर पर चलाए गए बचाव अभियान के 17 वें दिन मंगलवार रात सिलक्यारा सुरंग में फंसे सभी 41 श्रमिकों को सकुशल बाहर निकाल लिया गया था।

श्रमिकों को चिन्यालीसौड़ के एक अस्पताल में चिकित्सा निगरानी में रखा गया।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने श्रमिकों से मिलकर उनका हालचाल जाना और उन्हें एक-एक लाख रूपये की प्रोत्साहन राशि का चेक सौंपा।

मुख्यमंत्री ने श्रमिकों को निकालने के लिए चलाए गए बचाव अभियान के अंतिम दौर में मलबे में पाइप डालने के लिए ‘रैट माइनिंग तकनीक’ से हाथ से खुदाई करने वाले श्रमिकों को भी 50-50 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की।

श्रमिकों को आज दोपहर चिनूक हेलीकॉप्टर से एम्स-ऋषिकेश लाया गया।

एम्स-ऋषिकेश के एक अधिकारी ने कहा कि वे स्वास्थ्य मापदंडों की विस्तृत जांच कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनके मानसिक स्वास्थ्य की भी जांच की जायेगी।

उन्होंने बताया कि उन पर निगरानी रखी जा रही हैं।

धामी ने सुरंग से बाहर निकाले गये श्रमिकों के परिवारों के साथ देहरादून में ‘इगास बग्वाल’ समारोह में कहा, ‘‘अपने श्रमिकों को सुरंग के अंदर फंसा हुआ देखना हम सभी के लिए बहुत दर्दनाक था। कई त्योहार बीत गए… मैंने कहा था कि जिस दिन हमारे श्रमिक सुरक्षित बच जाएंगे, हम सभी त्योहार मनाएंगे। ईश्वर के आशीर्वाद और एजेंसियों के सामूहिक प्रयासों से कल श्रमिकों को निकाल लिया गया।’’

मंगलवार देर रात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ टेलीफोन पर बातचीत में, श्रमिकों ने कहा था कि अपना मनोबल बनाए रखने के लिए वे लोग योग करते थे और सुरंग में चहलकदमी करते थे।

श्रमिकों ने बचाव अभियान के लिए प्रधानमंत्री मोदी, मुख्यमंत्री धामी और बचाव टीमों की सराहना की। इन श्रमिकों में से एक ने कहा कि जब सरकार विदेशों में फंसे भारतीयों को बचा सकती है तो वे तो देश के भीतर ही थे और इसलिए उन्हें कोई चिंता नहीं थी।

प्रधानमंत्री ने श्रमिकों से कहा, ‘‘इतने दिन खतरे में रहने के बाद सुरक्षित बाहर आने के लिए मैं आपको बधाई देता हूं। यह मेरे लिए प्रसन्नता की बात है और मैं इसे शब्दों में बयां नहीं कर सकता। अगर कुछ बुरा हो जाता तो पता नहीं, हम इसे कैसे बर्दाश्त करते। ईश्वर की कृपा है कि आप सब सुरक्षित हैं।’’

प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस बातचीत का एक वीडियो जारी किया है, जिसमें प्रधानमंत्री श्रमिकों से कहते दिख रहे हैं, ‘‘17 दिन कोई कम वक्त नहीं होता। आप लोगों ने बहुत साहस दिखाया और एक-दूसरे को हिम्मत बंधाते रहे।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि वह अभियान की जानकारी लेते रहते थे और मुख्यमंत्री धामी के साथ लगातार संपर्क में थे।

उन्होंने कहा, ‘‘ प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारी भी वहां थे। लेकिन जानकारी मिलने भर से चिंता कम नहीं हो जाती।’’

बिहार के एक श्रमिक सबा अहमद ने प्रधानमंत्री को बताया कि जब वे कई दिनों तक सुरंग में फंसे रहे, तो ‘‘हम भाइयों की तरह थे, हम एक साथ थे।’’

अहमद ने कहा, ‘‘हम रात के खाने के बाद सुरंग में टहलते थे। मैं उन्हें सुबह की सैर और योग करने के लिए कहता था।’’

चारधाम यात्रा मार्ग पर बन रही साढ़े चार किलोमीटर लंबी सुरंग का एक हिस्सा 12 नवंबर को ढह जाने से उसमें 41 श्रमिक फंस गए थे जिन्हें युद्धस्तर पर चलाए गए बचाव अभियान के बाद मंगलवार को सकुशल बाहर निकाल लिया गया।

सरकार की 12 हजार करोड़ रुपये की इस महत्वकांक्षी परियोजना का मकसद उत्तराखंड के चार धाम यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के बीच हर मौसम के अनुकूल आवागमन मुहैया कराना है।

बचाव दल का हिस्सा रहे एक अधिकारी ने पीटीआई-भाषा को बताया, ”सिलक्यारा सुरंग का सुरक्षा ऑडिट किया जाएगा। इस बीच टूटे ढांचे की मरम्मत और उसे ठीक करने की कोशिश भी की जाएगी।”

उन्होंने कहा, ”सभी जरूरी एहतियात बरते जाएंगे और 4.5 किलोमीटर लंबी सुरंग परियोजना को फिर शुरू किया जाएगा।”

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने बुधवार को कहा कि मंगलवार रात को केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में चर्चा के बीच उत्तराखंड की सिलक्यारा सुरंग के बचाव अभियान का मुद्दा भी आया और इस दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ‘बहुत भावुक’ थे।

केंद्रीय मंत्रिमंडल के निर्णयों के बारे में संवाददाताओं को जानकारी देते हुए ठाकुर ने कहा कि पूरी सरकार अभियान में लगी थी और सभी जिंदगियों को बचाने के लिए हरसंभव प्रयास किए गए।

उन्होंने पत्रकारों से कहा, ‘‘मोदी सरकार और प्रधानमंत्री ने हर भारतीय की जान बचाने का और विदेशों से भी भारतीयों को सुरक्षित बचाने का हरसंभव प्रयास किया है।’’

मंजीत चौहान (25) नामक श्रमिक ने याद किया, ‘‘हम सभी डरे हुए थे, लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे। पानी, भोजन की कमी, घुटन सब कुछ एक साथ दिमाग में आ गया। लेकिन जब हमने बाहर से चार इंच के ड्रेन पाइप से कनेक्शन स्थापित किया, तो रुख बदलना शुरू हो गया।’’

चौहान ने कहा, ‘‘नियमित रूप से सैर के अलावा, मैं हमारे लिए भेजी जाने वाली गर्म दाल का इंतजार करता था।’’

दिनचर्या के तहत मजदूर सुरंग के अंदर दो किलोमीटर तक पैदल चलते थे, योग करते थे और एक-दूसरे के साथ मोबाइल गेम खेलते थे।

उन्होंने कहा, ‘‘हम सब दोस्त बन गये थे। हमने अपने परिवार के सदस्यों के बारे में बात की। कुछ ही दिनों में हमें विश्वास हो गया कि हम जल्द ही बाहर निकल जायेंगे।’’

हिमाचल प्रदेश के मंडी निवासी विशाल ने कहा, ‘‘हमने कभी उम्मीद नहीं खोई। शुरुआती कुछ घंटे मुश्किल थे क्योंकि हमें घुटन महसूस हो रही थी। लेकिन जल्द ही, बाहर के लोगों से संपर्क हुआ और धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य हो गया।’’

रैट होल खनन’ तकनीक विशेषज्ञ फिरोज कुरैशी और मोनू कुमार मलबे के आखिरी हिस्से को साफ कर उत्तराखंड के सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों से मिलने वाले पहले व्यक्ति थे।

दिल्ली निवासी कुरैशी और उत्तर प्रदेश के कुमार ‘रैट-होल खनन’ तकनीक विशेषज्ञों की 12-सदस्यीय टीम का हिस्सा थे, जिन्हें रविवार को मलबे को साफ करने के दौरान अमेरिकी ‘ऑगर’ मशीन को समस्याओं का सामना करने के बाद खुदाई के लिए बुलाया गया था।

रॉकवेल एंटरप्राइजेज की 12-सदस्यीय टीम के प्रमुख वकील हसन ने कहा कि चार दिन पहले बचाव अभियान में शामिल एक कंपनी ने उनसे मदद के लिए संपर्क किया था।

हसन ने कहा, ‘‘मलबे से ‘ऑगर’ मशीन के हिस्से को हटाने के कारण काम में देरी हो गई। हमने सोमवार को दोपहर तीन बजे काम शुरू किया और मंगलवार शाम छह बजे काम खत्म किया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमने कहा था कि काम 24 से 36 घंटे में खत्म हो जाएगा और हमने वही किया।’’

उन्होंने यह भी कहा कि बचाव अभियान में हिस्सा लेने के लिए उन्होंने कोई पैसा नहीं लिया।

भाषा

देवेंद्र पवनेश

पवनेश