आवास में कमी के कारण अपने ही समूह के साथ प्रजनन को बाध्य हो रहे हैं भारतीय बाघ | Indian tigers are forced to breed with their own group due to lack of habitat

आवास में कमी के कारण अपने ही समूह के साथ प्रजनन को बाध्य हो रहे हैं भारतीय बाघ

आवास में कमी के कारण अपने ही समूह के साथ प्रजनन को बाध्य हो रहे हैं भारतीय बाघ

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:55 PM IST, Published Date : February 23, 2021/1:21 pm IST

नयी दिल्ली, 23 फरवरी (भाषा) दुनिया भर में पायी जाने वाली बिल्लियों की प्रजातियों में सबसे ज्यादा जेनेटिक विविधता भारतीय बाघों में पायी जाती है लेकिन उनके आवास में कमी आने के कारण वह छोटे-छोटे समूहों में बंट गए हैं। इसके फलस्वरूप अब बाघ सिर्फ अपने समूह के भीतर ही प्रजनन करने को बाध्य हैं जिससे उनकी जैव/जेनेटिक विविधता धीरे-धीरे समाप्त हो सकती है।

मॉलेक्यूलर बायोलॉजी एंड एवोल्यूशन पत्रिका में प्रकाशित नए अध्ययन में उक्त बात कही गई है। अध्ययन की सह-लेखक उमा रामकृष्ण ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ी, जमीन पर इंसानों का कब्जा भी बढ़ा। हमें पता है कि जमीन पर इंसानों के कब्जे के कारण बाघों के स्वतंत्रता से घूमने में बाधा आयी है।’’

बेंगलुरु स्थित नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंस की सहायक प्रोफेसर रामकृष्ण के अनुसार, मानव गतिविधियों के कारण आवास में आयी कमी से बाघ ‘‘अपने संरक्षित क्षेत्र में ही सिमट कर रहने को मजबूर हो गए हैं।’’

उन्होंने बताया, ‘‘ऐसे में वो अब अपने ही समूह के बाघों के साथ प्रजनन करने को बाध्य हैं। समय के साथ-साथ यह इनब्रिडिंग में बदल जाएगा और वे सिर्फ अपने परिवार के साथ ही प्रजनन करेंगे।’’

विज्ञान की भाषा में इनब्रिडिंग का तात्पर्य ऐसे प्रजनन से है जहां दो जीव एक-दूसरे के साथ जेनेटिक रूप से बहुत करीब से जुड़े हों। सामान्य भाषा में कहे तो एक ही परिवार के दो जीवों के बीच प्रजनन को इनब्रिडिंग कहेंगे।

मॉलेक्यूलर इकोलॉजिस्ट ने कहा, ‘‘इस इनब्रिडिंग से उनकी तंदुरुस्ती, जीवित रहने की क्षमता आदि पर कोई असर होगा या नहीं, इस बारे में हमें अभी तक पता नहीं है।’’

अध्ययन में कहा गया है कि जेनेटिक विविधता से भविष्य में उनके जीवित रहने की संभावना बढ़ती है, ऐसे में बाघों के छोटे-छोटे समूहों में बंट जाने से विविधता घटेगी और उन पर खतरा बढ़ेगा।

बाघों के संरक्षण को बहुत महत्व दिया जा रहा है, लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि उनके विकास क्रम के इतिहास और जेनोमिक विविधता, विशेष रूप से भारतीय बाघों के संदर्भ में, बहुत कम जानकारी है।

दुनिया के 70 प्रतिशत बाघ भारत में रहते हैं, ऐसे में अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि देश में बाघों की जेनेटिक विविधता को समझना दुनिया भर में प्रजाति के संरक्षण के लिहाज से महत्वपूर्ण है।

उनका कहना है कि तीन साल लंबे अध्ययन की मदद से बाघों के बीच जेनेटिक विविधता और उसकी प्रक्रिया के बारे में काफी कुछ समझने को मिला है।

भाषा अर्पणा नरेश

नरेश

 

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