खरगोन। विधायकजी के रिपोर्ट कार्ड में आज बारी है मध्यप्रदेश की खरगोन सीट की। खरगोन के चुनावी मुद्दे और विधायकजी के पिछले पांच साल का रिपोर्ट कार्ड आपके सामने रखें, उससे पहले सीट के सियासी मिजाज पर नजर डाल लेते हैं। कभी कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहा ये इलाका 2003 से बीजेपी के कब्जे में है और बालकृष्ण पाटीदार वर्तमान विधायक हैं, जो हैट्रिक लगाने की मंशा से चुनावी तैयारियों में जुटे हैं। शिवराज सरकार ने चुनाव से ऐन पहले बालकृष्ण पाटीदार को राजयमंत्री का पद सौप कर पाटीदार और निमाड़ क्षेत्र की जनता को साधने की कोशिश की है।
नवग्रह की नगरी के नाम से पूरे देश में विख्यात खरगोन का सियासी पारा चढने लगा है। खरगोन जिले में कुल छह विधानसभाएं है, जिनमें से तीन पर कांग्रेस और तीन पर बीजेपी का कब्जा है। बात अगर खरगोन विधानसभा क्षेत्र की करें तो यहां बीते 15 वर्षों से बीजेपी का कब्जा है। फिलहाल खरगोन विधानसभा में बीजेपी के दिग्गज बालकृष्ण पाटीदार विधायक हैं जो 2008 से यहां लगातार दो चुनाव जीत चुके हैं। बालकृष्ण पाटीदार वर्तमान में शिवराज सरकार में कृषि और श्रम राज्यमंत्री भी है।
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वैसे सीट के सियासी इतिहास की बात की जाए तो 2003 तक ये इलाका कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। लेकिन 2003 में बाबूलाल महाजन कांग्रेस के इस किले को भेदने में सफल हुए। हालांकि 2008 में बीजेपी ने यहां से बालकृष्ण पाटीदार को टिकट दिया, जो पार्टी के दांव को सही साबित करते हुए कांग्रेस के रामलाल पाटीदार हराकर विधानसभा पहुंचे। 2013 में भी पार्टी ने उनपर भरोसा जताया, इस बार उन्होंने रवि जोशी को 6 हजार 825 वोटों से मात दी। इस चुनाव में बीजेपी को जहां 74 हजार 519 वोट मिले। वहीं कांग्रेस के खाते में 67 हजार 694 वोट गिरे।
खरगोन के जाति समीकरण की बात करें तो 2 लाख 20 हजार मतदाताओं वाले इस क्षेत्र में पाटीदार वोटर्स निर्णायक भूमिका में है। वर्तमान बीजेपी विधायक बालकृष्ण पाटीदार इसी समाज से आते हैं। इनके इलाका मुस्लिम, ब्राह्मण, यादव, दांगी, गडरिया और रघुवंशी समाज की बहुलता है, जो यहां चुनाव नतीजों को प्रभावित करते हैं। कुल मिलाकर खरगोन में मिशन 2018 का काउंटडाउन शुरू हो चुका है। बीजेपी जहां बालकृष्ण पाटीदार को राज्यमंत्री का पद देकर सियासी समीकरण को साधने में जुटी है। तो वहीं कांग्रेस मौजूदा विधायक की नाकामियों को मुद्दा बनाकर जनता दरबार में पहुंचने लगी है।
खरगोन में मुद्दों की बात की जाए तो यहां समस्याओं का अंबार है। विधानसभा क्षेत्र और प्रदेश में बीजेपी की सरकार होने के बाद भी यहां की जनता को बहुत ज्यादा फायदा नहीं मिला है। मूलभूत सुविधाओं के अलावा शिक्षा और रोजगार के लिए भी यहां के लोगों को जद्दोजहद करनी पड़ती है, जिसे लेकर लोगों में गुस्सा है। ऐसे में अगर चुनाव से पहले इनकी शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया तो बीजेपी विधायक के लिए यहां हैट्रिक लगाना मुश्किल होगा।
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विधायक किसी और पार्टी का हो और प्रदेश में सरकार किसी और दल का हो तो अमूमन यही देखा जाता है कि आपसी टकराव के कारण क्षेत्र में विकास को लेकर केवल आरोप-प्रत्यारोप ही होता है। लेकिन खरगोन की बात करें तो पिछले 15 सालों से विधानसभा क्षेत्र और प्रदेश में बीजेपी की ही सरकार है। लेकिन बावजूद इसके खरगोन की किस्मत नहीं बदली। आज भी यहां बुनियादी सुविधाओं के बीच लोग जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं। मुद्दों की बात की जाए तो खरगोन में बेरोजगारी सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा होगा। पिछले 15 सालों में यहां एक भी बड़ा उद्योग स्थापित नहीं हुआ, जिसकी वजह से यहां के युवाओं को काम की तलाश में इंदौर, गुजरात और महाराष्ट्र का रूख करना पड़ता है।
शिक्षा के क्षेत्र में भी यहां कोई खास उपलब्धि नजर नहीं आती। छात्रों को बेहतर शिक्षा के लिए दूसरे शहर जाना पड़ता है, जिससे उन्हें आर्थिक रूप से भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वहीं कृषि प्रधान जिला होने के बाद भी यहां कृषि महाविद्यालय की स्थापना नहीं हो सकी है। इसे लेकर यहां के छात्रों में काफी नाराजगी है।
खरगोन में बीजेपी विधायक को यहां केवल शिक्षा और बेरोजगारी जैसे मुद्दों का ही सामना नहीं करना पड़ेगा बल्कि आने वाले चुनाव में उन्हें किसानों के सवालों का जवाब भी देना होगा। दरअसल विधानसभा क्षेत्र में कपास, मिर्च, सोयाबीन सहित गेहूं प्रमुख रूप से उत्पादित की जाती है। किन जो भी सरकार आई, सबने वादे किए लेकिन किसानों की मूलभूत समस्याओं पर किसी भी सरकार ने काम नहीं किया।
2013 में चुनाव के दौरान खुद शिवराज सिंह चौहान खरगोन में नर्मदा का पानी लाने की घोषणा की थी, लेकिन अब तक लोगों के घरों में नर्मदा का पानी नहीं पहुंचा है। जाहिर है आने वाले चुनाव में ये प्रमुख चुनावी मुद्दा होगा। इसके अलावा कुपोषण का मुद्दा भी अहम होगा। वहीं कुंद्रा नदी के सौंदर्यीकरण पर भी विशेष ध्यान नहीं दिया गया। अब जब चुनाव में तकरीबन 1 महीने का वक्त बचा है तो जनता के साथ-साथ विपक्ष ने भी बीजेपी को इन मुद्दों को लेकर घेरने में जुट गई है। हालांकि बीजेपी विधायक बालकृष्ण पाटीदार का कहना है कि उनके कार्यकाल में कांग्रेस के समय से बेहतर काम हुआ है।
खरगोन जिला होने के बावजूद भी यहां पर जिला कोर्ट नहीं है। इससे जनता और वकील दोनों को खरगोन से 80 किलोमीटर दूर मंडलेश्वर जाना पड़ता है। इस समस्या को लेकर सभी वकील विधायक से भी कई बार गुहार लगा चुके है। लेकिन इसका कोई हल नहीं निकाला जा सका है, जो लोग सक्षम होते है वे इंदौर से वकील हायर कर अपनी लड़ाई लड़ते है और लेकिन आम जनता को यूं ही परेशान होना पड़ता है। कुल मिलाकर बीजेपी विधायक के लिए यहां मिशन 2018 की जंग इतनी आसान नहीं रहने वाली। खरगोन विधानसभा क्षेत्र से भले ही बालकृष्ण पाटीदार 2 बार बीजेपी को चुनाव जीता चुके है लेकिन इस बार पार्टी के ही कई उम्मीदवार उनके सामने ही चुनाव लड़ने के लिए खड़े है। इस लिस्ट में बाबूलाल महाजन और शालिनी रतोरिया सहित की नाम शामिल हैं। वहीं कांग्रेस में भी दावेदारों की फेहरिस्त से एक नाम चुनना इतना आसान नहीं होगा।
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खरगोन में बीजेपी आज अगर मजबूत स्थिति में नजर आती है तो इसमें मौजूदा विधायक बालकृष्ण पाटीदार की भूमिका अहम है। लगातार दो बार चुनाव जीतने वाले बालकृष्ण पाटीदार समाज से भी आते हैं, जो यहां की जनसंख्या की सबसे बड़ी आबादी है और चुनाव नतीजों को प्रभावित भी करते हैं। बालकृष्ण पाटीदार खरगोन में हैट्रिक लगाने की मंशा से एक बार फिर यहां चुनावी ताल ठोंकने के लिए तैयार हैं। अगर सबकुछ ठीक ठाक रहा और कोई बड़ा उलटफेर नहीं हुआ तो उनका टिकट लगभग तय माना जा रहा है। हालांकि टिकट के लिए उन्हें पार्टी में अपनों से चुनौती मिल सकती है। इस लिस्ट में पहला नाम है पूर्व विधायक बाबूलाल महाजन का, जिन्होंने 2003 में इस सीट को बीजेपी की झोली में डाली थी। उन्होंने चुनाव लड़ने के लिए जिलाध्यक्ष का पद भी त्याग दिया है और चुनावी तैयारियों में जुट गए हैं।
इन दोनों के अलावा पार्टी से इस बार राष्ट्रीय स्वयं सेविका की जिला संयोजक शालिनी रतोरिया भी इस सीट से प्रबल दावेदार मानी जा रही हैं। राष्ट्रीय संगठन में मजबूत पकड़ रखने वाली शालिनी खरगोन से चुनाव लड़ने की तैयारी भी शुरू कर दी है। बीजेपी से व्यापारी प्रकोष्ठ के राज्य स्तर के संयोजक कल्याण अग्रवाल भी चुनाव लड़ने का मन बना चुके है। उनका कहना है कि वे लम्बे समय से राष्ट्रीय स्वयं सेवक से जुड़े हुए है और अब राजनीति के मुख्य धारा में आकर जनता की सेवा करना चाहते है।
खरगोन विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस की बात की जाए तो उसे 2003 से यहां हार का सामना करना पड़ रहा है। यही वजह है कि यहां जीत का दावा करने वाले दावेदारों की कोई कमी नहीं है। इन दावेदारों में पहला नाम है 90 के दशक में कांग्रेस को यहां सत्ता दिलवाने वाले परसराम डंडीर का। वो पूरे दमखम से अपना दावा पेश कर रहे हैं वहीं 2013 में चुनाव लड़ने वाले रवि जोशी का दावा भी मजबूत है। चुनाव हारने के बाद भी क्षेत्र में सक्रिय रहना उनके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। एसएसटी एक्ट के विरोध में जन आंदोलन के रूप में खड़ा हुआ संगठन अब राजनीतिक रूप ले चुका है। खरगोन से ही स्पाक्स के सबसे ज्यादा आंदोलन भी देखने को मिले है। इस बार आर्थिक आधार पर आरक्षण और अन्य मुद्दों की मांग को लेकर सपाक्स भी चुनाव लड़ने की बात कह रही है।
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कुल मिलाकर खरगोन में टिकट दावेदारों की लंबी फेहरिस्त है और इन दावेदारों में कांट–छांट करना ही सियासी पार्टियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। जाहिर है आगामी चुनाव में यहां मुकाबला किसी भी पार्टी के लिए आसान नहीं होगा।
वेब डेस्क, IBC24
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