एक गांव ऐसा भी जहां डेढ़ सौ बरस से नहीं खेली गई होली, जानिए माजरा | A village where there was not played for Holi in 150 years

एक गांव ऐसा भी जहां डेढ़ सौ बरस से नहीं खेली गई होली, जानिए माजरा

एक गांव ऐसा भी जहां डेढ़ सौ बरस से नहीं खेली गई होली, जानिए माजरा

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:29 PM IST, Published Date : March 20, 2019/5:57 am IST

कोरबा। रंग व उमंग के त्यौहार होली का इंतजार हर किसी को रहता है, लेकिन एक गांव ऐसा है, जहां डेढ़ सौ बरस से होली नहीं खेली जा रही है। यहां के लोगों का मानना है कि रंग का एक कतरा भी गांव की धरती पर गिरा तो अनहोनी होगी। देवी की नाराजगी का खामियाजा भोगना पड़ेगा। बताया जा रहा है कि बरसो पहले हुए एक अजीबोगरीब हादसे के बाद से ही लोग डरे-सहमे हैं। यहां के बच्चे तो जानते भी नहीं कि आखिर होली का पर्व मनाया कैसे जाता है।
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चांपा मार्ग में मड़वारानी के पास स्थित ग्राम खरहरी अब क्षेत्र में केवल इसलिए जाना-पहचाना गांव हो गया है, क्योंकि इस गांव में होली नहीं खेली जाती। यहां रहने वाली चार पीढ़ियां तो इस बात की गवाह हैं कि इस गांव में कभी होली नहीं खेली गई है। किंवदंति के अनुसार बहुत पहले जब यहां होली के दिन गांव के लोग रंग से सराबोर थे, पूरे उमंग व उत्साह से होली मनाई जा रही थी, इस बीच अचानक घरों में आग लग गई और कई लोग उसकी चपेट में आकर मारे गए। इसके बाद जब जिस वर्ष भी होली मनाई गई, कुछ-न-कुछ अनहोनी हुई। महामारी की वजह से भी लोगों की जान गई। बेजुबान जानवर मारे गए। गांव के बैगा ने बताया कि उनके सपने में मड़वारानी देवी आई थीं और उन्होंने कहा है कि गांव में होली न मनाई जाए। इसके बाद से ही खरहरी में होली के त्योहार पर प्रतिबंध लगा दिया गया। डेढ़ सौ साल बीत गए, गांव की धरती पर होली के दिन रंग का एक कतरा भी नहीं गिरा।
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गांव में न तो होलिका दहन होता है और न ही फाग गाए जाते हैं। नगाड़ा बजाने व रंग-गुलाल खेलने तक की मनाही है। यहां के ग्रामीण दूसरे गांव जाकर भी होली नहीं मना सकते और दूसरे गांव के लोग भी यहां होली की खुशियां बांटने तक नहीं आ सकते। ग्रामीणों का मानना है कि होली के दिन शराब पीकर अश्लील गाली-गलौज किए जाने की वजह से देवी नाराज हो जाती हैं। शायद यही वजह है कि यह गांव पुलिस के रिकॉर्ड में आदर्श गांव है। अन्य गांवों की तुलना में यहां अपराध कम हैं। घातक केमिकलयुक्त रंगों के खतरे से भी ग्रामीण बचे हुए हैं। ग्रामीण कहते है कि हमारे बड़े-बुजुर्गों ने हमें यही सिखाया है। अब हमारे बच्चे भी इस परंपरा का पालन कर रहे हैं। बच्चों ने भी कभी होली के दिन रंग खेलने की जिद नहीं की। गांव की ग्रामीण 35 वर्षीय लताबाई बताती है कि मेरी शादी 17 साल पहले हुई थी। इसके पहले अपने पिता के घर थी, तब होली खेला करती थी, पर पति के घर खरहरी आने के बाद से होली खेलना बंद कर दिया। गृहिणी चंद्रिका कहती हैं, होली के दिन इस बात का खास ध्यान रहता है कि बाहर से कोई शराब पीकर गांव में प्रवेश न करे। इसके लिए खास तौर पर निगरानी की जाती है, क्योंकि देवी मड़वारानी नाराज हुईं तो अनहोनी हो जाएगी।