‘गॉड पार्टिकल’ का जनक कहे जाते हैं महान भारतीय विज्ञानी सत्येंद्रनाथ बोस, आइंस्टीन भी थे इनके प्रशंसक, जानें उनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें

'God Particle' Satyendra Nath Bose death anniversary सत्येंद्रनाथ बोस को दुनियाभर में गॉड पार्टिकल के जनक के रूप में जाना जाता है।

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  • Publish Date - February 3, 2023 / 03:14 PM IST,
    Updated On - February 3, 2023 / 03:14 PM IST

‘God Particle’ Satyendra Nath Bose death anniversary : भारत के महान वैज्ञानिकों में से एक सत्येंद्रनाथ बोस को दुनियाभर में गॉड पार्टिकल के जनक के रूप में जाना जाता है। अपने क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि के बाद भी उन्हें कभी भी विज्ञान के क्षेत्र में वह पहचान नहीं मिल पाई, जिसके वह हकदार थे। दरअसल, बोस के सिद्धांतों की वजह से कई वैज्ञानिकों ने नोबेल पुरुस्कार हासिल किए, लेकिन कई बार नॉमिनेट होने के बाद भी उन्हें कभी यह पुरस्कार नहीं मिल पाया। विज्ञान के क्षेत्र में अपना अमिट योगदान देने वाले सत्येंद्रनाथ बोस की आज जन्मतिथि है।

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आपको बताते हैं जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें-

कोलकाता में हुआ जन्म

एक जनवरी, 1894 में कोलकाता में जन्मे बोस अपने माता-पिता की सात संतानों में इकलौते पुत्र थे। नदिया जिले के बाड़ा जगुलिया गांव में अपनी शुरुआती शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने कोलकाता के प्रेजिडेंसी कॉलेज से बीएससी की डिग्री हासिल की। इसके बाद कोलकाता यूनिवर्सिटी से ही उन्होंने अपना एमए पूरा किया। बचपन से ही पढ़ाई में तेज बोस एक बेहतरीन शिक्षक और शानदार लेखक भी थे। अपने इसी गुण की वजह से वह आइंस्टीन के मूल जर्मन शोधकार्यों के आधार पर अंग्रेजी की एक किताब के सहलेखक भी बने थे।

बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी की खोज

‘God Particle’ Satyendra Nath Bose death anniversary : सत्येंद्र नाथ बोस ने बाद में परमाणु के भीतर के उपपरमाणु कणों की जानकारी के लिए नई सांख्यिकी की खोज की, जिसे बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी कहा जाता है। इतना ही नहीं साल 2012 में खोजे गए गॉड पार्टिकल को भी वैज्ञानिकों ने बोस के नाम पर ही ‘हिग्स-बोसोन कण’ नाम दिया। जबकि, इसी साल जुलाई में न्यूयॉर्क टाइम्स के एक लेख में बोस को “फादर ऑफ गॉड पार्टिकल” बताया गया था।

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अल्बर्ट आइंस्टीन ने दिलाई पहचान

पढ़ाई पूरी करने के बाद 1924 में उन्होंने ढाका यूनिवर्सिटी में रहते हुए एक शोधपत्र लिखा, जिसे उन्होंने अल्बर्ट आइंस्टीन को जर्मनी भी भेजा। प्लैंक के क्वांटम रेडिएशन सिद्धांत पर आधारित इस शोधपत्र को अल्बर्ट आइंस्टीन जर्मन में अनुवाद कर एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक जर्नल में बोस के नाम से ही प्रकाशित कराया। बाद में यूरोप में रहने के दौरान उन्हें अल्बर्ट आइंसटीन और मैडम क्यूरी सहित कई वैज्ञानिकों के साथ काम किया। इस दौरान आइंस्टीन ने बोस के विचार को अपनाते हुए ऐसे कणों क समूह की खोज जिन्हें बोसोन के नाम से जाना जाता है।

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