The Big Picture With RKM: न्यायपालिका पर नेताओं की सियासत, कोर्ट के फैसलों पर सवाल उठाना कितना सही?

न्यायपालिका पर नेताओं की सियासत, कोर्ट के फैसलों पर सवाल उठाना कितना सही? How justified is it to question the court's decisions?

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  • Publish Date - May 24, 2024 / 12:41 AM IST,
    Updated On - May 24, 2024 / 12:52 AM IST

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रायपुरः Politics on Court Decisions देश में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सियासत गर्म है। विभिन्न मुद्दों को लेकर कांग्रेस-भाजपा सहित विभिन्न दलों के नेता एक-दूसरे को घेर रहे हैं। आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है, लेकिन अब नेताओं ने देश की न्यायपालिका और उनके निर्णयों पर खुले मंच से सवाल उठाना शुरू कर दिया है। कई नेता तो यहां तक कह रहे हैं कि हम कोर्ट के आदेशों को नहीं मानेंगे। आखिर देश की न्यायपालिका पर सवाल उठाना कितना जायज है?

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Politics on Court Decisions मुझे पत्रकारिता करते लगभग 30 साल से ज्यादा समय हो गया है। इस दौरान हमने कई चीजों को सीखा। उनमें से एक न्यायपालिका का सम्मान करना भी है। उस समय हमने लोगों को न्यायपालिका का सम्मान हुए देखा है। यहां तक की ससंद, नेता और बिजनेस ग्रुप से जुड़े लोग भी अदालतों के फैसलों को स्वीकार करते हुए सम्मान करते थे। क्योंकि भारतीय न्याय व्यवस्था एक ऐसा सिस्टम है, जिसमें हर किसी को न्याय मिलने की उम्मीद रहती है। अपनी बात रखने के लिए कोर्ट में हर वो मौका मिलता है, जो संभव होता है। अगर आपको लगता है कि निचले कोर्ट से न्याय नहीं मिला है तो आप क्रमशः उसके ऊपर के कोर्ट में अपील कर सकते हैं। फैसला आने के बाद भी आपको लगता है कि आपके साथ कुछ गड़बड़ हुआ है तो आप पुर्नविचार याचिका दाखिल कर सकते हैं। इस तरह कई मौके मिलते हैं, जिसमें आप अपनी बात कोर्ट के समक्ष रख सकते हैं। यहीं वजह है कि कोर्ट के फैसलों का हर कोई सम्मान करता है और होना भी चाहिए, लेकिन हाल के दिनों में देखने को मिला है कि राजनीति कारणों की वजह से, अपने वोट बैंकों को बचाने की वजह से कई राजनेता कोर्ट का सम्मान करने में चूक कर जा रहे हैं।

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इसका सबसे पहला उदाहरण पश्चिम बंगाल से सामने आया। कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक फैसला दिया कि 2010 के बाद से बने ओबीसी सर्टिफिकेट को रद्द कर दिया जाए और फिर से सूची बनाया जाए। इस दौरान वहां 5 लाख से ज्यादा प्रमाण पत्र बनाए गए हैं। इसके बाद वहां की सीएम ममता बनर्जी खुले मंच से इसे नहीं मानने की बात कही। उन्होंने कहा कि मैं कोर्ट के आदेश को नहीं मानूंगी। ममता का यह बयान गलत था। हाईकोर्ट का फैसला आया है। पूरी प्रक्रिया चली है। आपकी सरकार ने भी अपनी बात वहां रखी होगी। अगर कोर्ट को लगता है कि यह संवैधानिक नहीं है। उसमें कुछ खामी है तो इसमें गलत क्या है? कोर्ट ने यह भी तो कहा है कि जिन लोगों को इससे फायदा हुआ है, उसे इस फैसले का कोई असर नहीं होगा। तब भी आप मानने को तैयार नहीं है। क्योंकि वह आपके वोट बैंक को प्रभावित करता है। यह कैसी राजनीति है? यह गलत है। आप जनता के सामने गलत उदाहरण पेश कर रही हैं।

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दूसरी तरफ हम देखें तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि दो मुख्यमंत्री एक साथ अरेस्ट हुए। कोर्ट ने एक को छोड़ दिया गया और एक अभी भी जेल के अंदर हैं क्योंकि वह आदिवासी हैं। राहुल गांधी का ये बयान भी गलत था। कोर्ट में एक प्रक्रिया चलती है। पहले सीएम के ऊपर क्या आरोप है और दूसरे  सीएम के ऊपर क्या आरोप है? कोर्ट यह सब देखता है। सभी वकीलों को बोलने का मौका दिया जाता है। एक पूरी बहस होती है और आप केवल इसलिए खामी निकल रहे हैं कि दूसरा मुख्यमंत्री एक आदिवासी है। राहुल गांधी को याद रखना चाहिए कि उनके ही पिताजी थे, जो शाहबानो केस को सुप्रीम कोर्ट में लाकर पलट दिया था। क्योंकि वह उनके मुस्लिम वोट बैंक को असर डालता था। अब राहुल गांधी अपने आदिवासी वोट बैंक के लिए इस तरीके का बयान दे रहे हैं। यह अच्छी बात नहीं है। इसी तरह हम बड़े-बड़े दावों के साथ राजनीति में आए दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने कोर्ट के फैसले पर बयान दिया। उन्होंने कहा कि अगर मुझे 4 जून को आप जिता देते हैं तो 5 जून को कोर्ट से बाहर आ जाऊंगा। चुनाव जीतना और कोर्ट की प्रक्रिया में क्या संबंध है? भई कोर्ट की प्रक्रिया अलग है और चुनाव की प्रक्रिया अलग है। आपको उसी कोर्ट ने आपकी बातों को मानकर बेल दी और अब आप कह रहे हैं कि इंडिया एलाएंस को चुनाव जिता दीजिए। उसके बाद वह बाहर आ जाएंगे। यदि आप पर गलत आरोप लगे होंगे। आपके पक्ष में सभी सबूत होंगे तो आप वैसे भी बाहर आ जाएंगे। कोर्ट से फैसले को चुनाव से जोड़कर देखना गलत है। इस तरह का बयान देकर आप जनता के सामने क्या उदाहरण पेश कर रहे हैं।

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इसी तरह केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अरविंद केजरीवाल के जमानत के फैसले कहा कि ज्यादातर लोग यह मानते हैं कि उनके साथ स्पेशल ट्रीटमेंट हुआ है। अगर उन्हें कोर्ट ने जमानत दी है और आपको लग रहा है कि यह गलत है तो आप कोर्ट में अपील करिए, लेकिन आप उस फैसले पर सवाल उठा रहे हैं। यह एकदम गलत बात है। मेरा यह मानना है कि लोकतंत्र तभी मजबूत हो सकता है, जब उसके चारों स्तंभ कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और मीडिया का सम्मान हो। क्योंकि इस देश के आम आदमी को अभी भी न्यायपालिका पर पूरा विश्वास है कि कहीं से नहीं तो न्यायपालिका से उसे जरूर न्याय मिलेगा। अगर न्यापालिका पर ही सवाल खड़े होने लगे, उनके फैसलों पर सियासत होने लगे तो फिर आम आदमी न्याय लेने कहां जाएगा। न्यायपालिका ही तो लोगों की उम्मीद के रूप में बची है। मेरा मानना है कि आप राजनीति करिए, चुनाव लड़िए, अपने वोट बैंक को किसी दूसरे तरीके से साधिए है, लेकिन कोर्ट जो फैसले दे रहे हैं उसका सम्मान होना चाहिए। आपके पास बहुत सारी सुविधाएं हैं, आप पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकते हैं, लेकिन फैसलों का सम्मान होना चाहिए, उन पर सवाल नहीं होना चाहिए।

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