नयी दिल्ली, 22 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें गैर-कानूनी गतिविधि (निरोधक) अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के आठ कथित सदस्यों को जमानत दी गई थी। न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है।
न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने उच्च न्यायालय से पिछले साल 19 अक्टूबर को जमानत पाए आरोपियों को तत्काल आत्मसमर्पण करने और जेल जाने का निर्देश दिया।
पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को रद्द किया जाता है।’’
शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है और आतंकवाद से जुड़ा कोई भी कृत्य निषिद्ध किये जाने योग्य है।
पीठ ने राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) द्वारा दाखिल याचिका पर यह फैसला सुनाया। एनआईए ने मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा आरोपियों को दी गई जमानत को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी।
आठ आरोपियों- बरकतुल्लाह, इरदिस, मोहम्मद अबुताहिर, खालिद मोहम्मद, सईद इशाक, ख्वाजा मोहदीन, यासर अराफात और फयाज अहमद को सितंबर 2022 में गिरफ्तार किया गया था।
पिछले साल 20 अक्टूबर को, शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली एनआईए की याचिका पर सुनवाई तब टाल दी थी जब आतंकवाद विरोधी एजेंसी की ओर से पेश वकील रजत नायर ने इसे तत्काल सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया था।
एनआईए ने अपनी याचिका में दावा किया कि पीएफआई एक कट्टरपंथी इस्लामी संगठन है और इसकी स्थापना भारत में मुस्लिम शासन स्थापित करने और देश का शासन केवल शरिया कानून के तहत चलाने के ‘खतरनाक लक्ष्य’ की पूर्ति के लिए की गई है।
पीएफआई ने अपने मुखौटा संगठनों के जरिये तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के पुरासाइवक्कम में मुख्यालय की स्थापना की थी और विभिन्न जिलों में कार्यालय खोले थे। पूरे तमिलनाडु में इस्लामिक विचारधारा का प्रचार-प्रसार करने पर पीएफआई के कथित पदाधिकारियों, सदस्यों और काडर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।
भाषा धीरज सुरेश
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