राज्यसभा ने दिवाला कानून में संशोधन को मंजूरी दी, कोरोना काल के 6 माह में नहीं की जा सकेगी दिवाला कार्रवाई | Rajya Sabha approves amendment to insolvency law

राज्यसभा ने दिवाला कानून में संशोधन को मंजूरी दी, कोरोना काल के 6 माह में नहीं की जा सकेगी दिवाला कार्रवाई

राज्यसभा ने दिवाला कानून में संशोधन को मंजूरी दी, कोरोना काल के 6 माह में नहीं की जा सकेगी दिवाला कार्रवाई

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:44 PM IST, Published Date : September 19, 2020/2:25 pm IST

नयी दिल्ली, 19 सितंबर (भाषा) राज्यसभा ने शनिवार को दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (दूसरा संशोधन) विधेयक 2020 को मंजूरी दे दी। इसके तहत कोरोना वायरस महामारी की वजह से 25 मार्च से छह महीने तक कोई नई दिवाला कार्रवाई शुरू नहीं की जाएगी। यह छह माह की अवधि अगले सप्ताह समाप्त हो रही है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि इस बारे में संबंधित प्रावधानों को स्थगित करने पर फैसला अगले सप्ताह लिया जाएगा।

कोविड-19 की वजह से सरकार ने 25 मार्च से छह महीने के लिए संबंधित प्रावधानों को स्थगित करने का फैसला किया था। इसके लिए जून में अध्यादेश लाया गया था। देश में कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए 25 मार्च को ही लॉकडाउन लगाया गया था। इस विधेयक को संक्षिप्त चर्चा के बाद ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। यह इस बारे में जून में जारी अध्यादेश का स्थान लेगा। विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा कि इन प्रावधानों का स्थगन अगले सप्ताह समाप्त हो रहा है।

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सीतारमण ने कहा, ‘‘फिलहाल संहिता में संशोधन मुझे इसे सिर्फ एक साल तक विस्तार देने की अनुमति देता है। यह 25 सितंबर को समाप्त हो रहा है। 24 सितंबर को हमें घोषणा करनी होगी कि आगे क्या होगा। यदि मैं ऐसा करती भी हूं, तो मार्च में यह समाप्त हो जाएगा।’’

वित्त मंत्री ने स्पष्ट किया कि 25 मार्च से पहले कर्ज भुगतान में चूक करने वाली कंपनियों के खिलाफ दिवाला प्रक्रिया के तहत कार्रवाई जारी रहेगी। उन्होंने कहा कि इस संशोधन से ऐसी कंपनियों को राहत नहीं मिलेगी। ज्यादातर विपक्षी दलों ने विधेयक का समर्थन करते हुए सरकार से मांग की है कि कोविड-19 की वजह से संकट में फंसे किसानों और गरीबों लोगों को कर्ज पर ब्याज में छूट दी जाए।

चर्चा के दौरान कई सदस्यों ने यह आशंका जताई कि कंपनियों द्वारा इसका दुरुपयोग किया जा सकता है। हालांकि, इसके साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई कि इससे अर्थव्यवस्था को उबारने में मदद मिलेगी। वित्त मंत्री ने कहा कि दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता के तहत कर्ज भुगतान में चूक करने वाली कंपनियों तथा व्यक्तिगत गारंटी देने वालों के खिलाफ साथ-साथ दिवाला कार्रवाई चल सकती है।

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कुछ सदस्यों द्वारा यह मुद्दा उठाए जाने पर सीतारमण ने कहा, ‘‘कई बार कर्ज लेने वाली कंपनियों की ओर कुछ गारंटर होते हैं। ऐसे में वृहद कॉरपोरेट दिवाला समाधान एवं परिसमापन के लिए हमारा मानना है कि जहां तक संभव हो, कॉरपोरेट कर्जदार और उसके गारंटर के खिलाफ साथ-साथ दिवाला कार्रवाई की जाए।’’

सदस्यों द्वारा यह पूछे जाने पर कि सबसे पहले यह अध्यादेश लाने की हड़बड़ी क्या थी, सीतारमण ने कहा, ‘‘विभिन्न सत्रों के बीच यदि जमीनी स्थिति की मांग होती है, तो अध्यादेश लाने की जरूरत पड़ती है। एक जिम्मेदार सरकार का दायित्य अध्यादेश का इस्तेमाल कर यह दिखाना होता है कि वह भारत के लोगों के साथ है।’’वित्त मंत्री ने कहा कि महामारी के कारण बनी स्थिति की वजह से समय की मांग थी कि तत्काल कदम उठाए जाएं और उसके लिए अध्यादेश का तरीका चुना गया।वित्त मंत्री ने कहा कि अध्यादेश को कानून बनाने के लिए सरकार अगले ही सत्र में विधेयक लेकर आ गयी।

सीतारमण ने कहा कि कोविड-19 की वजह से कंपनियों को संकट से जूझना पड़ रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे में हमने आईबीसी की धारा 7, 9, 10 को स्थगित करने का फैसला किया। इससे हम असाधारण परिस्थितियों की वजह से दिवाला होने जा रही कंपनियों को बचा पाए।’’

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आईबीसी की धारा 7, 9 और 10 किसी कंपनी के वित्तीय ऋणदाता, परिचालन के लिए कर्ज देने वालों को उसके खिलाफ दिवाला ऋणशोधन अक्षमता प्रक्रिया शुरू करने से संबंधित है। मंत्री ने कहा कि आईबीसी अब कारोबार का महत्वपूर्ण हिस्सा है। उन्होंने कुछ आंकड़े देते हुए बताया कि अभी तक आईबीसी ने अच्छा प्रदर्शन किया है।

वित्त वर्ष 2018-19 के वाणिज्यिक बैंकों की गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) के आंकड़ों का उल्लेख करते हुए सीतारमण ने कहा कि लोक अदालतों के जरिये 5.3 प्रतिशत ऋण की वसूली हुई। ऋण वसूली न्यायाधिकरणों (डीआरटी) के जरिये 3.5 प्रतिशत तथा वित्तीय आस्तियों के प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण एवं प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियम (सरफेसी) के जरिये 14.5 प्रतिशत की वसूली की गई। उन्होंने कहा कि वहीं आईबीसी के जरिये 42.5 प्रतिशत की वसूली हुई।

उन्होंने कहा कि आईबीसी का मकसद कंपनियों को चलता हाल बनाए रखना है, उनका परिसमापन करना नहीं है। उन्होंने कहा कि आईबीसी प्रक्रिया के जरिये 258 कंपनियों को परिसमापन से बचाया जा सका। वहीं 965 कंपनियां परिसमापन की प्रक्रिया में गईं।

वित्त मंत्री ने कहा कि जिन 258 कंपनियों को परिसमापन से बचाया गया, उनकी कुल संपत्तियां 96,000 करोड़ रुपये थीं। वहीं परिसमापन के लिए भेजी गई संपत्तियों का मूल्यांकन 38,000 करोड़ रुपये था। सीतारमण ने कहा कि मूल्य के हिसाब से देखा जाए, तो आईबीसी से जो संपत्तियां बचाई गईं, वे परिसमापन वाली संपत्तियों का ढाई गुना हैं।

इस संशोधन के तहत आईबीसी की धारा 7, 9, 10 को कम से कम छह महीने तक स्थगित करने का प्रावधान है। इसे 25 मार्च 2020 से एक साल तक बढ़ाया जा सकता है। इसमें एक नई धारा 10-ए को जोड़ा गया है। आईबीसी दिसंबर, 2016 में लागू हुआ था। अब तक इसमें पांच बार संशोधन किया जा चुका है।