संविधान के अनुरूप राज्य की प्रत्येक कार्रवाई का आकलन किया जाना चाहिये: न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ | Every action of the State should be assessed in accordance with the Constitution: Justice Chandrachud

संविधान के अनुरूप राज्य की प्रत्येक कार्रवाई का आकलन किया जाना चाहिये: न्यायमूर्ति चंद्रचूड़

संविधान के अनुरूप राज्य की प्रत्येक कार्रवाई का आकलन किया जाना चाहिये: न्यायमूर्ति चंद्रचूड़

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:56 PM IST, Published Date : July 17, 2021/4:31 pm IST

नयी दिल्ली, 17 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि सरकार की चुनावी वैधता के बावजूद, संविधान के अनुरूप राज्य की प्रत्येक कार्रवाई या निष्क्रियता का आकलन किया जाना चाहिये।

उन्होंने यह भी कहा कि ”हमारे संवैधानिक वादे” की पृष्ठभूमि के तहत बहुसंख्यकवादी प्रवृत्तियों पर सवाल उठाया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ”अधिनायकवाद, नागरिक स्वतंत्रता पर रोक, लैंगिकवाद, जातिवाद, धर्म या क्षेत्र के आधार पर भेदभाव खत्म करना पवित्र वादा है, जो भारत को संवैधानिक गणराज्य के रूप में स्वीकार करने वाले हमारे पूर्वजों से किया गया था।”

वह अपने पिता न्यायमूर्ति वाईवी चंद्रचूड़ की 101वीं जयंती पर शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली महाराष्ट्र की संस्था शिक्षण प्रसार मंडली (एसपीएम) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में ”संविधान के रक्षक के रूप में छात्र” विषय पर बोल रहे थे। न्यायमूर्ति वाई वी चंद्रचूड़ भारत के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले मुख्य न्यायाधीश थे।

उन्होंने कहा कि भारत एक संवैधानिक गणतंत्र के रूप में 71वें वर्ष में है । कई अवसरों पर यह महसूस किया जा सकता है कि देश का लोकतंत्र अब नया नहीं है और संवैधानिक इतिहास का अध्ययन करने और इसके ढांचे के साथ जुड़ने की आवश्यकता उतनी सार्थक नहीं है।

उन्होंने कहा, ”हालांकि, यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि शांति या संकट के समय में, सरकार की चुनावी वैधता के बावजूद संविधान के अनुरूप राज्य की प्रत्येक कार्रवाई या निष्क्रियता का आकलन करना होगा।”

उन्होंने कहा कि भारत राज्य के अनुचित हस्तक्षेप के बिना, एक राष्ट्र के रूप में धार्मिक स्वतंत्रता, लिंग, जाति या धर्म के बावजूद व्यक्तियों के बीच समानता, अभिव्यक्ति और आवाजाही की मौलिक स्वतंत्रता जैसी कुछ प्रतिबद्धताओं और अधिकारों के वादे के दम पर एकजुट है। यह जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का स्थायी अधिकार है।

उन्होंने कहा, ”बहुसंख्यक प्रवृत्तियां जब भी और जैसे भी सिर उठाती हैं, तब उसपर हमारे संवैधानिक वादे की पृष्ठभूमि के तहत सवाल उठाया जाना चाहिए।”

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने डॉ. भीमराव आंबेडकर को याद किया और कहा कि जातिवाद, पितृसत्ता और दमनकारी हिंदू प्रथाओं के खिलाफ लड़ाई शुरू करने से पहले, उनका पहला संघर्ष शिक्षा तक पहुंच प्राप्त करना था।

उन्होंने एसपीएम द्वारा संचालित शिक्षण संस्थान के छात्रों को संबोधित करते हुए कहा, “एक अछूत दलित महार जाति के एक व्यक्ति के रूप में बाबासाहेब ने प्राथमिक शिक्षा तक पहुंच प्राप्त करने में काफी संघर्ष किया।”

उन्होंने कहा, ”स्कूली शिक्षा की उनकी सबसे महत्वपूर्ण यादें अपमान और अलगाव से जुड़ी हैं, जहां उन्हें कक्षा के बाहर बैठकर पढ़ाई करनी पड़ती थी। यह सुनिश्चित किया जाता था कि वह उच्च जाति के छात्रों से संबंधित पानी या नोटबुक न छू पाएं।”

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि आंबेडकर ने अंततः 26 डिग्रियां और उपाधियां प्राप्त कीं। वह अपनी पीढ़ी के सबसे उच्च शिक्षित भारतीयों में से एक बन गए। उन्होंने शिक्षा केवल आत्म-उन्नति के लिए हासिल नहीं की बल्कि उन्होंने अपनी परिवर्तनकारी क्षमता के दम पर संविधान पर अपनी छाप छोड़ी।

उन्होंने कहा कि आंबेडकर की तरह, भारत और दुनिया में कई क्रांतिकारियों जैसे सावित्रीबाई फुले, ज्योतिबा फुले, नेल्सन मंडेला और यहां तक ​​कि मलाला यूसुफजई ने अपने मुक्ति आंदोलनों के जरिये शिक्षा के लिए एक क्रांतिकारी खोज की शुरुआत की।

उन्होंने कहा, ”ये कहानियां उपयोगी अनुस्मारक हैं कि आज हमारे पास शिक्षा का विशेषाधिकार, सबसे साहसी संघर्षों का फल है और हमारे पूर्वजों के सपनों का प्रतिनिधित्व करता है।”

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि उनका दृढ़ विश्वास है कि छात्र मौजूदा प्रणालियों और पदानुक्रमों पर सवाल उठाने के लिए अपने प्रारंभिक वर्षों का उपयोग करके प्रगतिशील राजनीति और संस्कृतियों की शुरुआत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

भाषा जोहेब उमा दिलीप

दिलीप

 

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