Indore Lok Sabha Elections 2019 : इंदौर में किसका आएगा दौर, कांग्रेस दे रही है बीजेपी को टक्कर, जातिगत समीकरण तय करेंगे नतीजे | Indore Lok Sabha Elections 2019 : Indore Lok sabha Constituency : BJP VS Congress

Indore Lok Sabha Elections 2019 : इंदौर में किसका आएगा दौर, कांग्रेस दे रही है बीजेपी को टक्कर, जातिगत समीकरण तय करेंगे नतीजे

Indore Lok Sabha Elections 2019 : इंदौर में किसका आएगा दौर, कांग्रेस दे रही है बीजेपी को टक्कर, जातिगत समीकरण तय करेंगे नतीजे

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 09:01 PM IST, Published Date : May 15, 2019/6:50 am IST

लोकसभा चुनाव 2019 के लिए मध्यप्रदेश में तीन चरणों का मतदान संपन्न हो चुका है। चौथे और अंतिम चरण में 8 सीटों पर मतदान होना है। इनमें इंदौर एक महत्वपूर्ण सीट है। मालवा और निमाड़ की मिट्टी सोना उगलती है। मिनी मुंबई कहे जाने वाला इंदौर रंगबिरंगी संस्कृति और समृद्ध परंपराओं की धरोहर भी संभाले हुए है। इंदौर लोकसभा सीट की गिनती मध्य प्रदेश की राजनीति की प्रमुख सीटों में होती है। इस बार लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने इस सीट से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। उनके इनकार करने की वजह टिकट देने में भाजपा की ओर से हील-हवाला किया जाना था। बड़ी माथापच्ची के बाद बीजेपी ने यहां से तीन बार पार्षद रह चुके शंकर लालवानी को टिकट दिया है। लालवानी का मुकाबला यहां कांग्रेस उम्मीदवार पंकज संघवी से होगा।

लोकसभा चुनाव 2019 : प्रत्याशी

इंदौर से भाजपा ने शंकर लालवानी को टिकट दिया है। उनके सामने कांग्रेस के पंकज संघवी हैं। शंकर लालवानी को साल 1993 में विधानसभा क्षेत्र-4 की जिम्मेदारी मिली थी। इसके तीन साल बाद 1996 में हुए नगर निगम चुनाव में उन्हें जयरामपुर वार्ड से टिकट मिला था, जिसमें वो अपने भाई और कांग्रेस प्रत्याशी प्रकाश लालवानी को हराकर पार्षद बने थे। इसके अलावा वो इंदौर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। शंकर लालवानी को मैदान में उतारकर बीजेपी ने सिंधी समाज को भी साधने की कोशिश की है। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी पंकज संघवी की इंदौर में अच्छी साख है। संघवी को इंदौर के गुजराती समाज का भी मजबूत समर्थन  है। वैसे पंकज संघवी 1998 में भी ताई के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं| तब ताई को 4 लाख 40 हज़ार 47 वोट मिले थे और पंकज संघवी को 3 लाख 90 हजार 195।  हार का अंतर सिर्फ 49 हजार 852 वोटों का था।

8 विधानसभा सीटें

 इन्दौर लोकसभा में  8 विधानसभा सीटे शामिल हैं, इन सीटों में देपालपुर, राऊ, सांवेर,  के अलावा इंदौर-1, इंदौर-2, इंदौर-3, इंदौर-4, इंदौर-5 सीटें शामिल हैं।

इंदौर सीट का इतिहास

इंदौर लोकसभा सीट 1984 तक कांग्रेस का गढ़ थी, जिसे 1989 में बीजेपी ने भेदा और सुमित्रा महाजन ने पहली बार चुनाव जीता, उन्होंने पहली बार में ही जीत हासिल की थी। इसके बाद से इस सीट से उन्हें कभी निराशा नहीं मिली। वो इंदौर से लगातार 8 बार चुनाव जीत रहीं थी। 1957 में यहां पहला लोकसभा चुनाव हुआ था। तब से 1984 तक यहां ज्यादातर कांग्रेस ने जीत हासिल की।  2014 में उन्होंने कांग्रेस के सत्यनारायण पटेल को 4 लाख से भी ज्यादा वोटों से हरा कर जीत हासिल की थी। हालांकि सुमित्रा महाजन इस बार चुनाव नहीं लड़ रही हैं, लेकिन उन्हें जनता से मिलने वाले समर्थन का फायदा भाजपा को मिलने की पूरी उम्मीद है।

चुनावी मुद्दे

इंदौर का पर्याप्त विकास हुआ है। इंदौर के नजदीक पीथमपुर और देवास जैसे औधोगिक क्षेत्र भी मौजूद हैं। एयर कनेक्टिविटी भी बढ़िया है। हालांकि मेट्रो ट्रेन की जरुरत लंबे समय से यहां महसूस की जा रही है। आसपास के इलाकों के लिए लोकल ट्रेन की जरुरत भी है। इंदौर संसदीय सीट की यदि बात की जाए तो शहर से बाहर की विधानसभा  सीटों में पर्याप्त विकास नहीं हुआ है। देपालपुर, राऊ, सांवेर विधानसभा क्षेत्रों में पानी, शिक्षा, इलाज की बेहतर सुविधाएं एक बड़ा चुनावी मुद्दा हैं।

जातिगत समीकरण

इंदौर सीट पर सबसे बड़ा फैक्टर मराठी समाज का वोट बैंक है। ये मराठी वोट बैंक हर बार एक तरफा सुमित्रा महाजन के खाते में आता रहा है। लेकिन अब ताई के चुनाव लड़ने से इंकार करने के बाद कांग्रेस मराठी वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी में है। कांग्रेस की नजर शहर के सवा दो लाख से ज्यादा मराठी वोटों पर है। कांग्रेस का मानना है, कि इनमें से अधिकांश वोट व्यक्तिगत रूप से महाजन को मिलते थे, लेकिन पार्टी ने ताई का जो अपमान किया है, उससे मराठी समाज को ठेस पहुंची है। लिहाजा ये वोट इस बार कांग्रेस के पक्ष में आएंगे। यहां मुकाबला मराठी, सिंधी और जैन वोटों के बीच भी है। जिनकी मिलीजुली संख्या 10 लाख के करीब पहुंचती है। संघवी जैन हैं जिसका फायदा उन्हें इस चुनाव में मिल सकता है, हालांकि जैन परंपरागत रुप से बीजेपी का वोट बैंक हैं। सिंधी कार्ड खेलने से भी भाजपा को फायदा हो सकता है।

राजनीतिक प्रभाव

इंदौर मध्य प्रदेश की उन सीटों में से है, जिस पर पूरे देश की नजर है। माना जा रहा है कि इस बार का मुकाबला कांटे का है। तीन दशक से ये सीट बीजेपी के कब्जे में है। स्पीकर सुमित्रा महाजन की 8 बार की जीत ने पिछले 30 साल से इंदौर को भाजपा का मजबूत गढ़ बना दिया है। विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा यहां कमजोर हुई है। विधानसभा सीटों में से चार सीट कांग्रेस जीती है। इंदौर में  ग्रामीण इलाकों में भाजपा इस बार भी मुसीबत में है। शंकर लालवानी शहरी इलाके के नेता हैं। वे पार्टी में अभी तक सिर्फ पार्षद रहे हैं।  जिस कारण ग्रामीण क्षेत्र में पहचान का संकट आ रहा है।  वहीं कांग्रेस के पंकज संघवी तान बार चुनाव लड़ चुके हैं। भले ही वो चुनाव हारे हों लेकिन लोगों उनके नाम को पहचानते हैं। एक फैक्टर कैलाश विजयवर्गीय का भी है,हालांकि कैलाश लंबे समय से पश्चिम बंगाल में पार्टी को मजबूत करने में लगे हुए हैं। लेकिन  इंदौर में उनकी काफी मजबूत पकड़ है। इसलिए अनुमान है कि सुमित्रा महाजन के प्रत्याशी ना होने से होने वाले नुकसान को कैलाश विजयवर्गीय पाटने की कोशिश करेंगे।

2014 लोकसभा चुनाव  परिणाम

विजयी प्रत्याशी                    : 8 लाख 54 हजार 972 मत मिले वोट

फर्स्ट रनर अप                    :  3 लाख 88 हजार 71 वोट मिले

सेकंड रनर अप                   :  35 हजार 169 वोट मिले

कुल कितने फीसदी मतदान हुआ : 62.25 फीसदी

2014 लोकसभा चुनाव में सुमित्रा महाजन ने लगातार आठवीं बार भाजपा को जीत दिलाई थी।  मध्यप्रदेश में सुमित्रा महाजन की 4 लाख 66 हजार 901 की जीत प्रदेश के किसी भी उम्मीदवार की सबसे बड़ी जीत रही थी। सुमित्रा महाजन को शहर की जनता ने 8 लाख 54 हजार 972 मत दिए । महाजन के प्रतिद्वंदी  सत्यनारायण पटेल को 3 लाख 88 हजार 71 मत मिले। आम आदमी की पार्टी ‘आप’ के उम्मीदवार अनिल त्रिवेदी को सिर्फ 35 हजार 169 वोट ही मिले थे।

कुल मतदाता    : 21,15,303

पुरुष मतदाता   : 11,06,461

महिला मतदाता : 10,08, 842

2019 के इंदौर लोकसभा सीट पर कुल 22,02,105 मतदाता हैं। चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक 2014 के चुनाव में यहां 21,15,303 मतदाता थे, इसमें से 10,08, 842 महिला और 11,06,461 पुरुष मतदाता थे। 2014 में इस सीट पर 62.25 फीसदी मतदान हुआ था। बीजेपी उम्मीदवार शंकर लालवानी का विरोध होने और सुमित्रा महाजन के इस सीट से चुनाव ना लड़ने के ऐलान के  बाद इस सीट पर मुकाबला दिलचस्प हो गया है।

 
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