मुंबई, 17 मई (भाषा) नया सहायताप्राप्त प्रजनन प्रौद्योगिकी एवं किराये की कोख कानून के प्रभाव में आने से पहले शहर के एक अस्पताल में किराये की कोख की प्रक्रिया शुरू कर चुके एक दंपत्ति ने बंबई उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर उससे इसे (इस प्रक्रिया को) पूरा करने देने की अनुमति मांगी है।
यह याचिका न्यायमूर्ति एन डब्ल्यू सांबरे की अगुवाई वाली अवकाशकालीन पीठ के समक्ष पेश की गयी। इस याचिका पर बुधवार को सुनवाई होगी।
याचिकाकर्ताओं के वकील पी वी दिनेश ने अनुरोध किया है कि बतौर अंतरिम राहत इस दंपत्ति को उक्त अस्पताल से संरक्षित किये गये भ्रूण को एक अन्य गर्भधारण संबंधी क्लीनिक में स्थानांतरित करने की अनुमति दी जाए।
वकील ने कहा कि इस दंपत्ति के निषेचित भ्रूण को अस्पताल द्वारा किराये की कोख को देने के लिए संरक्षित रखा गया है लेकिन इसी बीच जनवरी में नया कानून प्रभाव में आ गया।
नया सहायता प्राप्त प्रजनन प्रौद्योगिकी एवं किराये की कोख कानून में प्रावधान है कि जब तक किराये की कोख परोपकार के लिए न हो तब तक उसपर पाबंदी है। उसमें अन्य कड़े प्रावधानों में एक यह है कि केवल अपनी संतान वाली विवाहित रिश्तेदार ही किराये का कोख ले सकती है।
इसलिए प्रतिवादी अस्पताल ने यह कहते हुए इस दंपत्ति की प्रक्रिया स्थगित कर दी है कि उसे इसे बहाल करने के लिए अदालती आदेश की जरूरत होगी।
अस्पताल की वकील अनीता कास्टेल्लिनो ने पीठ से कहा कि नये कानून के प्रावधान जटिल हैं और उन्हें इस याचिका पर समग्र जवाब दाखिल करने के लिए समय चाहिए।
अदालत ने बिना कोई आदेश जारी किये कहा कि वह बुधवार को इस मामले पर सुनवाई करेगी।
भाषा राजकुमार संतोष
संतोष
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