MP Politics | Photo Credit: IBC24
भोपाल: MP Politics मूंग की सरकारी खरीदी को लेकर मध्यप्रदेश में घमासान मच गया है। किसान तो शोर मचा ही रहे हैं। अब विपक्ष ने भी हल्ला बोलना शुरू कर दिया है। बयान, पोस्ट और आरोपों की झड़ी लग गई है। किसानों के गुस्से को सियासी तूफान में बदलने की कोशिशें भी हो रही हैं। इन सबके बीच हमारा सवाल है आखिर ये नौबत आई क्यों और इस शोर-गुल को शांत करने के लिए क्या करने वाली है मोहन सरकार?
MP Politics मध्यप्रदेश में मूंग की खेती करने वाले किसान सड़कों पर उतर आए है। मूंग की सरकारी खरीदी के लिए जगह-जगह विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। मध्यप्रदेश में 15 लाख हैक्टेयर भूमि पर मूंग और उड़द की खेती की जाती है। जिसकी सरकार हर साल समर्थन मूल्य पर खरीदी करती है। लेकिन इस बार सरकार ने केंद्र को इसे लेकर प्रस्ताव ही नहीं भेजा है। सरकार ने आधिकारिक तौर पर ये भी साफ नहीं किया है कि मूंग दाल की ख़रीद क्यों नहीं की जा रही है। दूसरी तरफ केंद्र सरकार हरियाणा और गुजरात से MSP पर 54,166 टन मूंग की खरीदी को मंजूरी दे चुकी है। जिससे इस मामले ने सियासी तूल पकड़ लिया है। पूर्व सीएम कमलनाथ ने X पोस्ट पर सरकार पर निशाना साधा है।
कमलनाथ ने लिखा ‘मध्यप्रदेश में किसान मूंग दाल बेचने के लिए परेशान हो रहे हैं और सरकार की उपेक्षा के कारण उन्हें मजबूरन बाजार में बहुत कम दाम पर दाल बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है। केंद्र और राज्य सरकार के बीच संवादहीनता कि स्थिति है। सरकार को तुरंत टालमटोल छोड़कर मूंग दाल ख़रीद सुनिश्चित करनी चाहिए।’ मूंग खरीदी को लेकर कांग्रेस आक्रमक है तो वहीं इस पर सीएम मोहन यादव की भी प्रतिक्रिया सामने आई है।
मूंग खरीदी को लेकर RSS के आनुषंगिक संगठन भारतीय किसान संघ ने भी सीएम हाउस के घेराव की चेतावनी दे दी है। दूसरी तरफ कांग्रेस भी इसे बड़ा सियासी मुद्दा बनाने की तैयारी में है और CM हाउस के घेराव करा ऐलान भी कर चुकी है जिस पर बीजेपी का पलटवार आया है।
मध्यप्रदेश एक कृषि प्रधान राज्य है। जिसने बंपर पैदावार के जरिए राष्ट्रीय स्तर पर कई रिकॉर्ड बनाए है, लेकिन अब इस बात के भी आरोप लग रहे हैं कि मूंग की फसल के ज्यादा उत्पादन के लिए किसान बेतहाशा रासायनिक खाद और कीटनाशक का इस्तेमाल कर रहे हैं। जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। मूंग खरीदी से सरकार के पीछे हटने की इसे बड़ी वजह माना जा रहा है, लेकिन ऐसे में सरकार के सामने दोहरी चुनौती खड़ी हो गई है एक तरफ किसानों का दबाव है तो दूसरी तरफ कांग्रेस इस मुद्दे को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही।