क्या मरीजों के परिजनों के उत्पीड़न से डॉक्टरों को बचाने के लिए कोई प्रोटोकॉल है : बंबई उच्च न्यायालय | Is there any protocol to protect doctors from harassment of patients' families: Bombay High Court

क्या मरीजों के परिजनों के उत्पीड़न से डॉक्टरों को बचाने के लिए कोई प्रोटोकॉल है : बंबई उच्च न्यायालय

क्या मरीजों के परिजनों के उत्पीड़न से डॉक्टरों को बचाने के लिए कोई प्रोटोकॉल है : बंबई उच्च न्यायालय

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:07 PM IST, Published Date : June 10, 2021/1:28 pm IST

मुंबई, 10 जून (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को महाराष्ट्र सरकार से पूछा कि क्या 24 घंटे कोविड-19 मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टरों को मरीजों के रिश्तेदारों द्वारा किए जाने वाले उत्पीड़न से बचाने के लिए कोई प्रोटोकॉल है?

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी ने कहा कि सरकार डॉक्टरों की रक्षा के लिए उठाए गए कदमों से अदालत को अवगत कराए। अदालत इस मामले में शुक्रवार को उचित आदेश पारित करेगी।

अदालत ने कोविड-19 से जुड़े संसाधनों के प्रबंधन और मरीजों के परिजनों द्वारा डॉक्टरों पर हमलों की बढ़ती संख्या को लेकर दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये निर्देश दिए।

सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता राजेश इनामदार ने अदालत को बताया कि पूरे राज्य के विभिन्न कोविड-19 वार्ड में काम कर रहे कई डॉक्टरों को लगातार पुलिस से उन मामलों में नोटिस आ रहे हैं जिन्हें मरीजों के रिश्तेदारों ने इलाज से असंतुष्ट होने पर या मरीज की मौत होने पर दर्ज कराया है।

इनामदार ने कहा, ‘‘मृत मरीजों के रिश्तेदार इलाज की पर्ची और दवा के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा तय नियमावली लेकर पुलिस के पास जाते हैं और इसकी वजह से डॉक्टरों को पुलिस से नोटिस आता है जो पहले ही कोविड-19 वार्ड में काम के अधिक बोझ से दबे हुए हैं। डॉक्टरों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई शुरू करने के मामले में दबाव बनाने वाली प्रतिक्रिया नहीं होनी चाहिए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ कुछ खास दवा नहीं लिखने या दवा देने की सटीक नियमावली का अनुपालन नहीं होने पर वे (शिकायतकर्ता) शिकायत दर्ज करा देते हैं।’’

सुनवाई के दौरान वीडियो कांफ्रेंस के जरिये पेश डॉक्टर जो भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) का प्रतिनिधित्व कर रहे थे ने अदालत से कहा, ‘‘ डॉक्टरों पर बेवजह हमले हो रहे हैं।’’

उन्होंने कहा कि डॉक्टर यथासंभव प्रोटोकॉल का अनुपालन करते हैं लेकिन किसी खास दवा या उसकी खुराक मरीज के हालात पर, उसकी अन्य बीमारियों और इलाज के असर पर निर्भर करती है।

अदालत ने पक्ष सुनने के बाद कहा कि डॉक्टरों पर पहले ही महामारी की वजह से काम का अतिरिक्त बोझ है और उन्हें ऐसे उत्पीड़न का सामना नहीं करना चाहिए या और अपना समय पुलिस को सफाई देने में व्यय नहीं करना चाहिए।

भाषा धीरज अनूप

अनूप

 

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