चीते की भारत वापसी के पीछे वैज्ञानिक आधार, लेकिन पहले यह प्रयोग पूरा हो जाने दीजिए : एनबीए अध्यक्ष |

चीते की भारत वापसी के पीछे वैज्ञानिक आधार, लेकिन पहले यह प्रयोग पूरा हो जाने दीजिए : एनबीए अध्यक्ष

चीते की भारत वापसी के पीछे वैज्ञानिक आधार, लेकिन पहले यह प्रयोग पूरा हो जाने दीजिए : एनबीए अध्यक्ष

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:28 PM IST, Published Date : August 7, 2022/3:29 pm IST

(हर्षवर्धन प्रकाश)

इंदौर, सात अगस्त (भाषा) भारत में 70 साल पहले विलुप्त घोषित चीते को अफ्रीका से भारत लाकर मध्य प्रदेश के कूनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्यान में फिर से बसाए जाने की तैयारियों के बीच राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) की ओर से संतुलित प्रतिक्रिया सामने आई है।

एनबीए के अध्यक्ष विनोद बी माथुर ने कहा कि राष्ट्रीय उद्यान के सीमित इलाके में शुरू होने जा रही इस प्रायोगिक परियोजना के पीछे हालांकि ‘काफी वैज्ञानिक आधार’ है, लेकिन दुनिया के सबसे तेज दौड़ने वाले वन्य जीव को फिर से बसाने के इस अंतरमहाद्वीपीय प्रयोग को तुरंत खुशी या गम का विषय बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है।

माथुर ने इंदौर में ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार में कहा, ‘‘चीते को अफ्रीका से लाकर भारत में फिर से बसाए जाने की परियोजना पर विशेषज्ञों के बीच मत-मतांतर हो सकते हैं। लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि सीमित प्रयोग के आधार पर चीते को भारत लाया जा रहा है और इसके पीछे काफी वैज्ञानिक आधार है।’’

उन्होंने इन आशंकाओं को बेबुनियाद बताया कि अफ्रीका से लाया गया चीता प्रजनन के बाद पूरे भारत में फैल सकता है और आगे चलकर देश में चीते को लेकर वे ही समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जो बाघ को लेकर मौजूद हैं।

माथुर ने कहा, ‘‘चीते की भारत वापसी को तुरंत खुशी या गम का विषय बनाने की अभी कोई आवश्यकता नहीं है। जब हम कह रहे हैं कि यह एक प्रायोगिक परियोजना है तो पहले इस प्रयोग को पूरा हो जाने दीजिए।’’

उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रयोग के ‘संभावित नुकसान’ को विशेषज्ञों द्वारा पहले ही ध्यान में रखा जा रहा है।

एनबीए अध्यक्ष ने कहा कि अफ्रीका से लाए जाने के बाद चीते को कूनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्यान के सीमित क्षेत्र में रखकर स्थानीय हालात के मुताबिक ढालने की कोशिश की जाएगी, उसकी हरेक हलचल पर बारीक नजर रखी जाएगी और तथ्यों के आकलन के आधार पर भावी कदम उठाए जाएंगे।

माथुर ने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के शहरी इलाके के आस-पास बाघों की आबादी को लेकर सचेत भी किया।

उन्होंने कहा, ‘‘भोपाल के आस-पास बाघों को घूमते देखना एक तरफ तो सकारात्मक रूप में यह दर्शाता है कि बाघ ने शहरी इंसान के साथ अपना वजूद कायम कर लिया है। दूसरी ओर, यह सह-अस्तित्व आगे चलकर चिंता का विषय भी बन सकता है, क्योंकि हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि बाघ एक जंगली जानवर है, जो अन्य जीवों का शिकार करके अपना पेट भरता है।’’

एनबीए अध्यक्ष ने चिंता जताई कि मनुष्य और वन्य जीवों के बीच जारी संघर्ष तेज होने से देश के अलग-अलग राज्यों में बाघ के साथ ही हाथी, नीलगाय, बंदर और जंगली सुअर को लेकर जैव विविधता संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘जंगलों के आस-पास तेजी से हो रहे शहरीकरण की कोई तो सीमा तय होनी चाहिए।’’

माथुर शहरी क्षेत्रों में जैव विविधता सहेजने के विषय पर केंद्रित राष्ट्रीय सम्मेलन में शामिल होने इंदौर आए थे। इंदौर के प्रकृति हितैषी संगठन ‘द नेचर वॉलंटियर्स’ द्वारा आयोजित यह दो दिवसीय सम्मेलन शनिवार (छह अगस्त) को खत्म हुआ।

भाषा

हर्ष पारुल

पारुल

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)