हिप्र: ट्रांसजेंडर माया ने शिक्षा, नौकरी और भेदभाव खत्म करने को प्रमुख मुद्दा बताया

हिप्र: ट्रांसजेंडर माया ने शिक्षा, नौकरी और भेदभाव खत्म करने को प्रमुख मुद्दा बताया

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  • Publish Date - May 18, 2024 / 02:57 PM IST,
    Updated On - May 18, 2024 / 02:57 PM IST

(भानु पी लोमी)

शिमला, 18 मई (भाषा) हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले के चुनाव विभाग की ट्रांसजेंडर ‘आइकन’ माया ठाकुर ने कहा कि वह विद्यार्थियों के दुर्व्यवहार और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर शिक्षकों की उदासीनता के कारण कक्षा नौवीं के बाद स्कूल छोड़ने को मजबूर हो गईं।

शिमला संसदीय क्षेत्र अंतर्गत सोलन जिले के कुनिहार क्षेत्र के कोठी गांव की रहने वाली माया ठाकुर ने कहा कि स्थिति इतनी गंभीर हो गई थी कि ग्रामीणों ने उनके परिवार पर ‘उन्हें बाहर निकालने’ का दबाव बनाना शुरू कर दिया।

वह शायद राज्य में तीसरे लिंग के 35 लोगों में से एकमात्र ट्रांसजेंडर थीं, जिसने बोलने का साहस किया।

उन्होंने कहा, ‘‘जब मैं अपने परिवार के सदस्यों को स्कूल में हो रहे दुर्व्यवहार और इस भेदभाव के बारे में बताती थी कि मुझे शौचालय तक का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं थी, तो मेरे परिजनों को लगता था कि मैं स्कूल छोड़ने का बहाना बना रही हूं। अगर मौका दिया जाए, तो मैं अपनी पढ़ाई फिर से शुरू करना चाहूंगी।’’ माया ने कहा कि ‘जीवन में हर कदम पर’ उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा।

उन्होंने कहा कि शिक्षा, नौकरी और ट्रांसजेंडर लोगों के खिलाफ भेदभाव खत्म करना उनके मुख्य मुद्दे हैं।

माया ने कहा कि ऐसे भी ‘ट्रांसजेंडर’ हैं जो पढ़ना चाहते हैं, शिक्षक बनना चाहते हैं, वकील बनना चाहते हैं, पुलिस में शामिल होना चाहते हैं और जीवन के अन्य क्षेत्रों में उत्कृष्टता हासिल करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि जब नौकरियों के लिए ट्रांसजेंडर वर्ग के लोग आवेदन करते हैं, तो प्रतिक्रिया मिलती है कि ‘यदि आपके लिए कोई योजना होगी तो बताएंगे।’’

उन्होंने कहा कि वह मतदाताओं, खासकर ट्रांसजेंडर लोगों से अपील करेंगी कि वे रोजगार, सुरक्षा और शिक्षा के लिए वोट करें और अच्छे लोगों को चुनें, जो लोगों के विकास और कल्याण के लिए काम कर सकें।

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मैं एक पुरुष के रूप में जन्मी थी, लेकिन अपनी पहचान एक महिला के रूप में की। मेरी पहचान एक ट्रांसजेंडर महिला के रूप में है, हम उभयलिंगी हैं न कि किन्नर।’’

उन्होंने कहा कि उन्हें समाज में स्वीकार नहीं किया जाता है, क्योंकि लोग उन्हें किन्नर मानते हैं और दूरी बनाए रखते हैं।

उन्होंने कहा कि उत्तर की तुलना में दक्षिण भारत में स्थिति अब भी बेहतर है और ट्रांसजेंडर के लिए सामाजिक स्वीकार्यता के लिए जागरूकता फैलाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि ट्रांसजेंडर को अपनी पसंद का जीवन जीने का अधिकार है। उन्होंने आरोप लगाया कि दुर्व्यवहार के मामले में पुलिस उनकी शिकायतें दर्ज नहीं करती।

पहले दिल्ली में एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) में काम कर चुकीं माया कनाडा जैसे देशों की तर्ज पर शैक्षिक पाठ्यक्रम में ट्रांसजेंडर पर आधारित पाठ्यक्रम को शामिल करने की वकालत करती हैं। वह भेदभाव और उत्पीड़न से मुक्त शैक्षिक वातावरण और उनके लैंगिक पहचान के अनुरूप शौचालय के उपयोग का अधिकार प्रदान करने की भी वकालत करती हैं।

उन्होंने कहा कि डरा धमकाकर या गाली देकर पैसा वसूलने की किन्नर संस्कृति बंद होनी चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि किन्नरों द्वारा ट्रांसजेंडर को अपने साथ ले जाने या उन्हें परेशान करने की प्रथा और ऐसे कृत्यों में लिप्त लोगों पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।

भाषा संतोष सुरेश

सुरेश