इंदौर के कृषि महाविद्यालय की बेशकीमती जमीन 'हड़पने' का प्रस्ताव रद्द हो : दिग्विजय सिंह |

इंदौर के कृषि महाविद्यालय की बेशकीमती जमीन ‘हड़पने’ का प्रस्ताव रद्द हो : दिग्विजय सिंह

इंदौर के कृषि महाविद्यालय की बेशकीमती जमीन 'हड़पने' का प्रस्ताव रद्द हो : दिग्विजय सिंह

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:11 PM IST, Published Date : August 16, 2022/6:48 pm IST

इंदौर, 16 अगस्त (भाषा) कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मंगलवार को मांग की कि ‘‘ऑक्सीजन जोन’’ और ‘‘सिटी फॉरेस्ट’’ बनाने के नाम पर इंदौर के सदी भर पुराने कृषि महाविद्यालय की 115.60 हेक्टेयर बेशकीमती जमीन ‘हड़पने’ का कथित प्रस्ताव रद्द किया जाए।

अधिकारियों ने बताया कि इंदौर के महंगे शहरी इलाके में कृषि महाविद्यालय परिसर की 115.60 हेक्टेयर जमीन के अधिग्रहण और इसके बदले महाविद्यालय को देपालपुर तहसील के ग्रामीण क्षेत्र में 120.51 हेक्टेयर जमीन दिए जाने पर विचार किया जा रहा है।

सिंह ने इस प्रस्ताव के खिलाफ मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा कि कुछ किसान नेताओं ने उन्हें बताया है कि सरकारी अधिकारियों, स्थानीय नेताओं और भवन निर्माताओं की कथित सांठ-गांठ के तहत कोशिश की जा रही है कि कृषि महाविद्यालय की बेशकीमती जमीन ‘‘ऑक्सीजन जोन’ और ‘‘सिटी फॉरेस्ट’’ विकसित करने के नाम पर ‘‘हड़प’’ ली जाए।

उन्होंने पत्र में मुख्यमंत्री से मांग की कि खेती-किसानी की उन्नति में कृषि महाविद्यालय के महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए जमीन अधिग्रहण का यह प्रस्ताव निरस्त किया जाए।

गौरतलब है कि किसान नेताओं के साथ ही कृषि महाविद्यालय के पूर्व और वर्तमान छात्र भी महाविद्यालय को जमीन लिए जाने की योजना का विरोध कर रहे हैं।

किसान नेताओं का कहना है कि करीब 600 विद्यार्थियों वाले कृषि महाविद्यालय की जमीन लिए जाने से शैक्षणिक गतिविधियों के साथ ही अनुसंधान, बीज उत्पादन और किसानों के प्रशिक्षण जैसे काम बुरी तरह प्रभावित होंगे।

गौरतलब है कि इंदौर का वर्तमान कृषि महाविद्यालय वर्ष 1924 में ‘इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट इंडस्ट्री’ के नाम से स्थापित किया गया था। मशहूर ब्रितानी वैज्ञानिक अल्बर्ट हावर्ड ने इसी संस्थान के परिसर में जैविक खाद बनाने की विधि विकसित की थी जिसे ‘इंदौर मेथड ऑफ कम्पोस्ट मेकिंग’ के नाम से दुनिया भर में जाना जाता है। महाविद्यालय के अधिकारियों के मुताबिक महात्मा गांधी ने 1935 में इंदौर आगमन के दौरान इस विधि की सराहना की थी।

भाषा हर्ष राजकुमार

राजकुमार

 

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