जगदलपुर। विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड में आज बारी है बस्तर विधानसभा क्षेत्र के विधायकजी की। बस्तर वो कस्बा है, जिसके नाम पर ये पूरा इलाका जाना जाता है। आज भी यहां की 90 फीसदी आबादी खेती-किसानी और मजदूरी पर निर्भर है। तमाम कोशिशों के बावजूद भी यहां लोगों की आजीविका का स्तर नहीं बदला है, जबकि राजनीतिक तौर पर ये विधानसभा अपेक्षाकृत जागरुक मानी जाती है। फिलहाल सीट पर कांग्रेस का कब्जा है और लखेश्वर बघेल यहां से विधायक हैं। सियासी इतिहास की बात करें तो यहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला बराबरी का रहा है। लेकिन मिशन 2018 में बढ़त लेने के लिए दोनों पार्टी चुनावी तैयारी में जुट गई हैं।
2008 में अस्तित्व में आई बस्तर विधानसभा क्षेत्र में बस्तर और बकावंड दो अहम सियासी केंद्र हैं। बस्तर में जहां शुरू से कांग्रेस का दबदबा रहा है..तो वहीं बकावंड बीजेपी का गढ़ माना जाता है। नई-नई बनी इस सीट पर 2008 में कांग्रेस की अच्छी संभावना दिखाई दे रही थी। नतीजे उसके उलटे आए और बीजेपी के सुभाऊ कश्यप ने यहां से जीत हासिल की। लेकिन 2013 में कांग्रेस के लखेश्वर बघेल ने सुभाऊ कश्यप को हराकर सीट को कांग्रेस के पाले में कर दिया। इस चुनाव में कांग्रेस को जहां, 57942 वोट मिले। वहीं बीजेपी महज 38774 वोट ले सकी। इस तरह जीत का अंतर 19168 वोटों का रहा।
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वैसे तो परंपरागत तौर पर ये सीट कांग्रेस की मानी जाती रही है। लेकिन पिछले चुनाव में महारा समाज के बीजेपी से नाराज होने के चलते वोटों का ध्रुवीकरण हुआ, जिसका नुकसान बीजेपी को हुआ। दरअसल बस्तर विधानसभा में करीब 20 हजार महारा समाज के वोटर हैं। जो चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। पिछले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को बस्तर विधानसभा में करारी शिकस्त मिली थी। लिहाजा इस बार वो सीट पर कब्जा करने के लिए अभी से जोर लगाना शुरू कर दिया है।
वहीं दूसरी और कांग्रेस विधायक लखेश्वर बघेल के पास गिनाने की उपलब्धि के तौर पर कुछ भी नहीं है। क्षेत्र में लोगों की समस्याओं को लेकर भी उनकी सक्रियता को लेकर सवाल उठते रहे हैं। कुल मिलाकर बस्तर का सियासी माहौल बताता है कि यहां 2018 की सियासी जंग दिलचस्प होगी। मुद्दों की बात की जाए तो आज भी बस्तर विधानसभा में बुनियादी मुद्दे ही लोगों के लिए बड़ी राजनीतिक समस्या है। इसके अलावा प्रत्याशियों की निजी पहचान और व्यक्तित्व भी चुनाव अहम होता है। अंदरूनी इलाकों में सड़कों का निर्माण होने के बावजूद भी गुणवत्ताविहीन होने की वजह से लोग परेशान हैं। बेतरतीब तरीके से बनाई गई सड़कों में प्रमुख रूप से मुख्य बसाहटों को जोड़ने की कोशिश नहीं की गई। विधानसभा का बड़ा इलाका फ्लोराइड ग्रस्त है जिससे करीब एक दर्जन गांवों में लोगों को पेयजल समस्या के लिए भी जूझना पड़ता है।
बस्तर में जनता की ये शिकायतें आपको पूरे विधानसभा क्षेत्र में सुनने को मिल जाएंगी। परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई बस्तर विधानसभा क्षेत्र के लोगों को अपने जनप्रतिनिधि से काफी उम्मीदें थी। लेकिन पहले बीजेपी और फिर कांग्रेस प्रत्याशी को अपना विधायक चुनने के बाद भी उनकी समस्याएं जस की तस बनी हुई है। सबसे ज्यादा स्वास्थ्य सुविधाओं का बुरा हाल है। शिक्षा के क्षेत्र मे भी स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती। बकावंड में नया कॉलेज खोला गया। लेकिन शिक्षक नहीं होने के कारण पढ़ाई पर असर पड़ रहा है।
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नारंगी और मारकंडेय के संगम का इलाका फ्लोराइड प्रभावित है। लोग बीमार हो रहे हैं लेकिन पेयजल की बेहतर व्यवस्था इस इलाके में अब तक नहीं की गई है। नेताओं ने कई बार घोषणा तो की पर इन इलाकों में पानी नहीं पहुंचा। यही हाल किसानों का भी है कहने को किसानों को रियायती दर पर बिजली दी जा रही है लेकिन जमीनी हालात बिल्कुल अलग हैं। किसानों के खेतों में लो वोल्टेज होने की वजह से कई बार बिजली नहीं पहुंच पाती।
बस्तर में आज भी लोगों की आय का प्रमुख जरिया वनोपज है। उद्योग नहीं होने की वजह से यहां पलायन बड़ी समस्या है। युवाओं के पास रोजगार नहीं है, जिसे लेकर युवाओँ में काफी नाराजगी है। ओडिशा सीमा से लगा होने की वजह से सीमा से जुड़ा विवाद कई गांवों के बीच है। धान खरीदी में भ्रष्टाचार भी यहां बड़ा मुद्दा है। बारिश के दौरान कई इलाकों में सड़कों पर चलना मुश्किल हो गया है। चुनावी साल है तो इन मुद्दों को लेकर सियासत भी जोर पकड़ने लगी है।
कुल मिलाकर बस्तर में फिलहाल सियासतदानों के जो तेवर नजर आ रहे उससे इतना तो तय है कि आने वाले चुनाव में सियासी लड़ाई व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप के स्तर पर उतरने वाली है ..अब ये जनता की ऊपर है कि उसे किसका कुर्ता ज्यादा सफेद नजर आता है ।
दावेदारों की बात की जाए तो कांग्रेस में सीटिंग एमएलए लखेश्वर बघेल के कद का दूसरा कोई नेता नजर नहीं आता। इसलिए उनका टिकट लगभग तय माना जा रहा है। बावजूद इसके उनके विरोधियों की तादाद पिछले कुछ समय से पार्टी के भीतर बढ़ी है। हाल ही में कुछ युवा प्रत्याशी जनपद सदस्य भी टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। बीजेपी में भी टिकट के लिए कई दावेदार हैं। सुभाऊ कश्यप के अलावा यहां सांसद दिनेश कश्यप के नाम की भी चर्चा है।
बस्तर में सियासी बिसात बिछ चुकी है। परिसीमन के बाद 2008 और 2013 में यहां हुए बेहद दिलचस्प सियासी मुकाबले के बाद 2018 में भी कांग्रेस और बीजेपी के बीच कड़ी टक्कर होने के पूरे आसार बन रहे हैं। हालांकि दोनों ही दलों में टिकट दावेदारों की भीड़ ने पार्टी हाईकमान के लिए टेंशन जरूर बढ़ा दी है। बीजेपी की बात करें तो पूर्व विधायक सुभाऊ कश्यप को प्रमुख दावेदार माना जा रहा है। पिछली हार को भुलाकर वो एक बार फिर चुनावी जंग में उतरने के लिए तैयार है।
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हालांकि इस बार सुभाऊ कश्यप के लिए टिकट की राह इतनी आसान नहीं होगी। दरअसल जिला पंचायत अध्यक्ष जविता मंडावी काफी सक्रिय नजर आ रही हैं। आदिवासी महिला चेहरा होने के साथ बीजेपी में तेजी से बढ़ते उनके ग्राफ को देखते हुए उन्हें टिकट का मजबूत दावेदार माना जा रहा है। वहीं केदार कश्यप के करीबी कुछ नेता भी यहां टिकट के लिए जोर लगा रहे हैं। अटकलें ये भी लगाई जा रही है कि सांसद दिनेश कश्यप को बीजेपी यहां मौका दे सकती है।
दूसरी ओर कांग्रेस के संभावित उम्मीदवारों की बात की जाए तो सीटिंग एमएलए लखेश्वर बघेल टिकट के स्वाभाविक दावेदार हैं और बड़े नेता होने और जीत के बड़े अंतर की वजह से उनकी टिकट पक्की मानी जा रही है। हालांकि पूर्व विधायक अंतु राम कश्यप सहित कई नेता भी कांग्रेस से टिकट की दौड़ में शामिल हैं।
बस्तर में वैसे तो कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही मुख्य मुकाबला होता आया है लेकिन इस बार जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ भी चुनावी मैदान में है। पार्टी ने मनीराम को प्रत्याशी घोषित कर यहां बढ़त लेने की कोशिश की है। इसके अलावा सीपीआई और बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार भी इस इलाके से नामांकन दाखिल करते रहे हैं। वहीं चुनाव के पास कुछ निर्दलीय प्रत्याशियों के नामांकन दाखिल करने की संभावना है।
वेब डेस्क, IBC24
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