रीवा लोकसभा सीट के परिणाम अप्रत्याशित रहे, लेकिन सियासी समीकरण हमेशा दिलचस्प

रीवा लोकसभा सीट के परिणाम अप्रत्याशित रहे, लेकिन सियासी समीकरण हमेशा दिलचस्प

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  • Publish Date - May 5, 2019 / 07:03 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:41 PM IST

रीवा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र मध्य प्रदेश के 29 लोकसभा क्षेत्रों में से एक है। यह निर्वाचन क्षेत्र 1951 में अस्तित्व में आया। लेकिन 1951 तक यह सीट विन्ध्य प्रदेश के अंतर्गत थी। 1957 में रीवा लोकसभा सीट मध्य प्रदेश के अंतर्गत आई। विधानसभा चुनाव में प्रदेश में भले कांग्रेस ने बढ़त बनाई हो लेकिन रीवा लोकसभा सीट में आने वाली सभी आठ सीटों पर कांग्रेस ने मुंह की खाई है. पिछली बार जहां 2 सीटें कांग्रेस और 1 बीएसपी के पास थी, इस बार कांग्रेस उन दो सीटों से भी हाथ धो बैठी और रीवा लोकसभा में आने वाली सभी 8 सीटें बीजेपी के खाते में गई. ऐसे में बीजेपी जहां इस सीट पर अपनी जीत को दोहराने की तैयारी में है तो कांग्रेस ने इस सीट को लेकर खास रणनीति बनाई है।
रीवा लोकसभा सीट पर कांग्रेस को अंतिम बार 1999 में जीत मिली थी। पिछले डेढ़ दशक से कांग्रेस को इस सीट पर जीत नहीं नसीब हुई है। इस सीट पर बसपा भी तीन बार जीत चुकी है। 1991, 1996 और 2009 में बसपा को जीत मिली थी। इस सीट पर कांग्रेस, भाजपा और बसपा का कब्जा रहा है। रीवा लोकसभा सीट वर्तमान में भाजपा के जनार्दन मिश्रा के पास है। 2014 के लोकसभा चुनावों में, जनार्दन मिश्रा ने इस निर्वाचन क्षेत्र में डाले गए वोटों का 46.20 प्रतिशत वोट हासिल करके कांग्रेस के सुंदरलाल तिवारी को हराया था। तीसरे स्थान पर बसपा के देवराज सिंह थे। 

रीवा लोकसभा में 8 सीटें

रीवा लोकसभा सीट में जिले की आठ विधानसभा सीटें आती हैं। जिसमें सिरमौर, सेमरिया, त्योंथर, मऊगंज, देवतालाब, मनगवां, रीवा और गुढ़ की सीटें शामिल हैं। रीवा लोकसभा क्षेत्र में 1666864 मतदाता हैं

लोकसभा प्रत्याशी

भाजपा से मौजूदा सांसद जर्नादन मिश्रा प्रत्याशी हैं वहीं कांग्रेस ने सिद्धार्थ तिवारी को उम्मीदवार बनाया है। जबकि विकास पटेल बसपा उम्मीदवार हैं। 

चुनावी मुद्दे

यहां बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य एवं शिक्षा के मुद्दे तो हैं ही साथ ही रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है। यहां रोजगार के कोई साधन मुहैया नहीं होने से लोग रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं। रीवा जिले का तराई क्षेत्र डकैती प्रभावित रहा है। साथ ही सीमावर्ती इलाकों में जंगली क्षेत्र होने के कारण जंगली जानवर नीलगाय और जंगली सुअरों से किसान त्रस्त हैं।

जातीय समीकरण

जातीय समीकणरण रीवा आर्थिक रूप से पिछड़ा है व पूर्व में राजशाही रहने के कारण रीवा में जातीयता सिर चढ़कर हावी है। यहां ब्राह्मण व क्षत्रीय समाज का बोलबाला रहा है। ब्राम्हण हर विधानसभा में सबसे अधिक संख्या में हैं। पिछड़ा वर्ग में पटेल(कुर्मी) दूसरे नंबर पर हैं। इसके अलावा क्षत्रीय भी कुछ क्षेत्रों में हार-जीत में महत्वपूर्न भूमिका निभाते हैं। रीवा विधानसभा में वैश्य समाज सवा लाख से अधिक है और एक तरफ ही इनका झुकाव होता रहा है। वहीं सिंधी और बाहरी लोगों की भी प्रभावी भूमिका है। 

मतदाता

इस लोकसभा सीट पर ज्यादातर त्रिकोणीय मुकाबला देखा गया है। 2014 के आंकड़ों के मुताबिक रीवा लोकसभा सीट पर कुल 1544719 मतदाता हैं, जिसमें 8,21,800 पुरुष और 7,22,919 महिला मतदाता हैं।
जिनमें सबसे अधिक ब्राह्मण मतदाता 5 लाख के आसपास हैं। वहीं कुर्मी सवा दो लाख और क्षत्रीय मतदाता सवा एक लाख के करीब हैं। इसके अलावा अन्य पिछड़े एवं एससी, एसटी वर्ग के मतदाताओं का प्रभाव है।

2014 लोकसभा चुनाव

प्रत्याशी               पार्टी         वोट
जनार्दन मिश्रा       भाजपा    383320
सुंदरलाल तिवारी    कांग्रेस   214,594
देवराज सिंह पटेल  बीएसपी  175,567

2014 के लोकसभा चुनावों में जनार्दन मिश्रा को 3,83,320 वोट मिले और उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार सुंदर लाल तिवारी को हराया, जिन्हें 2,14,594 वोट प्राप्त हुए थे।  2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जनार्दन मिश्रा पर फिर से भरोसा जताया है। उनका मुकाबला कांग्रेस के सिद्धार्थ तिवारी और बसपा के विकास पटेल से होगा। इस सीट पर हमेशा त्रिकोणीय मुकाबला देखा गया है।

2009 लोकसभा चुनाव

प्रत्याशी               पार्टी         वोट
देवराज सिंह पटेल  बीएसपी   172,002
सुंदरलाल तिवारी    कांग्रेस    167,981
चंद्रमणि त्रिपाठी     भाजपा    116300  
 
राज्य में 1998 से लेकर 2018 के विधानसभा चुनावों तक भारतीय जनता पार्टी सत्ता में रही। भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 29 सीटों में से 27 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी। 
ब्राह्मण उम्मीदवार पर ही दांव लगाने का कारण ये भी है कि यहां आने वाले आठों विधानसभाओं में 40 प्रतिशत ब्राह्मण हैं, जो विधानसभा के साथ ही लोकसभा में भी निर्णायक साबित होते हैं। जिसके बाद क्षत्रिय एससी एसटी पटेल कुशवाहा मुस्लिम और वैश्य समुदाय के लोग आते हैं।