नयी दिल्ली, 23 फरवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय में मंगलवार को एक याचिका दायर की गई, जिसमें गृह मंत्रालय के उस आदेश को ‘अवैध और मनमाना’ घोषित किए जाने की मांग की गई है जिसमें कहा गया है कि एक अभियुक्त की आपराधिक फाइल में उसके वकील के विवरण को भी शामिल किया जाए।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने एक व्यापारी द्वारा दायर याचिका पर गृह मंत्रालय, दिल्ली सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और दोनों राज्यों की पुलिस को नोटिस जारी किया और उनसे अपना पक्ष रखने को कहा है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि मंत्रालय के इस आदेश के कारण कई वकीलों ने उनकी पैरवी करने से इनकार कर दिया क्योंकि उसका दावा है कि पुलिस ने उसे झूठे मामले में फंसाया है।
याचिकाकर्ता एक पूर्व वकील है, जिन्होंने कथित रूप से गलत तरीके से गिरफ्तार किए जाने, अवैध रूप से हिरासत में रखे जाने और जबरन वसूली के इरादे से बेरहमी से पीटे जाने के लिए 10 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की है।
याचिकाकर्ता सौरभ अग्रवाल ने अधिवक्ता दिब्यांशु पांडे के माध्यम से दायर अपनी याचिका में दावा किया है कि उनके खिलाफ चोरी के सामान की बरामदगी का एक फर्जी मामला बनाया गया, जब उन्होंने उत्तरी दिल्ली के समयपुर बादली थाना के पुलिस अधिकारियों द्वारा की गई कथित जबरन वसूली की मांग को मानने से इनकार कर दिया था।
उन्होंने आगे आरोप लगाया कि गाजियाबाद से सात-आठ व्यक्तियों ने उन पर हमला किया और बंदूक की नोक पर फिर उन्हें समीपपुर बादली पुलिस स्टेशन ले जाया गया।
अग्रवाल ने अपनी याचिका में यह भी आरोप लगाया है कि मजिस्ट्रेट द्वारा न्यायिक हिरासत में भेजे जाने के बावजूद उन्हें ‘जबरन वसूली के लिए’ पुलिस हिरासत में रखा गया था।
उन्होंने आरोप लगाया है कि उसने आखिरकार पुलिस अधिकारियों को छह लाख रुपये दिए।
उन्होंने दावा किया है कि स्थायी आदेश के प्रावधानों के कारण अभियुक्त के आपराधिक डोजियर में अधिवक्ता के विवरण को शामिल करना अनिवार्य हो गया है, जिस वजह से उसे मामले में उसकी सहायता करने के लिए वकीलों को रखने में मुश्किल हो रही है।
भाषा कृष्ण नरेश
नरेश उमा
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