नेपाल की राष्ट्रपति ने संसद भंग कर नवंबर में मध्यावधि चुनाव की घोषणा की, विपक्ष देगा फैसले को चुनौती | Nepal's President dissolves Parliament and announces mid-term elections in November, opposition to challenge decision

नेपाल की राष्ट्रपति ने संसद भंग कर नवंबर में मध्यावधि चुनाव की घोषणा की, विपक्ष देगा फैसले को चुनौती

नेपाल की राष्ट्रपति ने संसद भंग कर नवंबर में मध्यावधि चुनाव की घोषणा की, विपक्ष देगा फैसले को चुनौती

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:56 PM IST, Published Date : May 22, 2021/3:27 pm IST

(शिरीष बी प्रधान)

काठमांडू, 22 मई (भाषा) नेपाल की राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली और विपक्षी गठबंधन के सरकार बनाने के दावों को खारिज करते हुए शनिवार को पांच महीने के अंदर दूसरी बार संसद की प्रतिनिधि संभा को भंग कर नवंबर में मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा की। विपक्षी गठबंधन ने इसकी कानूनी वैधता को चुनौती देने की घोषणा की है।

राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी की तरफ से अलसुबह जारी एक बयान में घोषणा की गई कि संविधान के अनुच्छेद 76(7) के तहत प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया गया है और इसके साथ ही कोविड-19 महामारी के बीच इस हिमालयी राष्ट्र में दिन भर चले सियासी घटनाक्रम का पटाक्षेप हो गया।

अनुच्छेद के मुताबिक, छह महीने के अंदर फिर से चुनाव कराने की तारीख तय करना भी अनिवार्य है। मध्यावधि चुनाव के लिये 12 नवंबर और 19 नवंबर की तारीख तय की गई है।

भंडारी की इस घोषणा से पहले प्रधानमंत्री ओली ने शुक्रवार की आधी रात को मंत्रिमंडल की आपात बैठक के बाद 275 सदस्यीय सदन को भंग करने तथा चुनाव की नई तारीख के ऐलान की घोषणा की सिफारिश की थी।

इससे पहले राष्ट्रपति कार्यालय के एक नोटिस में कहा गया कि वह न तो वह पदस्थ प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और न ही नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को नियुक्त कर सकता है। दोनों ने ही सरकार बनाने के लिए पर्याप्त समर्थन होने का दावा किया था।

भंडारी ने एक बयान में कहा, “यह पाया गया कि प्रधानमंत्री ओली ने उन सांसदों को भी अपने समर्थकों के तौर पर गिना जिन्होंने विपक्षी गठबंधन को समर्थन दिया था, वहीं यूएमएल और जेएसपी-एन ने पत्र भेजकर कहा कि उन सांसदों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी जो विपक्ष के दावों का समर्थन करते हुए पार्टी के खिलाफ गए।”

राष्ट्रपति की घोषणा के बाद नेपाल में सियासी संकट और गहरा गया है और यह उनके दिसंबर 2020 के फैसले की याद दिलाता है,जब उन्होंने ओली की अनुशंसा पर पहली बार प्रतिनिधि सभा को भंग किया था। उनका यह कदम नेपाली राजनीति को अनिश्चितता की दिशा की तरफ ले गया।

उच्चतम न्यायालय ने दोनों के कदमों को फरवरी में रद्द कर दिया था।

एक बार फिर संसद को भंग करने की सिफारिश पर नेपाल में शनिवार को विपक्षी गठबंधन ने प्रधानमंत्री ओली और राष्ट्रपति भंडारी के सदन को भंग करने के “असंवैधानिक व अलोकतांत्रिक” कदम के खिलाफ सभी कानूनी और राजनीतिक विकल्प अपनाने का फैसला किया है।

विपक्षी गठबंधन ने इस राजनीतिक संकट पर बुलाई गई बैठक के बाद एक संयुक्त वक्तव्य जारी कर कहा कि विपक्ष वर्षों के राजनीतिक संघर्ष के बाद नेपाली नागरिकों को प्राप्त हुए संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने को लेकर पूरी तरह एकजुट और प्रतिबद्ध है।

उन्होंने सभी राजनीतिक व नागरिक शक्तियों से ओली-भंडारी की प्रतिगामी और निरंकुश मंशा की निंदा करने और उसके खिलाफ खड़े होने का अनुरोध किया। विपक्ष ने उनके इस कदम को “असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक और मनमाना” करार दिया।

विपक्षी गठबंधन की ओर से जारी किए गए वक्तव्य पर नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा, सीपीएन-माओवादी सेंटर के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’, सीपीएन-यूएमएल के नेता माधव कुमार नेपाल, जनता समाजवादी पार्टी-नेपाल के अध्यक्ष उपेंद्र यादव और राष्ट्रीय जनमोर्चा के उपाध्यक्ष दुर्गा पौडेल ने हस्ताक्षर किए।

विपक्षी गठबंधन अपने सभी सांसदों के साथ रविवार को राष्ट्रपति के फैसले को रद्द कराने की मांग को लेकर उच्चतम न्यायालय जाने की रणनीति बना रहा है।

इन दलों ने राष्ट्रपति पर प्रधानमंत्री के साथ मिलकर संविधान और लोकतंत्र पर हमला करने का आरोप लगाया। ओली सदन में विश्वास मत हार चुके हैं।

समाचार वेबसाइट ‘माई रिपब्लिका डॉट काम’ ने विपक्षी गठबंधन के बयान का हवाला देते हुए कहा, “राष्ट्रपति को एनसी के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को संविधान के अनुच्छेद 76(5) के तहत नियुक्त करना चाहिए था, क्योंकि उनके पास निचले सदन में 149 सांसदों का समर्थन था।”

इन दलों ने दावा किया कि सरकार देश में कोविड-19 महामारी के बावजूद अपने निरंकुश शासन को लंबा खींचना चाहती है।

नेपाली कांग्रेस (एनसी) ने राष्ट्रपति भंडारी और प्रधानमंत्री ओली पर अपने फायदे के लिये संविधान का अपनी संपत्ति की तरह दुरुपयोग करने का आरोप लगाया।

बयान में कहा गया, “प्रधानमंत्री ओली की नयी सरकार के गठन की अनुशंसा, राष्ट्रपति भंडारी का 24 घंटे से भी कम का समय देते हुए सरकार बनाने का दावा करने की घोषणा, संविधान के प्रावधानों के मुताबिक प्रधानमंत्री नियुक्त न करना तथा प्रतिनिधि सभा को भंग करना और आधी रात को मंत्रिमंडल की बैठक करना असंवैधानिक व अलोकतांत्रिक है।”

इसमें कहा गया, “एनसी इस तरह की गतिविधियों पर कड़ी आपत्ति जताती है।”

देउबा ने राष्ट्रपति के इस फैसले के खिलाफ सभी राजनीतिक दलों से एकजुट होने का आग्रह करते हुए कहा कि संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए सभी लोकतांत्रिक ताकतों को मिलकर आगे आना चाहिए और इसके खिलाफ राजनीतिक तथा कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए।

नेपाल के राजनीतिक संकट में शुक्रवार को उस वक्त नाटकीय मोड़ आ गया जब प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली और विपक्षी दलों दोनों ने ही राष्ट्रपति को सांसदों के हस्ताक्षर वाले पत्र सौंपकर नयी सरकार बनाने का दावा पेश किया।

ओली ने अपनी पार्टी सीपीएन-यूएमएल के 121 सांसदों, तथा जनता समाजवादी पार्टी-नेपाल (जेएसपी-एन) के 32 सांसदों के समर्थन का दावा करते हुए संविधान के अनुच्छेद 76(5) के तहत फिर से अपनी नियुक्ति की मांग की थी।

नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष देउबा ने 149 सांसदों के समर्थन का दावा किया था।

हालांकि एक नया विवाद तब खड़ा हो गया जब माधव नेपाल धड़े के कुछ सांसदों ने यह दावा करते हुए बयान दिया कि उनके हस्ताक्षरों का दुरुपयोग किया गया है और उन्होंने विपक्षी नेता देउबा को उनकी अपनी पार्टी के प्रमुख के खिलाफ प्रधानमंत्री के तौर पर नियुक्त करने के किसी पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।

इस बीच, प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने शनिवार को निर्वाचन आयोग से भंग प्रतिनिधि सभा के आगामी चुनाव के लिए आवश्यक तैयारी शुरू करने और पारदर्शी तथा निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने को कहा है।

निर्वाचन आयोग के आयुक्तों के साथ बैठक में प्रधानमंत्री ओली ने कहा कि संसदीय चुनाव अपरिहार्य हैं।

ओली के प्रेस सलाहकार सूर्य थापा के मुताबिक, ‘‘प्रधानमंत्री ने निर्वाचन आयोग को निर्धारित समय पर चुनाव कराने के लिए तैयारियां तेज करने का निर्देश दिया।’’

भाषा

प्रशांत दिलीप

दिलीप

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)