नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 के चुनावी समर में जहां एक ओर सियासी गलियारों में सरगर्मी बढ़ी हुई है, वहीं दूसरी ओर राफेल मामले में फ्रेंच अखबार द्वारा किए खुलासे ने गलियारों में खलबली मचा दी है। दरअसल अखबार ने दावा किया है कि “फरवरी 2015 से अक्टूबर 2015 के बीच, जब फ्रांस भारत के साथ राफेल डील पर बातचीत कर रहा था, अनिल अंबानी की कंपनी का करीब 1100 करोड़ रुपये (143 मिलियन यूरो) टैक्स माफ कर दिया गया।” बता दें कि अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस 2015 में भारत और फ्रांस के बीच राफेल लड़ाकू विमान को लेकर किए गए समझौते में ऑफसेट पार्टनर है।
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रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि अनिल अंबानी की फ्रांस में एक रजिस्टर्ड टेलिकॉम (दूरसंचार) कंपनी है, जिसका नाम ‘रिलायंस अटलांटिक फ्लैग फ्रांस’ है। “फ्रेंच टैक्स अथाॅरिटी द्वारा जांच के दौरान यह पाया गया कि कंपनी के ऊपर 2007 से लेकर 2010 के बीच 60 मिलियन यूरो टैक्स बकाया है। रिलायंस ने समझौते के लिए 7.6 मिलियन यूरो देने की पेशकश की, लेकिन टैक्स ऑथरिटी ने ऐसा करने से मना कर दिया। इसके बाद 2010 से 2012 के बीच के समय के लिए फिर से जांच की गई और 91 मिलियन यूरो अतिरिक्त टैक्स जमा करने को कहा गया।” हालांकि, राफेल डील की घोषणा के छह महीने बाद फ्रेंच टैक्स ऑथरिटी ने रिलायंस से समझौते के तौर पर सिर्फ 7.3 मिलियन यूरो लिए।
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वहीं, दूसरी ओर रिलायंस कंपनी ने अखबार के दावे को खारिज करते हुए कहा है कि यह मामला 2008 से संबंधित है। इस मामले में किसी तरह का लाभ नहीं लिया गया। रिलायंस FLAG अटलांटिक फ्रांस एसएएस, भारत के रिलायंस कम्युनिकेशंस की सहायक कंपनी है। इसके पास अपना फ्रांस में अपना एक केबल नेटवर्क और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर है। कंपनी से जिस टैक्स की मांग की जा रही थी, वह अवैध थी। बाद में इस टैक्स विवाद को फ्रांस में काम करने वाली सभी कंपनियों के लिए बने कानून के अनुसार इसका निष्पादन किया गया। 2008 से 2012 के बीच फ्लैज फ्रांस 20 करोड़ के ऑपरेटिंग लॉस में थी और टैक्स अथॉरिटी ने उस समयावधि के लिए 1100 करोड़ से ज्यादा टैक्स की मांग की थी। कानून के अनुसर, फ्रेंच टैक्स समझौता प्रक्रिया हुआ और 56 करोड़ का अंतिम भुगतान करने पर दोनों पार्टियां सहमत हुई।
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फ्रेंच अखबार के दावे को लेकर फ्रांसीसी राजदूत ने बयान जारी करते हुए कहा है कि 2008-2012 की अवधि से संबंधित टैक्स विवाद में एक फ्रेंच कंपनी और टेलीकॉम कंपनी रिलायंस फ्लैग के बीच वैश्विक समझौता हुआ। इस समझौते के तहत प्रशासन ने विधायी और नियामक ढांचे के पूर्ण पालनकर टैक्स में छूट दी। इस कार्रवाई में किसी भी प्रकार का राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं था।
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