Face To Face Madhya Pradesh | Photo Credit: IBC24
भोपाल: मध्यप्रदेश में सरकार ने कर्मचारियों की बांछें खिला दी है। एक तरफ 5 फीसदी भत्ता और दूसरी ओर लंबे इंतजार के बाद तबादलों को हरी झंडी मिल गई। इस दोहरी सौगात से जाहिर तौर पर कर्मचारी जगत बल्ले-बल्ले कर रहा है। पर विपक्ष कांग्रेस को यहां भी नुक्स नजर आ रहे हैं। वो सीधे आरोप लगा रही है कि तबादले के नाम पर उद्योग चलाया जाएगा।
मध्यप्रदेश में 1 मई से 30 मई तक अधिकारियों-कर्मचारियों के तबादले हो सकेंगे। क्योंकि मोहन कैबिनेट ने तबादला नीति को मंजूरी दे दी. 30 मई तक ई-ऑफिस में सारे ट्रांसफर लागू होंगे, इसके बाद तबादले नहीं होंगे। इसमें स्वैच्छिक तबादले भी शामिल है, मंत्री और प्रभारी मंत्रियों को भी इसका अधिकार दिया गया है, मंत्रियों से कहा गया है कि 30 मई से पहले सभी तबादला आदेश जारी कर दें, प्रभारी मंत्री जिलों के अंदर ट्रांसफर कर सकेंगे।
तबादलों से बैन हटाने और नई तबादला नीति के बाद विपक्ष ने आरोपों का पिटारा खोल दिया। कांग्रेस ने कहा अब प्रदेश में तबादला उद्योग शुरू होने जा रहा है। पहले जो दबे पाँव होता था अब वो खुलेआम होगा। यानी कांग्रेस बताना चाह रही है। तबादला नीति कुछ और नहीं भ्रष्टाचार का एक माध्यम है। हालांकि बीजेपी ने जवाब देते हुए कहा कहा जो जैसा करता उसे वैसा ही दिखता है।
मध्यप्रदेश में तबादलों पर सियासत हमेशा गर्माती रही है। प्रदेश की सियासत में ट्रांसफर का जिक्र सबसे ज्यादा होता है। क्योंकि बीजेपी विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस सरकार पर ट्रांसफर उद्योग चलाने के आरोप लगाती रही है और कांग्रेस विपक्ष में रहते बीजेपी सरकार पर तबादला उद्योग चलाने का आरोप लगाती है, लेकिन तबादले एक रूटीन प्रक्रिया के तहत होते है। जिसमें शासन अपनी आवश्यकता और सुविधा के अनुसार अधिकारियों-कर्मचारियों का ट्रांसफर करता है। बहरहाल तबादला नीति मंजूर हो चुकी है और 1 मई से एमपी में तबादलों की बहार आने वाली है।