( मैनुअल लियोन उरुतिया, सीनियर टीचिंग फेलो, इलेक्ट्रॉनिक्स और कंप्यूटर विज्ञान विभाग, साउथम्प्टन विश्वविद्यालय)
साउथम्पटन (ब्रिटेन), 18 जुलाई (द कन्वर्सेशन) महामारी के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य पर निर्णय सरकार के आंकड़ों की व्याख्या पर आधारित रहे हैं।
सोमवार 19 जुलाई से इंग्लैंड में कोविड पाबंदियां हटने से अब इसकी जिम्मेदारी मुख्य रूप से आम जनता और समाचार मीडिया संस्थाओं पर पड़ेगी जो लोगों को सूचित करते हैं।
सरकार से आम लोगों पर इसकी जिम्मेदारी आने से इस बदलाव की सफलता अब इस बात का मूलभूत कारक होगी कि ब्रिटेन कितनी सफलता से महामारी से बाहर निकलने का रास्ता तैयार करता है। इसके मूल में आंकड़ा साक्षरता या जनता को इसे समझने की क्षमता और सूचना के आधार पर निर्णय लेने की क्षमता का सवाल है जो कि मास्क पहनने, स्व-पृथक-वास और घर पर काम करने के बारे में फैसला-वे जिस कोविड आंकड़े से अवगत हैं, उसपर आधारित हो सकता है।
आंकड़ा साक्षरता में बतौर विशेषज्ञ साउथम्प्टन विश्वविद्यालय के इलेक्ट्रॉनिक्स और कंप्यूटर विज्ञान विभाग में सीनियर टीचिंग फेलो मैनुअल लियोन उरुतिया ने इन्हीं बातों की पड़ताल की। उरुतिया ने कहा, ‘‘आंकड़ा साक्षरता में एक विशेषज्ञ के तौर पर मैंने देखा कि मार्च 2020 से समाज की आजादी तय करने में आंकड़ों की भूमिका अहम रही है। आला सांख्यिकीय शब्दजाल और डेटा विजुअलाइजेशन अब सार्वजनिक डोमेन में व्यापक हैं, विशेषज्ञ डेटा साइटों जैसे जॉन्स हॉपकिन्स कोविड-19 मैप और वर्ल्डोमीटर के कोरोनावायरस पेज को काफी लोग देख रहे हैं।’’
उन्होंने कहा, लेकिन सवाल यह है कि क्या इंग्लैंड के लोग अपने स्तर पर कोविड-19 संबंधी इन आंकड़ों की बाढ़ को समझ पाएंगे? एक अध्ययन में पहले यह सुझाव दिया गया है कि लॉकडाउन खत्म होने से लोग कोविड-19 को गंभीरता से लेना कम कर देंगे। इसके अलावा कोविड-19 के आंकड़े जटिल एवं वायरस के नए स्वरूपों के पनपने और फैलने से ये परिवर्तनशील हैं। यह अस्पष्ट है कि क्या आम जनता 19 जुलाई के बाद इन सूचनाओं के आधार पर आंकड़ा आधारित फैसले ले पाएगी।
आंकड़ों की माथापच्ची
उरुतिया ने कहा कि उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि लोग अब कुछ शब्दावली जेसे कि ‘‘आंकड़ों का नीचे गिरना’’ से परिचित हैं। आखिरकार एक बेहतर सूचित समाज ही एक सफल समाज है और जनता तक आंकड़ा आधारित सूचना का प्रावधान इस बात में योगदान देता प्रतीत हो रहा है कि मिलकर हम कोविड-19 को हरा सकते हैं।
उन्होंने बताया कि लेकिन दिख रही आंकड़ों में वृद्धि निश्चित रूप से आंकड़ा साक्षरता बढ़ने के तौर पर नहीं देखी जानी चाहिए। उदाहरण के लिए महामारी की शुरुआत में यह पाया गया कि लघुगणक ग्राफ के जरिए कोविड-19 से मौतों का आंकड़ा दर्शाना लोगों को भ्रमित कर सकता है। इससे कुछ लोग कोविड-19 के मामलों में हो रही वृद्धि को कम करके आंक सकते हैं। हालांकि वर्तमान में उपलब्ध अत्यधिक आंकड़ों से भी आम समझ बनने की गारंटी नहीं है। आंकड़ों की अधिकता समस्या सुलझाने के बजाय लोगों की राय का ध्रुवीकरण में योगदान कर सकती है।
उन्होंने बताया कि हाल ही में एक अध्ययन में पाया गया कि कोविड-19 को लेकर संशय रखने वाले अपने विवादास्पद विचारों के प्रसार के लिए रूढ़िवादी आंकड़ा प्रस्तुति तकनीकों का उपयोग करते हैं जिससे पता चलता है कि कैसे अधिक आंकड़ों के परिणाम बेहतर तरीके से समझ नहीं आते। हालांकि आंकड़ा को वस्तुनिष्ठ और प्रयोग आधारित माना जाता है, लेकिन इसने महामारी के दौरान एक राजनीतिक, व्यक्तिनिष्ठ रंग धारण किया है।
ये उदाहरण दर्शाते हैं सिर्फ आंकड़ों की समझ रखने वाला व्यक्ति ही सही फैसले ले सकता है और लोगों को सुरक्षा के प्रति सजग कर सकता है।
सूचना की समझ पैदा करना
पत्रकार वैज्ञानिक समुदाय और आम जनता के बीच महत्वपूर्ण माध्यम हैं। विशेष रूप से आंकड़ा आधारित पत्रकारिता महामारी से पहले पत्रकारिता का एक अपेक्षाकृत छोटा रूप है जो यह बताने में आवश्यक रहा है कि सरकारों को सूचित करने वाले वैज्ञानिक अपने निर्णयों तक कैसे पहुंचे।
वर्तमान में आंकड़ों की अधिकता के कारण भ्रामक सूचनाओं से निपटने के लिए यूरोपीय आयोग ने मीडिया फ्यूचर्स और योरडाटास्टोरीज जैसी परियोजनाओं को वित्त पोषित किया है। मीडिया फ्यूचर्स का उद्देश्य मीडिया द्वारा आंकड़ों के उपयोग के तरीके को फिर से आकार देना है, जबकि योरडाटास्टोरीज का उद्देश्य आंकड़ा-संचालित सूचना आपूर्तिकर्ताओं को पत्रकारों के करीब लाने के लिए उपकरण विकसित करना है। आयोग पूरे यूरोपीय संघ में डेटा साक्षरता शिक्षा को भी धन मुहैया कराता है जो दर्शाता है कि सार्वजनिक प्राधिकरण अब आंकड़ा साक्षरता को कितनी गंभीरता से ले रहे हैं।
द कन्वर्सेशन सुरभि नेत्रपाल
नेत्रपाल
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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