कृषि कानूनों के अमल पर न्यायालय की रोक, गतिरोध दूर करने के लिये बनायी समिति | Court stay on implementation of agricultural laws, committee formed to resolve impasse

कृषि कानूनों के अमल पर न्यायालय की रोक, गतिरोध दूर करने के लिये बनायी समिति

कृषि कानूनों के अमल पर न्यायालय की रोक, गतिरोध दूर करने के लिये बनायी समिति

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:59 PM IST, Published Date : January 12, 2021/1:31 pm IST

नयी दिल्ली, 12 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने तीन नये कृषि कानूनों को लेकर केन्द्र सरकार और दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे रहे किसानों की यूनियनों के बीच व्याप्त गतिरोध खत्म करने के इरादे से मंगलवार को इन कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगाने के साथ ही किसानों की समस्याओं पर विचार के लिये चार सदस्यीय समिति गठित कर दी।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने सभी पक्षों को सुनने के बाद इस मामले में अंतरिम आदेश पारित किया।

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘इसके परिणाम स्वरूप , कृषि कानून लागू होने से पहले की न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली अगले आदेश तक बनी रहेगी। इसके अलावा, किसानों की जमीन के मालिकाना हक की सुरक्षा होगी अर्थात नये कानूनों के तहत की गयी किसी भी कार्रवाई के परिणाम स्वरूप किसी भी किसान को जमीन से बेदखल या मालिकाना हक से वंचित नहीं किया जायेगा।’’

पीठ ने कहा कि न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति सरकार और किसानों के प्रतिनिधियों के साथ ही इस विषय में दूसरे हितधारकों के पक्ष सुनेगी और दिल्ली में अपनी पहली बैठक की तारीख से दो महीने के भीतर अपनी सिफारिशें से न्यायालय को सौंपेगी। इस मामले में अब आठ सप्ताह बाद सुनवाई होगी।

न्यायालय ने अपने अंतरिम आदेश में कहा कि इस समिति की पहली बैठक मंगलवार से 10 दिन के भीतर आयोजित की जायेगी।

पीठ द्वारा गठित उच्चस्तरीय समिति के सदस्यों में भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिन्दर सिंह मान, शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनवंत, दक्षिण एशिया के अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति एवं अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ प्रमोद जोशी और कृषि अर्थशास्त्री तथा कृषि लागत और मूल्य आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक गुलाटी शामिल हैं।

पीठ ने कहा कि इस समिति का गठन कृषि कानूनों के बारे में किसानों की शिकायतों को सुनने और सरकार की राय जानने के बाद न्यायालय को सिफारिशें देने के उद्देश्य से किया गया है।

पीठ ने कहा, ‘‘इन तीन कृषि कानूनों- कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार, कानून, 2020, कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) कानून, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून पर अगले आदेश तक रोक लगी रहेगी।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने इस आशा और अपेक्षा से यह अंतरिम आदेश पारित करना उपयुक्त समझा कि दोनों पक्ष इसे सही भावना से लेंगे और समस्याओं के निष्पक्ष, समतामूलक और न्यायोचित समाधान पर पहुंचने का प्रयास करेंगे।

पीठ ने इन कानूनों के विरोध में किसानों के शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन की सराहना की और कहा कि अभी तक किसी प्रकार की अप्रिय घटना नहीं हुयी है।

पीठ ने कहा, ‘‘यद्यपि हम शांतिपूर्ण विरोध को रोक नहीं सकते, हम समझते हैं कि इन कानूनों के अमल पर रोक लगाने के असाधारण आदेश को फिलहाल ऐसे विरोध का मकसद हासिल करने के रूप में लिया जायेगा और यह किसान संगठनों को अपने सदस्यों को अपनी जिंदगी और सेहत की रक्षा और दूसरों के जानमाल की हिफाजत की खातिर अपनी आजीविका के लिये वापस लौटने के बारे में संतुष्ट करेंगे। ’’

शीर्ष अदालत ने तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के साथ ही दिल्ली की सीमाओं पर धरना प्रदर्शन कर रहे किसानों से जुड़े मुद्दों को लेकर दायर याचिकाओं पर यह अंतरिम आदेश पारित किया।

वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान पीठ ने सख्त लहजे में कहा कि कोई भी ताकत उसे इस तरह की समिति गठित करने से रोक नहीं सकती। साथ ही पीठ ने आन्दोलनरत किसान संगठनों से इस समिति के साथ सहयोग करने का अनुरोध भी किया।

न्यायालय द्वारा नियुक्त की जाने वाली समिति में आन्दोलनरत किसान संगठनों के शामिल नहीं होने संबंधी खबरों के परिप्रेक्ष्य में शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि जो वास्तव में इस समस्या का समाधान चाहते हैं, वे समिति के साथ सहयोग करेंगे।

पीठ ने कहा कि वह देश के नागरिकों की जान माल की हिफाजत को लेकर चिंतित हैं और इस समस्या को हल करने का प्रयास कर रही है।

न्यायालय ने सुनवाई के दौरान न्यायपालिका और राजनीति में अंतर को भी स्पष्ट किया और किसानों से कहा कि यह राजनीति नहीं है। न्यायालय ने साफ कहा कि किसानों को इस समिति के साथ सहयोग करना चाहिए।

इससे पहले, न्यायालय ने तीन कृषि कानूनों को लेकर किसानों के विरोध प्रदर्शन से निबटने के तरीके पर सोमवार को केन्द्र को आड़े हाथ लिया था और किसानों के साथ हुयी उसकी बातचीत के तरीके पर गहरी निराशा व्यक्त की थी।

तीन कृषि कानूनों को लेकर केन्द्र और किसान यूनियनों के बीच आठ दौर की बातचीत के बावजूद कोई रास्ता नहीं निकला है क्योंकि केन्द्र ने इन कानूनों को समाप्त करने की संभावना से इंकार कर दिया है जबकि किसान नेताओं का कहना है कि वे अंतिम सांस तक इसके लिये संघर्ष करने को तैयार हैं और ‘कानून वापसी’ के साथ ही उनकी ‘घर वापसी’ होगी।

भाषा अनूप

दिलीप

दिलीप

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)