दक्षिण एशियाई लोगों में आनुवंशिक जोखिम कारक और कोविड की गंभीरता के बीच कोई संबंध नहीं: अध्ययन | No link between genetic risk factor and covid severity in South Asians: study

दक्षिण एशियाई लोगों में आनुवंशिक जोखिम कारक और कोविड की गंभीरता के बीच कोई संबंध नहीं: अध्ययन

दक्षिण एशियाई लोगों में आनुवंशिक जोखिम कारक और कोविड की गंभीरता के बीच कोई संबंध नहीं: अध्ययन

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:58 PM IST, Published Date : June 11, 2021/11:38 am IST

नयी दिल्ली, 11 जून (भाषा) यूरोपीय आबादी में कोविड-19 की गंभीरता के लिए प्रमुख आनुवंशिक जोखिम कारक दक्षिण एशियाई लोगों में बीमारी की संवेदनशीलता को नहीं बढ़ा सकता है। भारत और बांग्लादेश के आंकड़े का इस्तेमाल कर किये गये एक अध्ययन में यह बात सामने आई है।

महामारी की शुरुआत के बाद से वैज्ञानिक इस संबंध में सोच रहे थे कि कुछ लोगों में दूसरों की तुलना में कोविड-19 से अधिक गंभीर लक्षण और प्रतिकूल प्रभाव क्यों दिखाई देते है। यूरोपीय आबादी पर किए गए पहले के एक अध्ययन में डीएनए, या आनुवंशिक सामग्री के एक विशिष्ट खंड में भिन्नता का सुझाव दिया गया था जो कोविड-19 संक्रमण की गंभीरता और अस्पताल में भर्ती होने से जुड़ा है।

यह डीएनए खंड 16 प्रतिशत यूरोपीय लोगों की तुलना में 50 प्रतिशत दक्षिण एशियाई लोगों में मौजूद है। सीएसआईआर के सेल्युलर और आणविक जीवविज्ञान केन्द्र (सीसीएमबी), हैदराबाद के कुमारसामी थंगराज और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू), वाराणसी के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम ने दक्षिण एशियाई आबादी के बीच कोविड-19 के निष्कर्षों का विश्लेषण किया।

‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल’ में शुक्रवार को प्रकाशित इस अध्ययन में यह पाया गया कि यूरोपीय लोगों में कोविड-19 गंभीरता के लिए जिम्मेदार आनुवंशिक वेरिएंट दक्षिण एशियाई लोगों में रोग की संवेदनशीलता में भूमिका नहीं निभा सकता है। थंगराज ने कहा, ‘‘इस अध्ययन में हमने महामारी के दौरान तीन अलग-अलग समय पर दक्षिण एशियाई जीनोमिक आंकड़े के साथ संक्रमण और मामले की मृत्यु दर की तुलना की है। हमने विशेष रूप से भारत और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में आबादी पर ध्यान दिया है।’’

इस अध्ययन के अन्य प्रतिभागियों में ढाका विश्वविद्यालय, बांग्लादेश, मध्य प्रदेश में फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला और बिड़ला वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान, जयपुर के शोधकर्ता शामिल थे।

भाषा

देवेंद्र उमा

उमा

 

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